लखनऊ (गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र) : उत्त्तर प्रदेश में मुकुल गोयल को योगी आदित्य नाथ की सरकार ने पुलिस महानिदेशक पद से हटा दिया। सरकारी आदेश में उन्हें निर्देशों की अवहेलना करने वाला और अकर्मण्य बताया गया। उन्हें डीजीपी के पद से हटा कर नागरिक सुरक्षा में डीजी बना दिया गया। सरकार का आदेश चौंकाने वाला था। खासकर इसलिए कि क्योंकि करीब 11 महीने पहले मुकुल गोयल को केंद्र में पांच साल की प्रतिनियुक्ति के बाद वापस बड़े तामझाम के साथ लखनऊ भेजा गया था। फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि मुकुल गोयल को चलता कर दिया गया और वो भी बेइज्जत करके।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या मुकुल गोयल को हटाया जाना एक सामान्य सी घटना है या इसके पीछे योगी आदित्य नाथ की सरकार कोई ठोस संदेश देना चाहती है।
मुकुल गोयल लखनऊ आने से पहले केंद्र सरकार में सीमा सुरक्षा बल के अतिरिक्त महानिदेशक थे। जब उन्हें लखनऊ भेजा गया उससे पहले, लगातार उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था को लेकर कई तरह की परेशानियां खड़ी हो रही थीं। बताया जाता है कि मुकुल गोयल के ऊपर गृह मंत्री अमित शाह का पूरा हाथ था और वे चाहते थे कि मुकुल गोयल को उत्तर प्रदेश का डीजीपी बनाया जाए।
लेकिन, मुकुल गोयल के डीजीपी बनने के बाद भी उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था की चुनौती बनी रही और हालात और खराब हुए। उन्होंने कभी भी राज्य पुलिस को फ्रंट से लीड करने की कोशिश नहीं की। वैसे आमतौर पर वे एक लो प्रोफाइल अफसर के रूप में ही जाने गए।
दोबारा दमदार मैंडेट के साथ सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने कानून-व्यवस्था के सवाल को और ज्यादा गंभीरता से लेना शुरू किया और उसकी पहली गाज पुलिस महानिदेशक मुकुल गोयल पर गिरी। इसके पहले भी कुछ जिलों के कप्तान को निलंबित करके ये संदेश देने की कोशिश की गई थी कि मुख्यमंत्री पुलिस के कामकाज से बहुत संतुष्ट नहीं हैं।
मुकुल गोयल को चलता करके मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने ये साफ कर दिया है कि वे हीला हवाली करने वाले और ढुल्ल-पुल्ल टाइफ के अफसरों को बर्दाश्त नहीं करने वाले हैं और पुलिस को और अधिक चाकचौबंद तरीके से काम करना होगा। मुकुल गोयल के मामले में तो एक तरह से उन्होंने दिल्ली की भी नहीं सुनी और गृह मंत्रालय को भी समझा दिया कि यूपी में तो उनका अफसर ही चलेगा। हितेश अवस्थी और सुलखान सिंह जैसे अफसर भी कामकाज के मामले में कड़क छवि वाले नहीं थे लेकिन उनकी ईमानदार और निर्विवाद छवि उनके लिए सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट था और वे अपने पद पर बने रहे।
जावीद अहमद भी हटाए गए थे
योगी आदित्य नाथ सरकार ने इससे पहले डीजीपी के पद पर तैनात रहे जावीद अहमद को हटाया था। दरअसल, जावीद अहमद समाजवादी पार्टी की सरकार के कार्यकाल में डीजीपी थे। योगी सरकार ने सत्ता संभालने के करीब तीन महीने बाद जावीद अहमद को डीजीपी के पद से हटाया था।
नए डीजीपी के लिए ये नाम
यूपी के नए डीजीपी के लिए जिन नामों की चर्चा है उनमें वरिष्ठता सूची के हिसाब से पहला नाम डीजी प्रशिक्षण आर.पी. सिंह का है। वे 1987 बैच के आईपीएस अफसर हैं। दूसरा नाम, डीजी सीबीसीआईडी जी.एल. मीणा का है। वे भी 1987 बैच के आईपीएस हैं। तीसरा नाम, 1988 बैच के आईपीएस आर. के. विश्वकर्मा का है। वे इस वक्त डीजी पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नत बोर्ड और डीजी ईओडब्लू का कामकाज संभाल रहे हैं। सूची में चौथा और सबसे चर्चित नाम डीजी इंटेलिजेंस और डायरेक्टर विजिलेंस डॉ. डीएस चौहान का है। डीएस चौहान 1988 बैच के अफसर हैं। पांचवां नाम डीजी जेल आनन्द कुमार का है। वर्ष 1988 बैच के अफसर आनन्द कुमार योगी सरकार के पहले कार्यकाल में एडीजी (एलओ) के पद पर रह चुके हैं। बताया जा रहा है कि, इन अफसरों में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की पहली पसंद डॉ. डी. एस चौहान हैं और वे अबकी बार यूपी में अपनी पसंद का डीजीपी ही चाहेंगे।
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