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छत पर खेत : पैसे बचाए, पर्यावरण सुधारे

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नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए जे.पी. सिंह ):

शहर के लोगो में साग-सब्जी और फलों की बढ़ती मांग की पूर्ति के लिए अंधाधुंध रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, फलों को पकाने के लिए या फिर सब्जी को आकर्षक बनाने के लिए घातक रसायनों का इस्तेमाल भी बढ़ता जा रहा है। इससे साग सब्जियों की क्वालिटी काफी गिरी है। इन साग-सब्जियों में हानिकारक तत्व निर्धारित सीमा से ज्यादा पाए जाते हैं जो इंसान के स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं। अब सवाल ये है की क्या केमिकल से तैयार होने वाली इन सब्जियों का कोई विकल्प है? देश भर में आज ये चर्चा शुरू हो गई है कि भाई अगर ये न खाएं तो फिर खांए क्या? इस सवाल का  जवाब को ढूंढने के लिए हम लखनऊ के मुंशीपुलिया इलाके में रहने वाले महेंद्र कुमार सचान जी के घर पहुंचे। जवाब हमें उनके घर की छत पर  600 स्कवायर फीट में की गई खेती से मिल गया।

12 साल से नहीं खरीदी सब्जियां

केमिकल खेती से होने वाले नुकसान को बताने वाला ये शख्स पेशे से  किसान नही  है बल्कि एक आम शहरी है। पेशे से वेटनरी स्पेशलिसट सचान साहब ने केमिकल खेती से होने वाले नुकसान को देखते हूए ये अनूठी पहल की है। जैविक तरीके से उगाए गए इनके छत के पौधों को देखने पर लगता है कि मानों वे खेतों में लहलहाती फ़सल हो। शहरों में रहने वाले कई लोगों को अक्सर ये शिकायतें रहती है कि उनके पास टाइम नहीं है, ज़मीन नहीं है, फिर वे खेती-किसानी की भला कैसे सोच सकते हैं? ऐसे लोगों को लखनऊ के महेन्द्र कुमार सचान से काफी कुछ सीखने की ज़रूरत है। उन्होने पिछले 12 साल से बाजार से कोई सब्जी नहीं खरीदी क्योंकि वे घर की छत पर ही जैविक सब्जियों को उगाकर उसका इस्तेमाल करते है। छत पर सेम, पालक, लौकी, बैंगन, पत्तागोभी, मूली समेत कई सब्जियां लगा रखी है। महेंद्र बताते हैं कि, वर्ष 2008 में मैंने छत पर बागवानी शुरु की थी। पहले कुछ ही सब्जियां थी। धीरे-धीरे मौसम के हिसाब से सब्जियां उगाने लगे। आज हम मौसम के अनुसार  20 -25 तरह की सब्जियां उगा रहे हैं।

कैसे करें छत पर खेती

महेन्द्र सचान बताते है आप छत पर खेती करना चाहते हैं तो आपको थोड़ी सावधानी रखने की जरूरत है। जैसे- छत पर गीली मिट्टी बिछाकर खेती नहीं की जा सकती, क्योंकि पानी रिसाव (सीपेज) से छत और मकान को नुकसान हो सकता है। इसके लिए कई तरह के उपायों को अपनाया जा सकता है, जैसे सीपेज रोधी केमिकल की कोटिंग के साथ हाई क्वालिटी वाली पॉलीथिन शीट बिछाकर क्यारी बनाई जा सकती है। वैसे घर बनाते समय अगर पहले से ही पूरी योजना के तहत क्यारी बनायी जाए तो छत के एक हिस्से में 3-4 फीट चौड़ी और 5-10 फीट लंबी क्यारी छत की सतह पर और छत की सतह पर 1/2 फुट ऊंची आरसीसी क्यारी बनाई जा सकती है। इसके अलावा डिजाइनर पॉट्स में आप प्लांट्स लगा सकते हैं। छत पर खेती के लिए आम तौर पर 6 सदस्यों वाले परिवार के लिए 20×20 फिट की जगह काफी होती है। बाकी आप अगर बैकयार्ड में खेती करते हैं तो सामान्य तरीके से क्यारी बनाकर सब्जी-फल लगा सकते हैं।

ऐसी गार्डेनिंग पर टाइम दें, ज्यादा फायदे में रहेंगे

महेंद्र सचान की छत पर लगी सब्जियों में कोई मंहगी चीज़ों इस्तेमाल नहीं किया है। घऱ के बेकार डिब्बें, टोकरियों, बड़े गमलों में उन्होंने सब्जियों को लगा रखा है। छत पर बागवानी के फायदे के बारे में महेंद्र बताते हैं कि, आजकल बाजारों में दूषित केमिकल से भरे फल सब्जियों को खाने से इंसान का स्वास्थ बिगड़ रहा है और सब्जियों के दाम दिन पर दिन बढ़ते जा रहे है। घर में सब्जियां उगाने से पैसे की तो बचत होती ही है साथ ही खाने के लिए शुद् सब्जी मिलती है। इसके साथ शहर में अपने घर के आसपास पर्यावरण को  स्वस्थ और शुद्ध भी रख सकते है। ऐसी गार्डेनिंग, मन को शांति व सुकून के साथ ताज़गी तो देती ही है, साथ ही देती है ताज़ा फल-सब्जी जिसका टेस्ट बाज़ार से लाई सब्जियों में भला कहां मिलेगा ? शहरी खाली में अगर ऐसी गार्डेनिंग पर टाइम दें तो कहीं ज्यादा फायदे में रहेंगे।

घर के वेस्ट को बनाए बेस्ट

सामान्य तौर पर अर्बन फार्मिंग करने वाले परिवार इसके तकनीकी पहलू से अनजान रहते हैं। आप खेती की नई तकनीक वर्मी कंपोस्ट और गुरुत्वाकर्षण सिंचाई यानी ग्रेविटी इरीगेशन से सब्ज़ी फल-फूल का उत्पादन कर सकते हैं। आप अपने घर पर ही खाद तैयार कर सकते हैं। जिसके लिए घर की छत के किसी भी हिस्से का इस्तेमाल किया जा सकता है ताकि घर के कूड़े-कचरे का खाद बना कर सब्जियों में इस्तेमाल किया जा सके। इसके अलावा किचन या घर के दैनिक काम से निकले पानी को आप पाइप के माध्यम से सब्जियों की सिंचाई के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तरह अर्बन फार्मिंग रोजाना सब्जियों पर होने वाले खर्च की बचत का एक आसान तरीका है। इतना ही नहीं इसे आप ऐसे भी देख सकते हैं कि महंगी होती फल-सब्जियों की पूर्ति का भार सिर्फ गांवों और खेत-खलिहानों पर क्यों रहे। क्यों ना शहर में रहने वाले लोग भी उस भार को बांट लें और अर्बन फार्मिंग के ज़रिए शहरों में हरियाली लाएं।

जे.पी. सिंह
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