ELECTORAL BOND संबंधी जानकारियों को साझा करने को लेकर SBI ने SUPREME COURT से चार महीने की मोहलत मांगी है। क्या वाकई SBI की दलील में कुछ दम है और क्या वाकई इसके लिए इतने वक्त की जरूरत है ? विस्तार से पढ़िए नीचे आलेख में।
नई दिल्ली, 07 मार्च ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र) : इलोक्टोरल बॉंड (ELECTORAL BOND) को लेकर आखिर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया यानी SBI की मंशा क्या है? इलेक्टोरल बॉड से संबंधित जानकारी में वो क्या छिपाना चाहता है, उसे इस काम के लिए चार महीने का समय क्यों चाहिए, सुप्रीम कोर्ट की तय डेडलाइन से दो दिन पहले यानी चार मार्च तक चुप्पी साधे रखना और फिर अदालत से चार महीने की मोहलत मांगना, ये सारे सवाल ऐसे हैं जो दाल में कुछ काला है या कहा जाए कि पूरी की पूरी दाल ही काली है, की तरफ इशारा करते हैं।
अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर ही टिकी हैं। अदालत चाहे को SBI के हलक से जानकारी निकलवा ले लेकिन क्या वो ऐसा करेगी, फिलहाल तो यक्षप्रश्न यही है।
इस बीच सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक यूज़र अपूर्व ने एक खोजी पत्रकार के हवाले से जानकारी दी है सरकार ने इलेक्टोरल बॉंड संबंधित जानकारी जब एसबीआई से मांगी तो उसने 48 घंटे के अंदर सारी जानकारी सरकार को उपलब्ध करा दी। एक्स पर इससे संबंधित दस्तावेज भी शेयर किए गए हैं। जब ऐसी स्थिति है तो SBI जानकारी को क्यों छिपाना चाहता है उसे ऐसा करने से कौन रोक रहा है?
#ElectoralBond पर बड़ा खुलासा:
स्टेट बैंक सुप्रीम कोर्ट को #ElectoralBonds की सारी जानकारी देने में जान बूझकर देरी कर रहा है जबकि ऐसी जानकारी वो केवल 48 घन्टो में 2019-2020 में सरकार को दे चुका है खोजी पत्रकार @nit_set ने स्टेट बैंक को पूरी तरह एक्सपोज कर दिया है #डाटावाणी… pic.twitter.com/XDK4vobPnr— अपूर्व اپوروا Apurva Bhardwaj (@grafidon) March 7, 2024
जाहिर है SBI को रोकने के पीछे सरकार है। वो नहीं चाहती कि आगामी चुनावों तक उसकी पोल पट्टी जनता को पता चले। कौन से पूंजीपति हैं, कौन से दानदाता है इनका नाम सार्वजनिक होते ही इलेक्टोरल बॉंड का पर्दा उठ जाएगा और राजनीति में ईमानदारी और शुचिता का जामा ओढे़ बीजेपी की सरकार की कलई खुल जाएगी। सरकार की कोशिश किसी भी कीमत पर चुनावों तक ऐसी किसी भी जानकारी को पब्लिक डोमेन में जाने से रोकने की है और वो इसके लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देगी।
SBI की दलील
15 फरवरी के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 6 मार्च तक SBI को 12 अप्रैल 2019 से 15 फरवरी 2024 के बीच खरीदे गए चुनावी बॉंड का ब्योरा चुनाव आयोग को सौंपना होगा।
कोर्ट ने आदेश में कहा था कि ब्योरे में चुनावी बॉंड के खरीद की तारीख, चंदा देने वाले का नाम, किस दल को चंदा दिया गया है और चंदे की क्या रकम थी, इसकी पूरी जानकारी चुनाव आयोग 13 मार्च तक सार्वजनिक करेगा।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से दी हई डेडलाइन से दो दिन पहले SBI ने कोर्ट से चार महीने की मोहलत मांगी है। याचिका में SBI ने कहा कि 12 अप्रैल 2019 से 15 फरवरी 2024 के बीच अलग-अलग पार्टियों को 22,217 चुनावी बॉंड जारी किए गए।
SBI ने कहा कि चूंकि भुनाए गए बांड अधिकृत शाखाओं द्वारा मुंबई में मुख्य एसबीआई शाखा को भेजे गए थे, इसलिए उसे डिकोड और कंपाइल करना होगा।
ADR की तैयारी
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) चुनावी बांड मामले में चार याचिकाकर्ताओं में से एक है। SBI की ओर से वक्त मांगे जाने को लेकर ADR अदालत में चुनौती देने के लिए तैयार है। कांग्रेस ने भी सवाल किया कि 30 जून तक टालने के लिए ‘SBI पर कौन दबाव डाल रहा है’? कांग्रेस का कहना है कि यह डेटा सिर्फ ‘एक क्लिक’ में सामने आ जाएगा।
मिल सकती है फटाफट जानकारी
RTI एक्टिविस्ट जनम पारेख बताते हैं कि इलेक्टोरल बॉंड से संबंधित जानकारी फटाफट मिल सकती है बशर्ते SBI उसे देना चाहे तो। वे बताते हैं कि ऐसे बॉंड SBI की 29 नामित शाखाओं में ही मिलते हैं। अगर आप चुनावी बॉंड खरीदेते हैं, तो अव्वल तो आपको SBI के 29 ब्रांच में से किसी एक में जाना होगा। आपको बॉंड देने से पहले वे बॉन्ड पर एक यूनिक नंबर लिखेंगे।
इसके बाद राजनीतिक दल इसे भुनाने के लिए SBI के पास वापस जाता है, तो बैंक बॉंड को भुनाने से पहले रिकॉर्ड में छिपे हुए नंबर और क्रेता के नाम की जांच-पड़ताल करता है। वे राजनीतिक दलों का नाम भी अपने रिकॉर्ड में दर्ज करते हैं। सारी एंट्री रियल टाइम में दर्ज की जाती है।
ADR के संस्थापक और ट्रस्टी प्रो. जगदीप छोकर के अनुसार, इलेक्टोरल बॉंड से संबंधित सारे रिकॉर्ड बहुत आसानी से कंपाइल किए जा सकते हैं और SBI की दलील इस मामले में गले उतरने वाली है नहीं। सभी जानते हैं कि चुनावी चंदे का बहुत बड़ा हिस्सा किस राजनीतिक दल को मिला है और वही इस समय सत्ता में है। कोशिश किसी तरह से चुनाव तक इस जानकारी को सामने लाने से बचाने की है।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया