अमेरिकी डिजिटल सेफ़्टी विशेषज्ञ ब्रूक इस्तूक और उनकी टीम ने बच्चों को ऑनलाइन उत्पीड़न से बचाने के लिए माता-पिता की मदद के लिए बच्चों पर केंद्रित शोध और तकनीक का इस्तेमाल किया। ये आलेख अमेरिकी पत्रिका स्पैन के हिंदी संस्करण से साभार लिया गया है। आलेख का शीर्षक गणतंत्र भारत का है।
कोविड-19 की महामारी के दौरान, जब स्कूलों ने अपनी कक्षाओं का संचालन ऑनलाइन करना शुरू कर दिया, तब अभिभावकों के समक्ष एक नई चुनौती उठ खड़ी हुई। परिवार की प्राथमिकताओं और वर्क फ्रॉम होम के बीच संतुलन बनाते हुए उन्हें अहसास हुआ कि उनके लिए अपने बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर निगाह रखना भी बेहद ज़रूरी है। बिना निगरानी के लंबे समय तक ऑनलाइन पहुंच से बच्चों, किशोरों और वयस्क होने की तरफ कदम बढ़ाती पीढ़ी के लिए पहले की तुलना में कहीं ज्यादा ऑनलाइन उत्पीड़न के खतरे पैदा हो गए हैं। लेकिन माता-पिता अपने बच्चों को इस ऑनलाइन खतरे से बचाने के लिए क्या कर सकते हैं? और ऑनलाइन उत्पीड़न करने वाले कैसे अपने काम को अंजाम देते हैं?
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब डिजिटल सुरक्षा विशेषज्ञ और थॉर्न में यूथ एंड कम्युनिटीज़ नामक संस्था की वाइस-प्रेसिडेंट ब्रुक इस्तूक ने अपने कार्य के माध्यम से दिया है। थॉर्न, लॉस एंजिलिस, कैलिफ़ोर्निया स्थित एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो बच्चों के ऑनलाइन यौन उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई के लिए तकनीक तैयार करता है। 2012 में बने इस संगठन के सह-संस्थापकों में अभिनेता डेमी मूर और एश्टन कुचर हैं।
थॉर्न में, इस्तूक और उनकी टीम ने बच्चों पर केंद्रित अपने अनुसंधान और तकनीक का इस्तेमाल ऑनलाइन दुनिया में बच्चों और उनके अभिभावकों की सुरक्षित उपस्थिति में सहायता देने के लिए किया। हाल ही में वे भारत आई थीं और उन्होंने अपनी अतंरदृष्टि और विशेषज्ञता को साझा किया।
प्रस्तुत है उनसे साक्षात्कार के मुख्य अंश:
क्या आप अपने बारे में और अपनी भारत यात्रा के कारण के बारे में बताएंगीं?
मैं अमेरिका से आने वाली एक डिजिटल सुरक्षा विशेषज्ञ हूं। मैं पिछले साढ़े आठ साल से थॉर्न नाम की तकनीक के क्षेत्र में काम करने वाली नॉन-प्रॉफिट संस्था से जुड़ी हूं। हमारा काम इंटरनेट के अंधेरे कोनों और बच्चों के ऑनलाइन यौन उत्पीड़न से संबंधित खतरों को जानना है। हम कानून प्रवर्तन और टेक कंपनियों के लिए सॉ़फ्टवेयर बनाने के काम के अलावा, ऑनलाइन यौन उत्पीड़न से लड़ाई के लिए बच्चों और परिवारों को औजार और संसाधन उपलब्ध कराते हैं।
मैं भारत में विभिन्न सिविल सोसायटी संगठनों से मुलाकात के लिए आई थी। मैंने इस क्षेत्र में सक्रिय शिक्षाविदों, विद्यार्थियों और दूसरे नॉन-प्रॉफ़िट संगठनों से मुलाकात की ताकि मैं ऑनलाइन यौन उत्पीड़़न को रोकने के लिहाज से अपनी टीम के अनुसंधान के बारे में उन्हें बता सकूं। मैं यहां पर इसलिए भी थी क्योंकि मैं इस मसले पर बच्चों की आवाज को उजागर करने में मदद कर सकूं, इस बारे में बात कर सकूं कि ट्रेंड उन्हें किस तरह से प्रभावित कर रहे हैं और इस तरह की उभरती समस्या के क्षेत्र में उनके अभिभावक, शिक्षक और उनके बड़े कैसे उनकी मदद कर सकते हैं।
स्टेटिस्टा ( मार्च 2022 ) के अनुसार, अगले 20 वर्षों में भारत में मोबाइल पर इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाली जनसंख्या 96 प्रतिशत तक होने की उम्मीद है। अभिभावक और स्कूल इस तरह के अनुमानित उछाल के लिए खुद को किस तरह से तैयार कर सकते हैं?
