नई दिल्ली 25 जुलाई 2022 (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : सरकार कैंसर, डायबिटीज और दिल के रोगों की दवाओं के दामों में कमी करने का इरादा रखती है। संकेत है कि वह 15 अगस्त को इसका ऐलान कर सकती है। इन दवाओं के दामों में कमी करने की मांग एक लंबे अरसे से की जा रही है। गौरतलब है कि देश में हाल के सालों में कैंसर, डायबिटीज और दिल के रोगियों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है और समाज के हर तबके के लोग इनकी चपेट में आ रहे हैं। ऐसे में दवाओं के बढ़ते दाम गरीब तबके पर कहर ढा रहे हैं।
कैसे तय होती हैं दवाओं की कीमत ?
देश में दवाओं की कीमतें दो तरह से तय होती हैं। एक तो वे दवाएं हैं, जो मूल्य नियंत्रण के दायरे में आती हैं और इनकी कीमतें सरकार तय करती है। दूसरी, वे दवाएं हैं जो पेटेंटेड या ब्रांडेड हैं और दवा कंपनियां ही इनकी कीमतें तय करती हैं। ये मूल्य नियंत्रण के दायरे से बाहर होती हैं। इसके कारण इनकी कीमतों पर फिलहाल सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता है। मूल्य नियंत्रण के दायरे में फिलहाल 354 बल्क ड्रग्स और इनके संयोजन से बनने वाली करीब 850 दवाएं हैं। 2013 के ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर के तहत इनके दाम तय किए जाते हैं और दवा कंपनियां इनके मूल्य में हर साल 10 प्रतिशत तक का इजाफा कर सकती हैं।
लागत पर तय़ हो दवा की कीमत
हेल्थ एक्टिविस्ट इस नीति का लगातार विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि जरूरी दवाओं की लिस्ट में ज्यादा से ज्यादा दवाओं को रखा जाना चाहिए और दवाओं की कीमत लागत के आधार पर तय की जानी चाहिए। इसके साथ ही कंपनी से लेकर रिटेलर तक का मार्जिन सरकार को तय करना चाहिए। ऐसा न होने के कारण दवाओं की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं और मरीजों की दिक्कतें बढ़ रही हैं।
दरअसल, अभी के नियमों के अनुसार, मूल्य नियंत्रण के दायरे में आने वाली दवाओं को बनाने वाली हर कंपनी की, उस दवा के बाजार में कम से कम एक प्रतिशत हिस्सेदारी होनी चाहिए और ऐसी कंपनियों के औसत रेट के आधार पर दवा का अधिकतम मूल्य तय किया जाता है। हेल्थ एक्टिविस्ट पहले दिन से इस नीति का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इसके कारण दवाओं के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं। ऑल इंडिया ड्रग ऐक्शन नेटवर्क की मालिनी ऐशोला कहती हैं कि सरकार को लागत के आधार पर दवाओं के दाम तय करने चाहिए।
सरकार बदलेगी मूल्य निर्धारण का फार्मूला
सूत्रों का कहना है कि सरकार अब दवाओं के रेट तय करने के फॉर्मूले को तो बदलने पर विचार कर ही रही है, साथ ही वो जरूरी दवाओं की राष्ट्रीय सूची में कई और दवाओं को जोड़ना चाहती है, ताकि लोगों को अधिक से अधिक राहत मिल सके। सरकार ने कुछ अर्सा पहले कैंसर की 41 दवाओं के दामों में करीब 90 प्रतिशत तक की कमी की थी। इससे पहले उसने जर्मनी की बायर कंपनी की किडनी के कैंसर की एक दवा को बनाने का अधिकार हैदराबाद की एक कंपनी- नैटको को दिया। इससे जहां पहले इस दवा की एक महीने की खुराक करीब 36 लाख रुपए की पड़ती थी, उसमें 90 प्रतिशत तक की कमी आ गई थी। सरकार ने इस बाबत पेटेंट के मामले में अपने विशेषाधिकारों का इस्तेमाल किया था।
सरकार से लंबे अर्से से पेटेंटेड दवाओं के दामों पर भी लगाम लगाने की मांग की जा रही है, लेकिन ऐसी ज्यादातर दवाएं विदेशी कंपनियां बनाती हैं। इस कारण अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण इनकी कीमतों पर लगाम नहीं लग पा रही है।
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