नई दिल्ली दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र) : देश में सहकारिता को मजबूती देने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने लगभग दो साल पहले कृषि मंत्रालय़ से अलग एक पृथक सहकार मंत्रालय का गठन किया। इस मंत्रालय़ का जिम्मा गृह मंत्री अमित शाह को अतिरिक्त प्रभार के रूप में दिया गय़ा। मंत्रालय के गठन के बाद इसके शुरुवाती लगभग एक साल में इसके कामकाज की गति बहुत सुस्त रही लेकिन, फिर अचानक महज 24 दिनों के भीतर इसका खर्च तकरीबन चार गुणा बढ़ गय़ा। आश्चर्यजनक बात ये है कि मंत्रालय से इस बारे में जब स्पष्टीकरण मांगा गय़ा तो उसने इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान सहकारिता मंत्रालय को 900 करोड़ रुपए का बजटीय अनुमान आवंटित किया गया था। बाद में संशोधित अनुमान के वक्त बजटीय सहायता को बढ़ाकर 1624.74 करोड़ रुपए कर दिया गया था। इसके बाद फिर से अनुपूरक अनुदान मांगों के अनुसार इस बजट को बढ़ाकर 2056.13 करोड़ रुपए कर दिया गया।
दिलचस्प बात ये है कि, एक तरफ मंत्रालय का बजट बढ़ता रहा लेकिन दूसरी तरफ मंत्रालय ने इस दृष्टि से अपने काम में तेजी नहीं दिखाई। रिपोर्ट के मुताबिक 31 जनवरी 2023 तक मंत्रालय केवल 136.34 करोड़ रुपए ही खर्च कर पाया, जो इसे आवंटित कुल बजट का केवल 6.7 प्रतिशत था।
रिपोर्ट के अनुसार, मंत्रालय ने समिति को बताया कि जनवरी 2023 तक उसकी खर्च करने की प्रगति कम होने के कई कारण थे जिनमें सबसे बड़ा कारण तो यही था कि साल 2022-23 में ही सहकारिता मंत्रालय को पहली अलग बजट आवंटित किया गया था। मंत्रालय की सभी योजनाएं और कार्यक्रम वर्ष 2022-23 के दौरान ही तैयार किए जा रहे थे। संसदीय समिति की रिपोर्ट में आगे जो जानकारी दी गई है, वो चौंकाने वाली है। रिपोर्ट के मुताबिक मंत्रालय ने आगे बताया है कि 24 फरवरी 2023 को उसका कुल खर्च 513.50 करोड़ रुपए पहुंच गया जो कि अनुमानित बजट (900 करोड़ रुपए) का 57 प्रतिशत है।
पहले कम खर्च और फिर सिर्फ तीन हफ्तों में अचानक से चार गुणा खर्च के बारे में संसदीय समिति ने मंत्रालय से जब पूछताछ की तो मंत्रालय ने बताया कि उसे कुछ जरूरी मंजूरियों का इंतजार है और उनके मिलते ही बजट से मिली राशि का उचित व्यय किया जाएगा। लेकिन मंत्रालय ने अपने जवाब में 24 दिनों में 377 करोड़ रुपयों के खर्च के बारें में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया।
आपको बता दें कि, सहकारिता मंत्रालय़ के गठन का फैसला केंद्रीय कैबिनेट ने 6 जुलाई 2021 को लिया था। पहले सहकारिता विभाग, केंद्रीय कृषि, कृषक कल्याण एवं सहकारिता मंत्रालय के अधीन था। पृथक मंत्रालय के गठन का मकसद देश में सहकारिता आंदोलन को और अधिक मजबूती देना है और इसके लिए अलग प्रशासनिक, कानूनी और नीतिगत ढांचे को तैयार करना है।
भारत में सहकारिता का इतिहास एक सदी से भी ज्यादा पुराना है। सबसे पहले, 1904 में सहकारिता की औपचारिक पहल शुरू हुई। पहला कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटीज एक्ट 1904 में बना, लेकिन इसका दायरा बहुत सीमित था। आजादी के बाद सहकारी क्षेत्र ने काफी विस्तार किया और देश की अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती चली गई। 1950-51 में जहां 1.81 लाख सहकारी संस्थाएं थी, आज उनकी संख्या बढ़ कर 8.54 लाख हो चुकी है।
सहकारी समितियों को आरटीआई के दायरे में लाने सुझाव
संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस समय देश में कुल 8.54 लाख सहकारी समितियां पंजीकृत हैं। इनमें प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पेक्स) की संख्या 95 हजार है। लेकिन इन सहकारी समितियों के कामकाज में पारदर्शिता और स्पष्टता का अभाव है। चाहे, ये समितियां केंद्र के अधीन हों, राज्य सरकारों के अधीन हों या फिर केंद्र शासित क्षेत्रों के अधीन हों।
समिति ने सिफारिश की है कि, सभी सहकारी समितियों को सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत लाने पर विचार किया जाए। सहकारिता मंत्रालय ने कहा है कि वो समिति के इस सुझाव पर राज्यों से विचार-विमर्श करेगा। मंत्रालय ने ये भी स्पष्ट किया है कि वो केंद्र सरकार के अधीन चल रही मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव सोसायटीज़ को भी आरटीआई के दायरे में लाने पर विचार कर रहा है।
सहकार से समृद्धि का मार्ग
नरेंद्र मोदी सरकार ने पृथक सहकार मंत्रालय के गठन के साथ सहकार से समृद्धि की मूल भावना को भी सामने रखा था। सहकार मंत्रालय के काम को कितनी अहमियत दी गई ये इसी से जाहिर होता है कि इन नवगठित मंत्रालय का जिम्मा प्रधनामंत्री के सबसे करीबी गृह मंत्री अमित शाह को सौंपा गया। इस समय देश के कई राज्यों में सहकारी संस्थाएं काफी मजबूत स्थिति में हैं और वे राज्य और किसानों की समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। इन राज्यों में गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक और राजस्थान शामिल हैं।
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