नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए न्यूज़ डेस्क) : सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोप में प्रदर्शनकारियों से वसूले गए पैसे रिफंड करने का आदेश दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस फैसले का गलत संदेश जाने की दलील देते हुए शीर्ष अदालत से इसे रोकने का आग्रह किया है। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से मामले की पैरवी कर रही अधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने शीर्ष न्यायालय से कहा कि विधानसभा चुनाव की वजह से राज्य में आचार संहिता लगी हुई है और कोर्ट वसूली की रकम वापस करने जैसा कोई निर्णय न देकर यथास्थिति बनाए रखे। उन्होंने ये भी दलील दी कि इससे प्रदर्शनकारियों को लगने लगेगा कि वे सरकारी संपत्ति को बेखौफ नुकसान पहुंचा सकते हैं। गरिमा प्रसाद ने अदालत को बताया कि, इस तरह की सख्त कार्रवाई के कारण ही उन प्रदर्शनों के बाद राज्य में इस तरह के विरोध प्रदर्शन नहीं हुए।
पड़ताल में क्या आया सामने
इस मामले में अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने कुछ दिनों पहले एक पड़ताल कराई थी जिसमें पाया गया कि नोटिस को इशू करने का पैटर्न एक सा है और इसमें से बहुतेरे रिक्शाचालक और खोंमचा लगाने वाले हैं। पिछले महीने, लखनऊ के अतिरिक्त जिलाधिकारी ने ऐसे तमाम नोटिस जारी किए जिसमें से अखबार ने 46 नोटिसों का विश्लेषण किया। नोटिस जिस तरह से जारी किए गए उससे जाहिर होता था कि प्रशासन इस मामले में अभियोजन और जज दोनों ही भूमिका एक साथ निभा रहा था। यानी अफसर खुद ही आरोप लगाने वाले और खुद ही फैसला सुनाने वाले।
इसी तरह से, कानपुर में भेजे गए नोटिसों में से, 15 परिवारों के नोटिसों की पड़ताल की गई। इन परिवारों में मजदूरी करने वाले, रिक्शाचालक और दूधिए शामिल हैं। इन लोगों मे से प्रत्येक से 13476 रुपए का अर्थदंड वसूला गया। इन लोगों का कहना है कि उन्हें तो पता भी नहीं कि ये किस हिसाब से उनसे हर्जाना वसूला गया और उन्होंने किस संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है।
क्या कहा शीर्ष आदालत ने
अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस बारे मे प्रकाशित अपनी खबर में बताया है कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी अधिकारियों द्वारा वसूली गई राशि को अन्यायपूर्ण करार दिया है। अदालत का कहना है कि ये साल 2009 और 2018 में शीर्ष न्यायालय के दिए दो फ़ैसलों के ख़िलाफ़ है। पहले के आदेशों में कहा गया था कि इस तरह की कोई भी वसूली संबंधित राज्य के उच्च न्यायालय की निगरानी में न्यायिक न्यायाधिकरण ही शुरू कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्य़ायमूर्ति सूर्य कांत की बेंच ने ये भी स्पष्ट किया कि उत्तर प्रदेश सरकार नए क़ानून यूपी रिकवरी ऑफ डैमेज टू प्रॉपर्टी एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी एक्ट, 2020 के तहत बनाए गए न्यायिक न्यायाधिकरण के ज़रिए नए सिरे से वसूली की प्रक्रिया को शुरू कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से नाराज़गी जताए जाने के बाद उत्तर प्रदेश सरार ने पीठ को बताया कि 14 और 15 फ़रवरी को दो आदेश जारी किए गए थे जिसके तहत 274 प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई को वापस ले लिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की दलील को ठुकराते हुए कहा कि अगर सरकार प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ जारी कारण बताओ नोटिस के साथ ही उन पर कार्रवाई को भी वापस ले चुकी है तो राज्य अब उनसे वसूली गई राशि को लौटाने के लिए बाध्य है। कोर्ट ने राज्य सरकार को ये भी स्पष्ट कर दिया कि आचार संहिता किसी भी सरकार को क़ानून लागू करने या फिर अदालत के आदेश का पालन करने से नहीं रोकती है।
याचिकाकर्ता की क्या थी दलील
इससे पहले, राज्य सरकार की कार्रवाई को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता की ओर से वकील नीलोफ़र ख़ान ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने रिक्शाचालकों, छोटी-मोटी दुकान चलाकर गुज़ारा करने वाले ग़रीब लोगों के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई की है। उन्होंने बताया कि इन लोगों की संपत्तियां ज़ब्त की गईं और कई लोगों को अपनी संपत्ति बेचकर प्रदर्शन के दौरान हुए नुक़सान की भरपाई करने को मजबूर किया गया। उन्होंने कोर्ट से अपील की कि वो राज्य सरकार को प्रदर्शनकारियों से वसूले गए पैसे लौटाने का आदेश दे।
इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि वो 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के ख़िलाफ़ हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान सरकारी संपत्तियों को नुक़सान पहुंचाने के एवज़ में बतौर हर्जाना प्रदर्शनकारियों से वसूली गई करोड़ों रुपए की रकम वापस करे।
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