जयपुर (गणतंत्र भारत के लिए कैलाश शर्मा) : राजस्थान में राज्यसभा चुनाव बीजेपी के लिए मोदी बनाम संघ हो गया है। एक तरफ नरेन्द्र मोदी समर्थित उम्मीदवार सुभाष चंद्रा को बीजेपी समर्थित उम्मीदवार की संज्ञा दी गई थी तो दूसरी तरफ बीजेपी के आधिकारिक उम्मीदवार को संघ समर्थित बताया जा रहा है।
बीजेपी के इन दोनों उम्मीदवारों के बीच ही पार्टी के 71 वोटों का बंटवारा होना है। कभी बीजेपी की सहयोगी रही हनुमान बेनीवाल की पार्टी ने अभी तक बीजेपी प्रत्याशियों को समर्थन अपना घोषित नहीं किया है। अन्य राजनीतिक दलों जैसे कि, वामपंथी और बीटीपी से बीजेपी को वोट मिलने वाले नहीं। निर्दलीय कांग्रेस के साथ हैं। ऐसे में बीजेपी को पार्टी से बाहर से कुछ बचता या मिलता दिख नहीं रहा।
शनिवार को भी सरदार पटेल मार्ग, सी स्कीम, जयपुर स्थित बीजेपी के प्रदेश मुख्यालय पर पार्टी के बड़े नेताओं का जमावड़ा हुआ। इनमें राज्यसभा चुनाव के लिए राजस्थान प्रभारी नरेन्द्र सिंह तोमर, पार्टी के राज्य प्रभारी अरुण सिंह, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे, प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष सतीश पूनिया, बीजेपी विधायक दल नेता भाया गुलाबचंद कटारिया, उपनेता राजेंद्र सिंह राठौड़, महामंत्री संगठन चंद्र शेखर, राज्यसभा चुनाव प्रत्याशी घनश्याम तिवाड़ी और सुभाषचंद्रा मौजूद थे।
बैठक में चुनावों को लेकर चिंता और अतिरिक्त वोटों का जुगाड़ इसी की चिंता थी। सब हताश थे। ये भी तय नहीं कर पा रहे थे कि करना क्या है। ये स्थिति सामने आनी ही थी, घर मे नहीं गुड़ की भेली और गांव को जीमण पे बुला लिया।
आठ जनों के मन में ये चिता थी कि अगर सुभाषचंद्रा हार गए तो नरेन्द्र मोदी को क्या मुंह दिखाएंगे। वस्तुतः सुभाष चंद्रा के पिता जी नंदकिशोर जी गोयनका के नरेन्द्र मोदी से बहुत मान-व्यवहार का रिश्ता रहा है। तभी जी समूह जब एस्सैल वर्ल्ड वाले मामले में बड़े आर्थिक संकट का शिकार हो गया था, तो नरेन्द्र मोदी के सहयोग से वो संकट दूर हुआ था। इसलिए सुभाष चंद्रा और नरेन्द्र मोदी का रिलेशन ऐसा है कि सुभाष चंद्रा यदि हार गए, जैसा कि लग भी रहा है तो वो हार सुभाष चंद्रा की नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी की होगी।
ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या राजस्थान की बीजेपी और इसके नेता चाहेंगे कि नरेन्द्र मोदी की हार हो। बस इस प्रश्न के जवाब में बहुत से तथ्य हैं।
उधर उत्तर प्रदेश चुनाव की तरह संघ ने राजस्थान में लामबंदी कर ली है और घनश्याम तिवाड़ी की जीत को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। इस वजह से ये चुनाव बीजेपी की अंदरूनी राजनीति में नरेंद्र मोदी बनाम संघ हो गया है।
समर वैकेशन (गर्मियों की छुट्टियों) का दौर चल रहा है। गर्माहट के इस दौर में बीजेपी की प्रदेश राजनीति की खबरें अधिक चर्चित हैं। इतना निश्चित है कि बीजेपी का मनोबल कमजोर है और पार्टी नेताओं के बयान/ट्वीट भरोसेमंद कम तथा नाटकीय अधिक नजर आ रहे हैं।
जो भी परिदृश्य है, उससे लगता है राजस्थान में बीजेपी के पतन और पराभव का दौर शुरू हो गया है। नरेन्द्र मोदी बनाम संघ की ये जंग क्या गुल खिलाएगी इसका जवाब आने वाले समय में देखने को मिलेगा।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया