नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए रंभा ) : मिस्र के शर्म अल शेख में 27 वां जलवायु परिवर्तन सम्मेलन समाप्त हो गया। 6 नवंबर से 19 नवंबर तक चले इस सम्मेलन में 90 से अधिक राष्ट्राध्यक्षों और 190 देशों के करीब 35,000 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। 2016 के बाद अफ्रीका में होने वाला ये पहला जलवायु शिखर सम्मेलन था।
सम्मेलन कई मायनो में खास रहा। सबसे महत्पूर्ण तो संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गटेरेश का वह बयान रहा जिसमें उन्होंने पृथ्वी को इमरजेंसी रूम में बताया। उन्होंने कहा कि, शर्म अल शेख में हुई वार्ता में लॉस एंड डेमेज फंड के जरिए न्याय की तरफ एक अहम कदम बढ़ाया गया है, हालांकि उनके मुताबिक कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य पर इस सम्मेलन में पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा कि, हमारा ग्रह अब भी इमरजेंसी रूम में है। हमें कार्बन उत्सर्जन में बहुत बड़ी कटौती करनी होगी और ये ऐसा मुद्दा है जिस पर इस जलवायु सम्मेलन में ध्यान नहीं दिया गया।
A fund for loss and damage is essential – but it’s not an answer if the climate crisis washes a small island state off the map – or turns an entire African country to desert.
The world still needs a giant leap on climate ambition.
— António Guterres (@antonioguterres) November 20, 2022
बाद में उन्होंने इस बारे में एक ट्वीट भी किया। अपने ट्वीट में उन्होंने कहा कि, लॉस एंड डेमेज के लिए फंड बहुत जरूरी है, लेकिन अगर जलवायु संकट ने किसी छोटे द्वीपीय देश को नक्शे से मिटा दिया या किसी पूरे अफ्रीकी देश को रेगिस्तान में बदल दिया तो ये फंड उसका जवाब नहीं है। उन्होंने कहा है कि, जलवायु महत्वकांक्षा के मुद्दे पर दुनिया को बहुत बड़ी छलांग लगाने की जरूरत है।
भारत ने क्या कहा
भारत ने पृथ्वी के सामने मौजूद जलवायु संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए कोष बनाने संबंधी समझौते को ऐतिहासिक उपलब्धि बताया। भारत का कहना था कि दुनिया ने इसके लिए लंबे समय तक इंतजार किया है। भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र य़ादव ने कहा कि, दुनिया को किसानों पर ग्रीन हाउन हाउस गैसों के उत्सर्जन का बोझ डालना ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि करोड़ों किसानों की आजीविका का मुख्य आधार कृषि है और जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा दंश कृषि को ही झेलता पड़ता है। इससे पहले, भारत ने कृषि विरोधी कदमों के लिए विकसित देशों का विरोध करते हुए कहा था कि अमीर देश अपनी जीवनशैली में बदलाव करके उत्सर्जन कम नहीं करना चाहते और वे ‘विदेश में सस्ते समाधानों की तलाश कर रहे हैं।
लॉस एंड डैमेज डील को लेकर खींचतान
लॉस एंड डैमेज डील के साथ सम्मेलन खत्म जरूर हुआ लेकिन डील तक पहुंचने के पहले जोरदार खींचतान हुई। लंबे समय से विकासशील और गरीब देश मांग कर रहे थे कि उन्हें जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले नुकसान की भरपाई की जाए। इसके तहत पांरपरिक तौर पर कार्बन उत्सर्जन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार देशों को ये मदद मुहैया करानी चाहिए थी। इस मुद्दे पर मतभेद इतने गहरे थे सम्मेलन को एक दिन आगे बढ़ाना पड़ा और तब जाकर सहमति बन पाई। समझौते में तय किया गया कि जलवायु संकट से निपटने के लिए एक ‘लॉस एंड डैमेज’ फंड बनाया जाएगा।
डील में पृथ्वी के तापमान में होने वाली वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस की सीमा में रखने की उम्मीदों को जिंदा रखा गया है लेकिन उत्सर्जन में कटौती के नए लक्ष्य तय नहीं किए गए हैं और ना ही जीवाश्म ईंधनों को नियंत्रित करने पर कोई नया समझौता हुआ है।
सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन का खतरा झेल रहे 55 देशों की तरफ से पेश की गई एक रिपोर्ट में कहा गया कि, बीते दो दशक में बदलते मौसम की वजह से उनका जो नुकसान हुआ है, वो 525 अरब डॉलर के आसपास है। कुछ रिसर्चरों का अनुमान है कि 2030 तक ये नुकसान प्रति वर्ष 580 अरब डॉलर हो सकता है।
यही वजह थी कि अमेरिका और यूरोपीय संघ को लॉस एंड डैमेज के मुद्दे पर आपत्ति थी। उन्हें डर था कि देनदारियां बढ़ती ही जाएंगी। यूरोपीय संघ की दलील थी कि चीन अब दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अभी कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों में सबसे ऊपर है, इसलिए उसे भी इस फंड में योगदान देना चाहिए। हालांकि चीन के मुताबिक उसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन अब भी कम है और हाल तक समूचे कार्बन उत्सर्जन में उसका योगदान काफी कम रहा है।
आपको बता दें कि, पृथ्वी का तापमान औद्योगीकरण से पहले के स्तर के मुकाबले अब तक 1.2 डिग्री बढ़ गया है और दुनिया पहले ही जलवायु परिवर्तन की तबाहियों से जूझ रही है। वैज्ञानिक जोर दे रहे हैं कि इस सदी के आखिर तक तापमान में ये वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इसके लिए दुनिया को बड़े पैमाने पर उत्सर्जन में कटौती करनी होगी। लेकिन अभी जिस तरह से कार्बन उत्सर्जन और जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल जारी है उसे देखते हुए नहीं लगता कि इस सीमा को पार करने में बहुत देर लगने वाली है।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया