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बीमा धारक नहीं रहा तो नॉमिनी में जिसका नाम वही क्लेम का हकदार

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुहासिनी) : आमतौर पर हम मानते है कि किसी के गुजर जाने पर उसकी संपत्ति पर उसकी पत्नी और बच्चों का पूरा अधिकार होता है। लेकिन क्या ये नियम बीमा पॉलिसी  पर लागू होता है, नहीं। यदि किसी व्यक्ति ने अपनी जीवन बीमा की पॉलिसी में नॉमिनी के कॉलम में मां या किसी अन्य व्यक्ति का नाम दे दिया है तो उसका क्लेम मां या उस व्यक्ति को ही मिलेगा जिसका नाम नॉमिनी के कॉलम में लिखा गया है। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने एक वाद में ये फैसला सुनाया है।

क्या है मामला ?

मामला चंडीगढ़ के राज्य़ उपभोक्ता आयोग से जुड़ा है। वहां से आए इस तरह के फैसले के खिलाफ भारतीय जीवन बीमा निगम  ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग,  दिल्ली में रिवीजन पिटीशन दायर की थी।

दरअसल पूरा मामला स्वर्गीय अमरदीप सिंह से जुड़ा है। उन्होंने अपने जीवन काल में एलआईसी से तीन इंश्योरेंस पॉलिसी ली थी। उस समय उनकी शादी भी नहीं हुई थी। इसलिए नॉमिनी के कॉलम में मां का नाम दिया था। बाद में उनकी शादी हुई और बच्चे भी हुए। लेकिन उन्होंने नॉमिनी चेंज नहीं किया। जब उनका निधन हुआ तो एलआईसी ने नियमानुसार नॉमिनी यानी कि मृतक की मां को क्लेम का भुगतान कर दिया। हालांकि, मृतक की पत्नी ने एलआईसी को कहा था मृतक के कानूनी वारिस यानी पत्नी और नाबालिग बच्चे मौजूद हैं। इसलिए क्लेम के भुगतान में उनका भी ध्यान रखा जाए। पर एलआईसी ने मां को ही शत प्रतिशत राशि का भुगतान कर दिया।

एलआईसी की इस कार्रवाई से खफा मृतक की पत्नी और बच्चों ने जिला उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया। जिला फोरम ने सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए 15 नवंबर 2019 को अपना फैसला सुनाया। इस फैसले में कहा गया कि तीनो पॉलिसी का कुल क्लेम 15,09,180 रुपए का है। इसे तीन हिस्सों में बांटा जाए। मतलब कि मृतक की मां, पत्नी और बच्चे को 5,03,060 रुपए की रकम बराबर-बराबर मिले। एलआईसी को 9 फीसदी सालाना ब्याज का भी भुगतान करने को कहा गया। इसके साथ ही एलआईसी मृतक की पत्नी को मानसिक परेशानी के हर्जाने के रूप में 20 हजार रुपए और मुकद्मे के खर्चे के लिए 10 हजार रुपए का भी भुगतान करे।

मामला पहुंचा राज्य़ उपभोक्ता आयोग

जिला उपभोक्ता फोरम के फैसले के खिलाफ एलआईसी ने चंडीगढ़ के स्टेट कमीशन में वाद दायर किया। लेकिन वहां भी फैसला मृतक की पत्नी और बच्चों के हक में भी आया। मृतक की मां को तो कुछ पैसे देने का आदेश हुआ ही, लेकिन साथ में पत्नी और बच्चों का भी ध्यान रखने को कहा गया।

राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग का फैसला

राज्य आयोग के फैसले के खिलाफ एलआईसी ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग का दरवाजा खटखटाया। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए मृतक की मां के पक्ष में अपना फैसला सुनाया। फैसले में कहा गया कि, मृतक ने बीमा पॉलिसी शादी के पहले ली थी। शादी के बाद भी मृतक ने नॉमिनी के नाम को बदलना उचित नहीं समझा लिहाजा पॉलिसी के क्लेम का भुगतान बीमा में जिस व्यक्ति को नॉमिनी बनाया गया है उसे ही दिया जाना चाहिए और एलआईसी ने सही व्यक्ति को भुगतान किया है।

फोटो सौजन्य-सोशल मीडिया       

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