मुझे लगता है कि इंटरनेट की पहुंच वैश्विक स्तर पर तेज़ी से बढ़ रही है। इसका मतलब यह हुआ कि युवाओं के जीवन में डिजिटल दुनिया की बहुत बड़ी अहमियत है, खासतौर पर कोविड-19 के बाद के दौर में। अब, इस तकनीकी विकास के बीच बच्चों और किशोरों को जीवन के सामान्य लेकिन जटिल चरण को फोन, कैमरे और इंटरनेट के बीच गुजारना होता है। हम जानते हैं कि आज चार, पांच और छह साल के बच्चों के हाथ में मोबाइल है जबकि नौ साल की उम्र तक के बच्चों से नग्न तस्वीरों क ी मांग की जा रही है।
मै कई बार कह चुकी हूं कि, हम कार की ड्राइंविंग सीट पर तब तक बच्चे को नहीं बैठा सकते जब तक कि हम उसे कार को सुरक्षित चलाना सिखा नहीं देते। ऐसा ही कुछ इस उपकरण यानी मोबाइल के साथ है। शिक्षाविदों और माता-पिता को कम उम्र से ही बच्चों को इसके लिए तैयार करना होगा। उन्हें न सिर्फ यह बताना होगा कि ऑनलाइन दुनिया में उनका पाला किस तरह के खतरों से पड़ सकता है बल्कि उन्हें यह भी समझाना होगा कि बच्चे किस तरह इन खतरों से सुरक्षित रह सकते हैं। बच्चों की मदद के लिए कई तरह के कदम हो सकते हैं, जैसे कि उन्हें समझाया जा सकता है कि ऑनलाइन मिलने वाला हर शख्स जरूरी नहीं कि वही हो जो बताया जा रहा है या फिर उन्हें उनकी सीमाओं और इनकार करने के कौशल के बारे में बताया जा सकता है।
माता-पिता अपने बच्चों को ऑनलाइन यौन उत्पीड़न से सुरक्षित रखने के लिए क्या कर सकते हैं?
हम इसे डिजिटल डिवाइड कहते हैं। हमने ऐसे युवा लोगों और वयस्कों के साथ अनुसंधान किया जहां बच्चों को यह लगता था कि उनके माता-पिता उनके अनुभवों को नहीं समझ पाएंगे, जबकि वयस्क नहीं जानते कि मदद किस तरह से करनी है।
सात और आठ साल की उम्र से ही बच्चों में जानने की उत्सुकता आ जाती है। जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती है, वे जोखिम उठाने लगते हैं और नियमों को तोड़ने लगते हैं। आपको ऐसे चरणों को देखते हुए तकनीक की परतें तैयार करनी होती हैं और अगर कुछ हो रहा है तो यह कोई अचंभा नहीं है। लेकिन मैं तकनीकी पक्ष से अलग, माता-पिता को यह बताना चाहती हूं कि, हर चीज़ का एक मानवीय पक्ष होता है जिसे हम सब समझ सकते हैं। माता-पिता ऐसे सवाल पूछे सकते हैं जैसे कि, क्या आपने हाल ही में कुछ ऐसा देखा जिससे आप डर गए या फिर आपने ऐसा कुछ तो नहीं देखा जिससे आपने असहज महसूस किया हो? मैं निश्चित तौर पर छोटे बच्चों के माता-पिता से कहूंगी कि वे उनके सभी गेम्स से चैट को निष्क्रिय कर दें। हां, यह माता-पिता के लिए थोड़ा कठिन तो है।
लेकिन मैं सोचती हूं कि हमें इस अंतर को चाहे जैसे भी पाटना होगा। और यह इतना महत्वपूर्ण है कि बच्चों का सामना तमाम तरह के खतरनाक और जोखिम भरी चीजों से पड़ने वाला है। उन चीजों के साथ पैदा होने वाला एकांत और शर्मिंदगी भावनात्मक रूप से कई बार भारी पड़ती है और बच्चों को हानिकारक हालात में डाल सकती है जिसके चलते वे अवसाद का शिकार हो सकते हैं, खुद को नुकसान पहुंचा सकते हैं या आत्महत्या जैसे कदम भी उठा सकते हैं।
वे अवसाद का शिकार हो सकते हैं, खुद को नुकसान पहुंचा सकते हैं या आत्महत्या जैसे कदम भी उठा सकते हैं।
किसी बच्चे की ऑनलाइन यात्रा के शुरुआती दौर में उसे नुकसान से बचाने के लिए किस तरह के उपाय किए जा सकते हैं?
