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सवालों के घेरे में साइबर दुनिया की राष्ट्रवादी पहरेदारी !

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए रमा सुब्रमणियम):

साइबर अपराधों पर लगाम लगाने के लिए जल्द ही सरकार ऐसे स्वयंसेवकों को तैयार करने जा रही है जो राष्ट्रहित में सरकार के साथ मिलकर काम करेंगे। प्रयोग के तौर पर स्वयंसेवकों का पहला समूह जम्मू-कश्मीर में काम कर रहा है। राज्य से मिले फीडबैक के आधार पर इसका विस्तार किया जाएगा। लेकिन इसके विस्तार से पहले ही इस राष्ट्रवादी पहरेदारी पर प्रश्न उठने लगे है।  

साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर देश में साइबर अपराधों के ख़िलाफ़ नोडल प्वाइंट के तौर पर काम करता है। ये गृह मंत्रालय के अधीन काम करता है। सेंटर का मुख्य उद्देश्य साइबर क्राइम की रोकथाम और उसकी जांच में आम लोगों की भागीदारी को बढ़ाना है ताकि व्यापक स्तर पर साइबर अपराधों से निपटा जा सके। गृह मंत्रालय के अनुसार,  इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए साइबर क्राइम स्वयंसेवक प्रोग्राम को तैयार किया गया है। ये प्रोग्राम देश सेवा और साइबर क्राइम के ख़िलाफ़ लड़ाई में योगदान करने के इच्छुक नागरिकों के लिए तैयार किया गया है।  राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर मौजूद जानकारी के मुताबिक़ इसका मक़सद इंटरनेट पर मौजूद चाइल्ड पॉर्नोग्राफ़ी और ग़ैर-क़ानूनी सामग्री को हटाने में सरकार की मदद करना है

सरकारी दस्तावेज़ बताते हैं कि ये स्वयंसेवक इंटरनेट पर मौजूद ग़ैर-क़ानूनी और राष्ट्र विरोधी कंटेंट की पहचान करने, उसे रिपोर्ट करने और उसे साइबर नेटवर्क से हटाने में एजेंसियों की सहायता करेंगे। स्वयंसेवक देश की संप्रभुता और अखंडता, सेना, सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने, सांप्रदायिक सौहार्द के लिए ख़तरा पैदा करने वाले या फिर बाल यौन शोषण से जुड़ी सामग्री के खिलाफ रिपोर्ट कर सकते हैं।

शंकाएं भी  कम नहीं

सवाल ये है कि क्या इस पहल में सब कुछ उतना सीधा और सरल है जैसा दिख रहा है या फिर इसे लेकर उठ रही शंकाओं में दम है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि इस तरह की बातें अधिकतर विचारधार से प्रभावित होती हैं और उनकी व्याख्या भी उसी तरह से की जा सकती है।  अलग-अलग लोगों की व्याख्या उनकी विचारधारा, जानकारी, समझ और पूर्वाग्रह आदि से प्रभावित हो सकती है। कौन सी टिप्पणी या पोस्ट राष्ट्र हित में है और कौन सी नहीं,  कौन सी पोस्ट राज्य की सुरक्षा के ख़िलाफ़ है या नहीं, ये ऐसी बातें हैं जिनका फ़ैसला स्वयंसेवकों पर छोड़ा जाना कितना उचित होगा, इस पर गौर किया जाना उचित होगा।  दूसरा, किन लोगों को इस काम के लिए नियुक्त किया जा रहा है, कैसे किया जा रहा और किस आधार पर किया जा रहा है, इसमें पारदर्शिता नहीं है। इससे इसकी साख पर असर पड़ेगा।  

साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ पवन दुग्गल के अनुसार, साइबर स्वयंसेवकों को लेकर अभी तस्वीर साफ नहीं है। इसमें अभी पारदर्शिता और जवाबदेही जैसी चीज़ों की ज़रूरत है।

हालांकि सरकार की तरफ से साइबर स्वयंसेवकों के लिए कुछ नियमों और शर्तो को तय किया गया है और उसे साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर बताया गया है। पोर्टल पर स्पष्ट रूप से कहा गया है कि, यह विशुद्ध रूप से स्वयंसेवा का काम है और इसके लिए किसी भी तरह का पारिश्रमिक नही दिया जाएगा। स्वयंसेवक का कोई पद और पहचान भी नहीं होगी। स्वयंसेवक कोई सार्वजनिक बयान जारी नहीं कर सकते और गृह मंत्रालय के नाम का इस्तेमाल भी नहीं कर सकते। नियम और कानून का उल्लंघन करने में उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। सरकार की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक भारत का कोई भी नागरिक शर्तें पूरी करने के बाद स्वयंसेवक बन सकता है।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

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