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आग लगाने का ये ‘खेल’ बहुत गंदा है….मणिपुर जले तो जले हम तो चले….!

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इंफाल/ नई दिल्ली ( जोराम सिंह / आशीष मिश्र) :  मणिपुर में हालात भयावह हैं। सड़कों पर असुरक्षा और डर का माहौल परसा हुआ है। सरकारी दावों पर यकीन करें तो राज्य में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच संघर्ष में कम से कम 100 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। सुरक्षा बल और प्रशासन मैतेई और कुकी लोगों के गुटों में बंट चुका है। राज्य सरकार अपना भरोसा खो चुकी है और लोग केंद्र सरकार की तरफ मदद के लिए टुकटुकी लगाए बैठै हैं। लेकिन सवाल ये कि केंद्र सरकार उनके साथ क्या कर रही है ? राज्य के इन हालात के पीछे बड़े कैनवस पर उसकी खुद की कोई भूमिका तो नहीं ? इतना सबकुछ होने के बाद भी प्रधानमंत्री ने चुप्पी क्यों साधे रखी ? राज्य को इन हालात से बाहर निकालने के लिए दूसरे विकल्प क्या हैं?

सवाल और भी हैं। इसी बीच, मणिपुर हाईकोर्ट ने अपने उस आदेश पर फिर से विचार करने की बात कही है जिसके चलते राज्य में हिंसा का मौजूदा दौर शुरू हुआ और एक महीने से ज्यादा समय से लगातार रुक-रुक कर हिंसा जारी है।

मणिपुर में आज की तारीख में सबसे बड़ा सवाल जो वहां के शरणार्थी शिविरों और हिंसा प्रभावित इलाकों में गूंज रहा है वो है मणिपुर के हालात पर केंद्र सरकार की रहस्यमय चुप्पी का। ये अपेक्षा सिर्फ लोगों तक ही सीमित नहीं है बल्कि राज्य से दिल्ली पहुंचे तीन-तीन प्रनिधिमंडलों को भी इस मामले में निराश होना पड़ा। इन प्रतिनिधिमडलों में दो तो राज्य बीजेपी के नेताओं के थे जबकि एक कांग्रेस का था। प्रधानमंत्री अमेरिका जाने की तैयारी में व्यास्त थे इसलिए प्रतिनिधिमंडल को मिलने का वक्त नहीं दिया गया।

खैर, प्रधानमंत्री अभी अमेरिका में हैं लेकिन मणिपुर तो महीने भर से ज्यादा हो चुका आग में झुलस रहा है। ऐसा क्यों है ?

बात क्यों नहीं बन रही ?

मणिपुर में बहुसंख्यक आबादी मैतेई समुदाय के लोगों की है। उसके बाद कुकी और नगा समुदाय के लोग हैं। राज्य में धारा 371 लागू है जिसके तहत कुकी समुदाय को जो अधिकार हैं वे अधिकार मैतेई समुदाय के पास नहीं हैं। मैतेई समुदाय उसे हासिल करने के लिए जोर आजामाइश कर रहा है। इस बारे में आदालत से लेकर प्रशासनिक स्तर तक कई तरह से प्रयास किए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह खुद मैतई समुदाय के हैं इसीलिए राज्य सरकार के हर कदम को कुकी समुदाय शक की नजर से देखता है।

राज्य कैसे बंट गया दो हिस्सों में

इंफाल के स्थानीय अखबार में काम करने वाली पत्रकार चेंगी के अनुसार, इस समय पूरा राज्य दो धड़ों में बंटा हुआ है। प्रशासन से लेकर राजनीति तक। राज्य पुलिस में मैतोई लोगों का जोर है तो केंद्रीय सुरक्षा बल असम रायफल्स में कुकी लोग काफी ज्यादा हैं।  मैतेई को असम रायफल्स पर शक तो कुकी को राज्य पुलिस पर भरोसा नहीं। उन्होंने ये भी बताया कि, लोगों के पास हथियार पहुंचने के पीछे भी दावे कुछ और हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि सुरक्षा बलों ने अपने-अपने समुदाय के लोगों को हथियार दे दिए। कुल मिलाकर बड़ी खतरनाक स्थिति है।

राज्य में बीजेपी की सरकार है। चेंगी कहती है कि, बीजेपी के लिए दुविधा की स्थिति है अगर वो मुख्यमंत्री बदलती है तो मैतेई उससे दूर जाएगा और बहुसंख्यक मैतेई का मुंह मोड़ना उसके राजनीतिक गणित में फिट नहीं बैठता। दूसरी तरफ वीरेन सिंह की सरकार राज्य में अपना इकबाल खो चुकी है और उसे हटाए बिना राज्य में शांति की बहाली बहुत मुश्किल है।

प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल

मणिपुर में अशांति के दौर के बीच सोशल मीडिया पर एक सवाल लगातार जोरशोर से गूंज रहा है और वो है आग में जलते मणिपुर को लेकर प्रघानमंत्री नरेंद्र मोदी की खामोशी। राज्य के लोगों में इस बात को लेकर जबरदस्त गुस्सा है और वे इसका इजहार भी कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मणिपुर से आए राजनीतिक प्रनिधिमंडलों से नहीं मिले और न ही उन्होंने राज्य में शांति बहाली की कोई अपील की। गृहमंत्री अमित शाह कुछ दिनों पहले इंफाल गए थे और उन्होंने सुरक्षा हालात का जायजा लिया था। उनके निर्देशों का राज्य का हालात पर कोई असर पड़ा हो ऐसा दिखता तो नहीं।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया    

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