मेरा सोचना है कि प्राथमिक शिक्षा के हिस्से के रूप में डिजिटल सुरक्षा का पाठ्यक्रम अनिवार्य करने की ज़रूरत है। और स्पष्ट तौर पर उसके बाद भी। अमेरिका में, स्वास्थ्य संबंधी शिक्षाएं दी जाती हैं- जिसमें गुड टच और बैड टच के बारे में बताया जाता है, स्वस्थ संबंधों और शरीर की सुरक्षा के बारे में जानकारी दी जाती है। इसी तरह की बात ऑनलाइन सुरक्षा के साथ भी संभव है। अगर हम कुछेक मौजूदा पाठ्यक्रमों में सिर्फ डिजिटल लेंस उपलब्ध करा दें तो तो उससे हम काफी आगे जा सकते हैं। मैं सोचती हूं कि उम्र के हिसाब से उनमें शुरू में ही दक्षता विकसित करने के कई रास्ते हैं।
इसका लैंगिकता से कुछ लेना-देना नहीं है। यह सिर्फ उन लोगों के लिए है जिनसे ऑनलाइन मुलाकात होती है- जो कई बार वे नहीं होते जो वे बताते हैं। या फिर कोई वयस्क आपसे संबंध बनाने की कोशिश करता है, अगर कोई आपको धमकी देता है तो यह आपके लिए खतरे की लाल झंडी है और आप हमारे पास आ सकते हैं। मैं इस बारे में कम उम्र के बच्चों के लिए टुकड़ों में राष्ट्रव्यापी डिजिटल सुरक्षा शिक्षा की पैरोकार हूं क्योंकि माता-पिता की कई तरह की व्यवस्तताएं होती हैं। इसलिए अगर स्कूली पाठ्यक्रम में इस पर थोड़ा-बहुत भी ध्यान दिया जाए, तो इस फासले को पाटने में काफी मदद मिल सकती है।
इंटरनेट का लगातार विस्तार और विकास हो रहा है, और इसके साथ इसमें कई अंधेरे कोने भी पनप रहे हैं जिनके बारे में वेब सर्फिंग करने वाले माता–पिता और बच्चों को जानकारी नहीं होती। माता–पिता को किस तरह के मार्कर और प्रवृत्तियों के बारे में जागरूक रहने की जरूरत है खासकर, जब वे अपने बच्चे को ऑनलाइन उत्पीड़न से सुरक्षा देने के उपायों के बारे में कोशिश कर रहे हों?
हम इस पूरे विचार को ऑनलाइन ग्रूमिंग के रूप में देखते हैं-जब एक वयस्क अपराधी किसी बच्चे से दोस्ती करता है, वह आमतौर पर अपनी पहचान के बारे में झूठ बोलता है, वह उससे अपनी अंतरंग तस्वीरों को साझा करने, निजी तौर पर मिलने या लाइव स्ट्रीमिंग के दौरान अपने कपड़े उतारने या फिर उन पर गलत धंधे के लिए दबाव बना सकता है। यह दोस्ती से लेकर रोमांस जैसा कुछ भी हो सकता है-यह कई तरह के दूसरे रूप में भी सामने आ सकता है। ऑनलाइन ग्रूमर्स कम उम्र के बच्चों से मजबूत संबंध बनाने, उनका भरोसा जीतने और फिर उनका इस्तेमाल करने की कला में बहुत माहिर होते हैं।
एक और चलन जो हम देखते हैं उसे कैपिंग कहा जाता है। ऐसा तब होता है जब कोई गुप्त रूप से रिकॉर्ड करता है, स्क्रीनशॉट लेता है या फिर लाइव स्ट्रीमिंग के दौरान तस्वीरों को कैप्चर करता है और उसे बिना अनुमति के साझा करता है। यह व्यक्ति आपका ग्रूमर, सहकर्मी या साथी कोई भी हो सकता है।
दूसरी जो बात हम देखते हैं- और दरअसल यह इन दिनों अमेरिका में बहुत ज्यादा चलन में भी है-वह सेक्सटॉर्शन। यह कोई भी वयस्क अपराधी, कोई सहकर्मी या रोमांटिक साथी हो सकता है जिसके पास अंतरंग तस्वीरें हैं और वह बच्चे या नौजवान से उसकी बात नहीं मानने पर तस्वीरों को जारी करने की धमकी देता है।
