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इमरान पर हमला : मंसूबे के पीछे का असली किरदार कौन….?

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लाहौर, 4 नवंबर (गणतंत्र भारत के लिए अदनान शेख ) : पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर वजीराबाद के पास हमला हुआ। उन्हें जान से मारने की कोशिश की गई। हमलावर नवीद की उम्र काफी कम है और उसने पुलिस को जो बयान दिया है उससे जाहिर होता है कि इस कहानी में कई झोल हैं। प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने गृह मंत्रालय से घटना की जांच रिपोर्ट तलब की है।

लेकिन क्या हमले की ये कहानी वैसी ही है जैसी बताई जा रही है। मैं खुद लाहौर के शौकत जहां अस्पताल में मौजूद था जब घायल इमरान को वहां लाया गया। उनका ऑपरेशन किया गया और अब वे बेहतर हैं।

पाकिस्तान की राजनीतिक धारा बदलेगी

तहरीके इंसाफ पार्टी के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर ये हमला पाकिस्तान की राजनीति में निर्णायक मोड़ साबित होने वाला है। कुछ दिनों पहले इमरान खान ने पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई के खिलाफ जबरदस्त हमला बोला था। उन्होंने आईएसआई और सेना को भ्रष्ट और स्वार्थी तंत्र का हिस्सा बताते हुए आरोप लगाया था कि ये देश में गंदी राजनीति का हिस्सा हैं।

इमरान के आरोपों के जवाब में आईएसआई चीफ नवेद अंजुम ने एक प्रेस कॉंफ्रेंस की और इमरान के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए उन्हें ही दोगला करार दिया।

इमरान, पिछले कुछ दिनों से कुछ कट्टरपंथी मजहबी जमातों के खिलाफ भी काफी मुखर रहे हैं। सरकार को वे पहले से ही कटघरे में खड़ा करते रहे हैं।

ऐसे में सवाल उठता है कि, इमरान पर हुए हमले के पीछे आखिर कौन लोग हो सकते हैं, उनके मंसूबे क्या हो सकते हैं और पाकिस्तान की राजनीति पर इसका कितना गहरा असर पड़ने वाला है ?

ये सही है कि इमरान खान ने अपने खिलाफ कई मोर्चों को खोल रखा था। सरकार, सेना, आईएसआई और कट्टरवादी मजहबी जमातें। सभी उनके पीछे थे। पिछले दिनों देश में हुए उपचुनावों में जिस तरह से इमरान की पार्टी ने स्वीप किया था इससे उनके हौसले और बढ़ गए थे। तमाम सर्वे और मीडिया रिपोर्टों से भी जाहिर होता रहा कि वे इस समय देश के सबसे ज्यादा पॉपुलर नेता हैं भले ही वे सत्ता से बाहर हों। पाकिस्तान की राजनीति में दिनोंदिन उनकी मजबूत होती दखल ने उनके राजनीतिक विरोधियों के हौसलों को पस्त करना शुरू कर दिया था।

इमरान ने खुलेआम जिस तरह से सेना और आईएसआई से पंगा लिया वैसा बेनजीर भुट्टो के बाद पाकिस्तान की राजनीति में आज तक नहीं देखा गया। सेना को भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बताना और सत्तालोलुप बता कर इमरान ने जबरदस्त मुसीबत मोल ले ली थी। पाकिस्तानी पत्रकार मोना आलम मानती हैं कि पाकिस्तान में इमरान ने जिस तरह से सेना और आईएसआई को घेरा है उससे या को सेना बैकफुट पर जाएगी या फिर इमरान का राजनीतिक अस्तित्व खतरे पड़ेगा। लेकिन अगर सेना, बचाव की मुद्रा में आती है तो ये देश की राजनीति और लोकतंत्र के लिए बहुत खुशकिस्मती की बात होगी।

इस्लामाबाद से एक अन्य पत्रकार, आरजू काजमी के अनुसार, जैसे ही स्थानीय मीडिया में पूर्व पीएम इमरान ख़ान पर गोली चलने की ख़बर आई, तो बहुत से लोगों के मन में साल 2007 की यादें ताज़ा हो गईं जब बेनजीर भुट्टो की हत्या कर दी गई थी। हत्या किसने कराई, क्या थे मंसूबे, घोषित तौर पर कुछ भी पता नहीं चला। उस घटना में भी राजनीतिक साजिश और करीबियों के हाथ का शक था इसमें भी है। उनका कहना है कि, इस घटना के तमाम पक्ष हैं और सब कुछ वैसा है नहीं जो दिख रहा है।

मीडिया में छाया मुद्दा         

पाकिस्तानी अखबार डॉन न्यूज़ ने अपने संपादकीय में इस घटना को बेहद गंभीर मानते हुए लिखा है कि ये घटना पाकिस्तान की राजनीति को एक बार फिर से भीषण अस्थिरता  के दौर में झोंक सकती थी।

अमेरिकी अखबार वॉशिगटन पोस्ट  की वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि, इमरान ख़ान पर हुए हमले से बाहर निकलने में पाकिस्तान को लंबा समय लगेगा। इस लेख में 15 साल पहले के उस हमले का ज़िक्र किया गया है जब इसी तरह सर्द सी शाम में रावलपिंडी में एक रैली को संबोधित करते हुए बेनज़ीर भुट्टो की हत्या कर दी गई थी।

हत्या के कुछ सप्ताह बाद ही पाकिस्तान में चुनाव होने थे, जिसमें भुट्टो की जीत तय मानी जा रही थी। वॉशिंगटन पोस्ट के इस लेख में बताया गया है कि कैसे भुट्टो की हत्या के बाद से मुल्क़ ने कभी भी राजनीतिक स्थिरता नहीं देखी।

भारत में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रह चुके पत्रकार संजय़ बारू नें अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा हैं। उन्होंने अपने लेख में इमरान खान पर हमले की टाइमिंग को लेकर बहुत संजीदा सवाल उठाए हैं जिसकी चर्चा पाकिस्तान में भी है। उन्होंने इमरान के लॉंग मार्च का जिक्र करने के अलावा नवंबर महीने में सेना प्रमुख बाजवा के रिटायरमेंट का जिक्र किया है। उन्होंने पूछा है कि, क्या इमरान ख़ान इस्लामाबाद की घेराबंदी कर पाएंगे? क्या बाजवा रिटायर होंगे और क्या एक बार फिर से पाकिस्तान की राजनीति में सेना का दबदबा दिखेगा?

बारू इस बात की आशंका जताते हैं कि क्या पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टियां और सेना इस ख़ेल में सिर्फ़ मोहरा हैं जबकि असल ख़िलाड़ी चीन, अमेरिका, तुर्क़ी और सऊदी अरब है?

संजय बारू ये भी सवाल करते हैं कि पाकिस्तान पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहा है ऐसे में क्या राजनीतिक अस्थिरता अगले कुछ सप्ताह में अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित नहीं  करेगी? जब देश की अहम संस्थाएं चुनौतियों का सामना कर रही हैं तो ऐसे में न्यायपालिका की क्या भूमिका होगी, ये भी देखने वाली बात होगी।

फिर शुरू होगा लॉंग मार्च

इस बीच, लाहौर में अपना इलाज करा रहे इमरान खान ने कहा है कि, ठीक होते ही वे लॉंग मार्च फिर से शुरू करेंगे और इस्लामाबाद तक जाकर रहेंगे।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

 

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