न्यूज़ डेस्क (गणतंत्र भारत) देहरादून : पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड का नया मुख्यमंत्री चुना गया है। वे राज्य के 11 मुख्यमंत्री होंगे। विधायक दल की बैठक में उनके नाम पर सहमति बनने के बाद मुहर लगी।
पुष्कर सिंह धामी का जन्म 16 सिंतबर 1975 को उत्तराखंड के कुमायूं अंचल में पिथौरागढ़ जिले के टुंडी गांव में हुआ। लेकिन वे राज्य विधानसभा के लिए ऊधम सिंह नगर के खटीमा विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए। वे लगातार दो बार खटीमा से विधायक चुने गए हैं।
पुष्कर सिंह धामी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे हैं और छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय रहे हैं। उत्तराखंड की राजनीति में उन्हें भगत सिंह कोश्यारी का करीबी बताया जाता है जो इस समय महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं।
धामी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे हैं। इसके अलावा वे दो बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी बनाए गए। उत्तराखंड के गठन के बाद वे राज्य के मुख्यमंत्री के साथ बतौर सलाहकार 2002 तक कार्यरत रहे। उन्होंने 2010 से 2012 तक शहरी विकास अनुश्रवण परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। 2012 में वे विधानसभा चुनाव में जीत कर पहली बार विधायक बने।
मुख्यमंत्री की रेस में कैसे निकले आगे
पुष्कर सिंह धामी के अलावा मुख्यमंत्री पद के लिए दो और नाम दौड़ में थे। सतपाल महाराज और धन सिंह रावत। ये दोनों नाम जब तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया था तब भी इस पद की रेस में शामिल थे। लेकिन सूत्रों की माने तो बीजेपी आलाकमान राज्य की राजनीति को इस बार गढ़वाल से बाहर शिफ्ट करना चाहता था। इसीलिए उसे कुमायूं से किसी चेहरे की तलाश थी और यही बात पुष्कर सिंह धामी के पक्ष में चली गई।
दूसरी बात, वे युवा हैं और पार्टी को आगामी विधानसभा चुनाव में युवा वोटरों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए युवा चेहरे की तलाश थी। धामी इन सारे समीकरणों पर पार्टी की तलाश पर खरे उतरते हैं। वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेड़ा का कहना है कि, बीजेपी आलाकमान इस बार राज्य की राजनीति के फोकल सेंटर को गढ़वाल से बाहर ले जाना चाहता था और सतपाल महाराज और धन सिंह रावत के मामले में ये दोनों ही बातें नहीं थी।
इसके अलावा, एक और बात की तरफ लखेड़ा इशारा करते हैं। वे बताते हैं कि राज्य में बीजेपी को चुनौती देने वाले कांग्रेस के नेता हरीश रावत उत्तराखंड के कुमायूं परिक्षेत्र से आते हैं। उन्हें और उनके नेतृत्व को चुनौती देने के लिए इसी इलाके का नेता चाहिए जो पुष्कर सिंह धामी हो सकते हैं। बीजेपी एक तरह से धामी को मुख्यमंत्री बना कर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश कर रही है।
कांटों का ताज
उत्तराखंड में राज्य विधानसभा के चुनाव कुछ ही महीनों बाद होने हैं। राज्य में बीजेपी जिस तरह से अंदरूनी गुटबाजी का शिकार है उसके चलते पार्टी आगामी चुनावों को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं है। ऐसे में पार्टी ने राज्य में नेतृत्व बदल कर जनता में ये संदेश देने के की कोशिश की है कि पार्टी नेतृत्व राज्य की बेहतरी के लिए कदम उठाने में कतई हिचकेगा नहीं। भले ही तीरथ सिंह रावत ने राज्य में चार महीने ही शासन किया हो लेकिन उनकी कार्यशैली और कार्यक्षमता पर सवाल उठने शुरू हो गए थे। संवैधानिक बाध्यता का भले ही हवाला दिया गया हो लेकिन तीरथ सिंह रावत के मुख्यमंत्री रहते विधानसभा चुनावों में जाना बीजेपी को कहीं ज्यादा नुकसानदायक लग रहा था।
पुष्कर सिंह धामी के कंधे पर नेतृत्व का बोझ डाल कर पार्टी ने राज्य की राजनीति में क्षेत्रीय संतुलन को साधने की कोशिश तो की है लेकिन ये कोशिश कितनी कारगर होगी इसका जवाब फिलहाल तो नहीं है। धामी के पास वक्त बहुत कम है। पार्टी में गुटबाजी का संकट अलग है। राजनीतिक अनुभवहीनता एक अलग संकट है और उनके सामने हरीश रावत जैसा अनुभवी और राजनीति का माहिर खिलाड़ी बतौर प्रतिपक्ष है। डगर मुश्किल और चुनौतियों से भरी है।
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