इन स्थितियों के बारे में खास बात क्या है- पहला, इसके पीछे संगठित अपराध होता है और दूसरा, यह कि बहुत तेजी के साथ घंटों के भीतर पूरे मामले को फैला दिया जाता है। एक बच्चा सामान्य स्थिति से खुदकुशी करने की हालत तक पहुंच जाता है क्योंकि यह उत्पीड़न वाले हालात होते हैं और वे उकसाते हैं। माता-पिता को इसके लक्षण बहुत कुछ वैसे ही देखने के मिल सकते हैं जैसे बच्चे के किसी निजी आघात, अलग-थलग रहने, खामोशी या अवसाद की स्थिति में होने पर दिखते।
लेकिन मैं कहूंगी कि माता-पिता के लिए यह ज़रूरी है कि वे कुछ होने से पहले ही अपने बच्चे से बातचीत शुरू कर दें और क्या कुछ चल रहा है, इसके बारे में सवाल पूछते रहें। वे आपके पास अपनी तकलीफ तभी बताने आएंगे जब उन्हें उस वक्त ऐसा लगेगा कि आपइसके लिए सुरक्षित व्यक्ति हैं। उन्हें उस वक्त निश्चित रूप से एक भरोसेमंद वयस्क की ज़रूरत होती है, क्योंकि उन्हें अकेले इससे नहीं निपटना चाहिए।
मैं माता-पिता को बताती हूं कि, एक उम्र में आकर बच्चे उपकरणों और गेम्स तक पहुंच की मांग करते हैं और वे इसे रोकते नहीं। इस पर लगातार बातचीत होती रहती है। इनमें से हर चर्चा इस बात का अवसर होती है कि अभी नहीं और क्यों नहीं।
इसलिए मैं मानती हूं कि माता-पिता उन क्षणों का इस्तेमाल बातचीत शुरू करने के मौके के रूप में कर सकते हैं, क्योंकि अगर बच्चों की अपने माता-पिता और साथियों के साथ नजदीकी है तो उनकी ऑफलाइन सेहत उनके ऑनलाइन स्वस्थ व्यवहार में भी झलकेगी। ये बच्चो को सुरक्षित रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कारक हैं।
डिजिटल सुरक्षा के लिए आपके तीन शीर्ष सुझाव क्या होंगे?
माता-पिता के लिए मेरे तीन शीर्ष सुझाव है, पहला, शुरुआत जल्द करें। डिजिटल सुरक्षा के बारे में बातचीत को खत्म करना आसान है लेकिन उन बातों को जल्द शुरू करना भी ज़रूरी है। कोई बात नहीं, अगर वह बातचीत आदर्श नहीं है, खास बात यह है कि आपे उनसे बातचीत शुरू करें और उनका भरोसा जीतें।
दूसरी बात, उनसे उम्र बढ़ने के साथ भी लगातार बातचीत जारी रखें। खुद को जिज्ञासु बनाए रखें और सुनने की आदत अधिक डालें। संवाद जारी रखें क्योंकि इसी से भरोसे की नींव तैयार होती है।
और अब जो तीसरी बात मैं कहूंगी और जो शायद सबसे महत्वपूर्ण भी है, वह है झिझक को खत्म करना। कोई भी खतरनाक हालत तभी पैदा होती है जब हम बच्चे को अलग-थलग करने की स्थिति बना देते हैं। ऑनलाइन अपराधी की कोशिश बच्चे को अलग-थलग करके उसे खामोश रखने की होती है।
अमेरिका और भारत के बीच किस तरह की विशेषज्ञता और तकनीक को साझा करने की जरूरत है जिससे ऑनलाइन ट्रैफिकिंग और बाल यौन उत्पीड़न जैसे जटिल मुद्दों से निपटने में सहायता मिल सके?
