नई दिल्ली 03 अगस्त ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र ) : अमेरिका के हाउस ऑफ रीप्रेजेंटेटिव्स की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी ताइवान पहुंच गई हैं। चीन की तमाम चेतावनियों के बावजूद पेलोसी की ताइवान यात्रा से चीन बिलबिला उठा है। चीन ने पेलोसी के विमान को रास्ता ना मिले इसलिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया था और उन्हें फिलीपींस के रास्ते ताइवान आना पड़ा। ताइवान की हवाई सीमा में कल चीन के दर्जनों लड़ाकू विमानों ने घुसपैठ की। चीन से पेलोसी की इस यात्रा को भड़काने वाली कार्रवाई बताया है। ऐसा माना जा रहा है कि प्रतिशोध लेने के लिए चीन कुछ चुनिंदा ठिकानों पर हमला कर सकता है।
अमेरिका और चीन के बीच हालात बेहद तनावपूर्ण बन गए हैं। रूस ने कहा है कि अमेरिका भड़काने वाली हरकत कर रहा है। जर्मनी ने अमेरिका के साथ अपनी प्रतिबद्धता को जाहिर किया है।
25 वर्षों में पहली बार अमेरिका के इस स्तर के नेता का यूं ताइवान जाना चीन को सख्त नागवार गुजरा है। पेलोसी के ताइवान जाने की खबरें आने के साथ ही चीन ने कई बार अमेरिका को चेतावनी दी और कहा कि अगर ऐसा हुआ तो वो चुप नहीं बैठेगा और सख्त जवाब देगा। पेलोसी की यात्रा को चीन ने ताइवान खाड़ी की शांति के लिए गंभीर नुकसान बताया। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि इस यात्रा का चीन-अमेरिका संबंधों की राजनीतिक नींव पर गंभीर असर होगा।
इस बीच, पेलोसी ने ताइवान जाकर वहां की संसद को संबोधित किया और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से मुलाकात की। संसद में उन्होंने कहा कि, हम दुनिया के सबसे स्वतंत्र समाजों में से एक होने के लिए ताइवान की तारीफ करते हैं। उन्होंने देश की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन को उनके नेतृत्व के लिए धन्यवाद दिया और दोनों देशों के बीच संसदीय सहयोग बढ़ाने का आह्वान भी किया।
शी को सीधे चुनौती
आपको बता दें कि, चीन को लेकर नैंसी पेलोसी का रुख जगजाहिर है और वे अपने पूरे राजनीतिक करियर के दौरान कई बार ऐसी बयानबाजी और गतिविधियों करती रही हैं जो चीन के शब्दों में उसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय एकता को चुनौती हैं। लेकिन पेलोसी का इस वक्त ताइवान का दौरा करना सीधे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को चुनौती माना जा रहा है। कूटनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि, पेलोसी का ये दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब अमेरिका और चीन के संबंध बदलाव के दौर से गुजर रहे है और ताइवान की खाड़ी को लेकर भू-राजनीतिक तनाव बढ़ा हुआ है। ये दौरा इस परिप्रेक्ष्य में भी खास है कि अगर चीन बलपूर्वक ताइवान को कब्जाने की कोशिश करता है तो क्या अमेरिका उसकी मदद को आगे आएगा।
इस दौरे का चीन की घरेलू राजनीति पर व्यापक असर पड़ने वाला है। दरअसल, इसी साल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 20 वीं कांग्रेस होनी है जिसमें शी जिनपिंग लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति कार्यकाल पाने का दावा करेंगे और पेलोसी ने सीधे-सीधे शी के नेतृत्व को चुनौती दे दी है। संभव है कि उनकी राह में रोड़ा अटकाने वाले किसी भी कदम का बीजिंग सख्त जवाब दे। अगर चीन ने ऐसा नहीं किया तो शी की छवि एक कमजोर राजनेता की बनेगी।
हालंकि, अमेरिका और खुद नैंसी पेलोसी भी कह रहे हैं कि ये दौरा किसी भी तरह से उसकी वन चाइना नीति से अलग नहीं है। पेलोसी ने कहा कि, ये हमारे संसदीय दल का दौरा है और ये ताइवान के जीवंत लोकतंत्र के प्रति अमेरिकी प्रतिबद्धता का सम्मान है। ये बाइडेन सरकार की यात्रा नहीं है। ये अमेरिकी सांसदों के दल का एक दौरा है जिसकी अध्यक्षता नैंसी पेलोसी कर रही हैं क्योंकि वे हाउस ऑफ रीप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर हैं। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भी अपने बयान में स्पष्ट कर दिया है कि चीन को उकसाने की उसकी कोई मंशा नहीं है।
लेकिन क्या ये दलील चीन के गले उतरती है ? पिछले ढाई दशक में चीन की ताकत में हुए इजाफे से उसका चश्मा बदल गया है। 1990 के दशक में सदन के स्पीकर की यात्रा की तुलना मौजूदा स्पीकर की यात्रा से नहीं की जा सकती। बीजिंग तो इसे वॉशिंगटन द्वारा वन चाइना नीति के विरोध के रूप में ही देख रहा है।
चीन की चाल पर नजर
अमेरिका समेत पूरी दुनिया के देश चीन के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद ही इस बात की आशंका जताई जा रही थी कि चीन भी अब ताइवान के साथ ऐसा कर सकता है। पिछले एक साल में कई बार चीनी लड़ाकू विमान ताइवान के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते रहे हैं और पेलोसी के ताइवान पहुंचते ही चीनी तोपों ने अभ्यास-स्वरूप गोले दागने शुरू कर दिए।
विशेषज्ञ मानते हैं कि, चीन, ताइवान से पेलोसी के विमान को जाने तक से रोक सकता है और ताइवान की हवाई नाकेबंदी कर सकता है। चीन अगर ये कार्रवाई करता है तो मामला और गरमाएगा क्योंकि अमेरिकी नौसेना की चार बेड़े ताइवान के आसपास ही मौजूद हैं।
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