भुवनेश्वर ( गणतंत्र भारत के लिए सुहासिनी ) :
हम आपको उस पराक्रमी के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं जिसकी कोशिशों के चलते दूर दराज और सुविधाओँ से वंचित जगहों पर कुछ ऐसी सुविधाओं का विकास हो पाया जो जीवन की बुनियादी जरूरतों में शामिल हैं। आज हम आपका परिचय करा रहे हैं बत्ती घर फाउंडेशन की पलक अग्रवाल से। पलक को उड़ीसा के कालाहांडी इलाके आदिवासी इलाकों में लोग प्यार से सोलर दीदी के नाम से भी पुकराते हैं। ये संगठन उड़ीसा के आदिवासियों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए सौर ऊर्जा और आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल के क्षेत्र में काम कर रहा है।
पलक अग्रवाल का बत्ती घर फाउंडेशन उड़ीसा के ग्रामीण समुदायों को टिकाऊ विकास के मौके उपलब्ध कराने के प्रयास में जुटा है। पलक अग्रवाल बत्ती घर की को फाउंडर हैं। कई साल पहले पलक इस बात को लेकर दुविधा में थीं कि उन्हें उड़ीसा जाना चाहिए या फिर अपने मूल निवास स्थान नई दिल्ली में ठाठ की जिंदगी बसर करनी चाहिए। इत्तेफाक से इसी बीच वे गांधी जी के उस बीज मंत्र के मर्म को समझ पाईं जिसमें उन्होंने कहा था कि, जब भी आप दुविधा में हों तो उसके लिए मैं आपको एक नुस्खा समझाता हूं…हमेशा उस वक्त जेहन में उस सबसे दीनहीन इंसान (पुरुष या महिला) का ध्यान कीजिए और अपने आप से सवाल कीजिए कि आप जो कदम उठाने की सोच रहे हैं उससे उस इंसान को कितना फायदा होने वाला है।
पलक के मन में गरीबों का जीवन बेहतर बनाने की ख्वाहिश पहले से मौजूद थी। दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी ) से सस्टेनेबल डवलपमेंट प्रैक्टिस विषय पर मास्टर्स डिग्री हासिल की। मास्टर्स करते हुए पलक ने उड़ीसा के कालाहांडी जिले में ऊर्जा उत्पादन के सूक्ष्म तरीकों के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर शोध किय़ा। इसी दौरान वे कालाहांडी और आदिवासी समाज और वहां के वन क्षेत्रों की मुरीद हो गईं। वहीं उन्होंने तय किया कि अगर इन लोगों की सेवा करनी है तो उनके बीच ही रहना होगा। संरक्षित वन क्षेत्र में आने वाले बलीसराय गांव में उन्होंने एक झोपड़ी में अपनी रिहाइश बनाई। इस गांव में ना तो बिजली थी और ना ही दूसरी बुनियादी सुविधाएं।
पलक ने स्थानीय लोगों की मदद के लिए अपनी झोपड़ी को ही एक सौर ऊर्जा केंद्र में तब्दील कर दिया। जहां वे लोगों को फोटो क़ॉपी, फोटोग्राफी और वीडियो सेवाएं उपलब्ध कराती थीं। इसी के चलते लोग उन्हें प्यार से सोलर दीदी के नाम से पुकारने लगे। गांव वालों को अपनी दीदी में उम्मीद दिखी तो उन्होंने उनसे सौर ऊर्जा का इस्तेमाल टायर में हवा भरने वाली मशीन और गन्ने का रस निकालने वाली मशीन में करने की गुजारिश कर डाली। एक स्वयंसेवी संगठन के मदद से पलक ने इन उपकरणों के ई मॉडल विकसित किए और कुछ ही दिनों में सौर ऊर्जा से पंचर बनाने वाली दुकानें और गन्ने का रस निकालने वाली मशीने बन गई लोग इसका जम कर इस्तेमाल भी करने लगे।
पलक अपने फाउंडेशन के माध्यम से कोशिश कर रही हैं कि स्थानीय स्तर पर जरूरत वाले उपकरणों को विकसित किया जा सके। इसमें अनाज पीसने वाली पोर्टेबल मशीन, सेनेटरी नेपकिन के निस्तारण के लिए उपकरण और ताजे फलों और संब्जियों के संरक्षण के लिए कोल्ड स्टोरेज कक्ष का विकास शामिल है।
पलक ने पिछले दिनों बत्तीघर को एक प्राइवेट कंपनी के रूप में रजिस्टर कराया है ताकि उसके माध्यम से वे अपने उत्पादों को बेच सकें और उनसे होने वाले फायदे को उपकरणों के विकास में लगा सकें। पलक ये भी चाहती हैं कि उड़ीसा में बत्तीघर एक ऐसा केंद्र विकसित कर सके जहां स्थानीय समस्याओं का निराकरण स्थानीय स्तर पर ही विशेषज्ञों की मदद से किया जा सके।
फोटो सौजन्य – सोशल मीडिया