यह एक वैश्विक समस्या है और इसके लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों की ज़रूरत है। कई संगठन है जैसे कि वी प्रोटेक्ट ग्लोबल एलायंस जो इससे जुड़े मसलों पर श्रेष्ठ तौरतरीकों को जारी करते हैं और इसे मॉडल नेशनल रिस्पॉंस के नाम से जाना जाता है। इसमें बच्चों की सुरक्षा और सही प्रकार की प्रक्रियाओं को लागू करने के लिए सभी क्षेत्रों में सर्वोत्तम उपायों को शामिल किया जाता है। इसलिए मुझे लगता है कि, इस तरह के मंचों के माध्यम से सबसे बेहतरीन उपायों को साझा करते रहना वास्तव में काफी महत्वपूर्ण है।
एक अन्य बात, जानकारी और अनुसंधान को साझा करने की है। वी प्रोटेक्ट ग्लोबल एलायंस भी हर दो साल पर वैश्विक परिदृश्य के हिसाब से खतरे का आकलन करता है। यहां तक कि इस यात्रा के दौरान हम भी अपने साथ पिछले चार सालों में बच्चों पर किए गए अनुसंधान और उनके नजरिए को स्पष्ट करने वाली रिपोर्ट के साथ भारत में इस दौरान क्या शोध हुआ, उसे समझने की कोशिश कर रहे हैं- क्योंकि इसमें इंसानी प्रवृत्तियां काम करती है और यह मसला सीमाओं से परे तक जाता है।
इसलिए, मेरा ऐसा मानना है कि बहुत-सी जानकारियां, सहयोग, प्रक्रियाएं और बेहतरीन उपाय है जिन्हें साझा किया जा सकता है। और हमें उन्हें साझा करते रहना चाहिए क्योंकि तकनीक लगातार विकसित होने वाली है और हमें एक समुदाय के रूप में लगातार साथ-साथ सीखते रहना होगा।
भारत में लोगों के साथ बातचीत करते समय सबसे आम सवाल क्या थे?
मैं इस यात्रा के दौरान बहुत-से नौजवानों से बातचीत करके बहुत खुश और सम्मानित महसूस कर रही हूं। यह मेरी खुशकिस्मती थी। हर बार मुझसे जो कुछ सबसे कठिन सवाल पूछे गए, उनमें इस मुद्दे पर माता-पिता, शिक्षकों और वयस्कों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने के बारे में थे क्योंकि यह कोई सिर्फ डिजिटल डिवाइड का ही मामला नहीं था। माता-पिता और वयस्कों के पास जने को लेकर चिंताएं हैं क्योंकि अभी तक इस मामले में कोई साझा समझ विकसित नहीं हो पाई है। तो ऐसे सवाल बहुत बार उठे।
इससे जुड़ा दूसरा सवाल यह उठा कि इन हालात के शिकार पीडि़त को कहां से गोपनीय तौर पर मदद मिल सकती है। अगर वे अपनी बात को वयस्कों से साझा करने में असहज महसूस कर रहे हैं तो उन्हें और कहां से मदद मिल सकती है? इस बारे में भी सवाल थे कि कंटेंट को हटाने में कैसे और कहां से मदद मिल सकती है क्योंकि नुकसान तो वहीं से हैं और खासकर जब वह फैल रहा हो।
हमने शर्मिंदगी और पीडि़त पर दोषारोपण के बारे में भी काफी बातें कीं। इसे कैसे बदला जाए, इसके बारे में बहुत से सवाल थे जिनका उत्तर देना मुश्किल था, क्योंकि यह एक लंबी प्रक्रिया है। यह एक समुदाय, अपने सहकर्मियों की मदद करते युवाओं और माता-पिता के एक-दूसरे से संवाद करने जैसा है जिसमें पीडि़त पर दोष डालने के बजाय, उन लोगों को दोषी ठहराना होता है जो वास्तव में गुनहगार हैं।
हमारे अनुसंधान से यह पता चला है कि शर्मिंदगी और लज्जित होना, दो ऐसे प्राथमिक कारण हैं जिनकी वजह से बच्चे मदद मांगने में हिचकते हैं। असली दोषी तो वह व्यक्ति है जो बिना इजाजत उनकी फोटो को साझा करता है या वह ऑनलाइन उत्पीड़क जो उनको धमकी देता है। इस मसले पर संवाद में बहुत-बार यह बात गुम हो जाती है और हमें बच्चों की सुरक्षा पर ध्यान रखने की ज़रूरत है।
फोटो सौजन्य-सोशल मीडिया