नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : इस बार के बजट में बिहार को बाढ़ नियंत्रण के लिए 11500 करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया गया है। हर बार की तरह इस साल भी यूपी और देश के कई अन्य राज्य भी बाढ़ से जूझ रहे हैं। आजादी के बाद से बिहार और अन्य राज्यों में बाढ़ नियंत्रण के नाम पर अरबों रुपये पानी में बहा दिए गए हैं, लेकिन समस्या हल नहीं हुई है और न अब होने के खास आसार हैं। जाहिर है, इसका जिम्मेदार देश का बेलगाम सरकारी लूटतंत्र है, वरना अब तक बाढ़ के कहर को काफी हद तक रोका जा सकता था। वैसे, बाढ़ का मसला तो गंभीर है, लेकिन आज भी जरा सी बारिश से देश के तमाम शहर-कस्बे पानी में डूब जाते हैं। जिंदगी की रफ्तार ठहर जाती है।
दिल्ली का हुआ था बुरा हाल
पिछले साल बारिश में दिल्ली का क्या हाल हुआ था, वह पूरी दुनिया ने देखा था। इस बार दिल्ली में उस हिसाब से ज्यादा पानी तो नहीं भरा, लेकिन गुजरात, महाराष्ट्र, केरल और अन्य कई राज्यों में बारिश ने आफत खड़ी कर दी है। तमाम शहरों के ड्रेनेज सिस्टम की एक बार फिर पोल खुल गई। पता चला कि ड्रेनेज सिस्टम को दुरुस्त करने के नाम पर अरबों रुपये फिर ठिकाने लगा दिए गए और किसी की कोई जवाबदेही नहीं। सवाल यह है कि इतने सालों बाद भी हम अपने देश को जलभराव और बाढ़ से बचाने में कारगर क्यों नहीं हुए।
नाकाबिल हैं क्या इंजानियर
सवाल यह भी है कि क्या हमारे इंजीनियर इतने काबिल नहीं हैं कि वह किसी भी शहर या कस्बे के लिए कामयाब ड्रेनेज सिस्टम का विकास कर सकें, अपने गांवों, शहरों को बाढ़ से बचा सकें। ऐसा हो सकता है, लेकिन अफसरशाही और करप्शन के कारण यह नहीं हो पा रहा है। तंग और निचले इलाकों में भी पानी की निकासी के लिए जरूरी इंतजाम किए जा सकते हैं। देश की राजधानी दिल्ली में भी, सरकार चाहे किसी भी दल की रही हो, उसने राजधानी को डूबने से बचाने के ठोस उपाय करने में कभी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। बारिश का दौर शुरू होने से पहले न ठीक से नालों और नालियों की सफाई की जाती है और न ही सड़कों से लगे ड्रेनेज सिस्टम को साफ किया जाता है। अलबत्ता यह काम कागजों में जरूर कर लिया जाता है। यही हाल देश के और शहरों का है।
अब बाढ़ का दौर
भारी बारिश के कारण इस समय देश की ज्यादातर नदियां उफनाई हुई हैं। पिछली बार भारी बारिश और बाढ़ ने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में खासी तबाही मचाई थी। अकेले हिमाचल में तब करीब सौ लोगों की मौत हो गई थी और अरबों रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ था। देश में तमाम इलाकों में लोगों और सरकारों ने नदियों के डूब क्षेत्र में निर्माण कर दिए हैं और अब नजीता सामने आ रहा है। मसलन, यमुना कभी दिल्ली के लाल किले के बगल से होकर गुजरती थी। अब यमुना से सटे इलाके में नदी को पीछे धकेलकर इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम, बस अड्डा, बस डिपो और न जाने कितनी इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। पिछली बार यमुना में पानी बढ़ा तो वह अपने पुराने रास्ते तक आ गई। ऐसा ही हाल हिमाचल और उत्तराखंड में देखने को मिला। यहां नदी के डूब क्षेत्र में मकान और होटल बना दिए गए, जिनमें से कई व्यास और पार्वती नदी के कहर के शिकार हो गए। ऐसा ही हाल कई अन्य राज्यों में है। नोएडा के पास लोग हिंडन के डूब क्षेत्र में घुस गए हैं। यहां भी कभी भी कोई अनहोनी हो सकती है।
डूब क्षेत्रों को चिन्हित करें
सरकारों को चाहिए कि वह अपने-अपने राज्य में डूब क्षेत्रों को स्पष्ट रूप से चिन्हित करें और वहां किसी भी तरह का कोई निर्माण न होने दें और न ही किसी को वहां किसी भी रूप में बसने दें। शहरी इलाकों में डूब क्षेत्र के बाद मजबूत तटबंध बनाए जा सकते हैं, ताकि आबादी वाले इलाकों में नदियों का पानी न भर सके। इन तटबंधों पर इतना खर्च नहीं आएगा, जितना कि बाढ़ से नुकसान होता है। इसी तरह नदियों के लिए पर्याप्त डूब क्षेत्र छोड़कर तटबंधों का निर्माण किया जाना चाहिए, ताकि हर साल बाढ़ से होने वाले भारी नुकसान को रोका जा सके।
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