नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र):
अनुच्छेद-370 हटाने और जम्मू-कश्मीर के विभाजन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 8 अगस्त 2019 को राष्ट्र को संबोधन कर रहे थें तब उन्होने कहा था कि लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के लोगों के सामने सुनहरा भविष्य है। अपने इस संबोधन में प्रधानमंत्री ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों की हर चिंता को छूने की कोशिश की। इसी भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के क्षेत्र में पैदा होने वाले कई उत्पादों औऱ फसलों का जिक्र किया जिसकी पूरी दुनिया में भारी मांग है। उन्होंने कहा कि ये बेशकीमती उत्पाद क्षेत्र के लोगों की आमदनी का जरिया बन सकते हैं। प्रधानमंत्री ने खास तौर पर ‘सोलो’ नाम के पौधे का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि, मैं एक उदाहरण देता हूं। लद्दाख में सोलो नाम का एक पौधा उगता है। जानकारों का कहना है की ये उंची पहाडियों पर रहने वालों और बर्फीली पहाड़ियों पर तैनात जवानों के लिए संजीवनी बूटी का काम करता है।
प्राचीन संजीवनी अब सोलो नाम से ख्याति
प्राचीन काल से ही हिमालय पर संजीवनी बूटी होने को लेकर चर्चाएं होती रही हैं। संजीवनी बूटी की चर्चा रामचरित मानस में भी हुई है। रामायण में मेघनाद के बाण से मूर्छित लक्ष्मण की जान बचाने के लिए हिमालय की कंदराओं से हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर आए थे। आखिरकार संजीवनी बूटी की मदद से लक्ष्मण को बचा लिया गया था। डिफ़ेंस इंस्टीट्यूट ऑफ़ हाई एल्टिट्यूड एंड रिसर्च डिहार, लद्दाख के वैज्ञानिक सोलो नाम के पौधे के गुणों से इस कदर उत्साहित हैं कि उन्हें लगता है कि जैसे ‘संजीवनी’ की तलाश अब खत्म हो गई है। ये पौधा बढ़ती उम्र को रोकने में सहायक है साथ ही ऑक्सीजन की कमी के दौरान न्यूरॉन्स की रक्षा भी करता है।
लद्दाख में उगता है सोलो
‘सोलो’ नाम का ये पौधा मूल रूप से लद्दाख के ठंडे और ऊंचाई वाले इलाकों में पाया जाता है। काफी समय तक स्थानीय लोग इसके औषधीय गुणों से अज्ञात थें। सोलो एक हिमालयन पौधा है। इसमें इतने सारे गुण है। पहाड़ी इलाकों में इसे स्थानीय लोग रोजरूट के नाम से जानते हैं क्योंकि इसकी जड़ों में गुलाब की खुश्बू होती है। ये पौधा अत्यधिक ऊंची पर्वत मालाओं पर यानि 16 हजार से 18 हजार फीट ऊंचाई पर उगता है। जून के महीने में इसमें अंकुरण होता है और ये अक्टूबर तक चलता है। अक्टूबर के बाद ये पौधा सुशुप्ता अवस्था में चल जाता है।
संजीवनी सोलो के चमत्कारी गुण
आयुर्वेद के जानकारों का दावा है कि ये पौधा अत्यधिक ऊंचाई वाले इलाकों में सांस लेने में परेशानी होने की समस्या से उबरने में बेहद कारगर होता है। लोगों की फेफड़े की क्षमता को बढ़ाता है साथ ही ऑक्सीजन लेवल को भी शरीर में सही बनाए रखता है। सोलो में एंटी स्ट्रेस प्रॉपर्टी होती है जिससे ये दिमागी क्षमता रिस्टोर करने में सहायक होता है। पहाड़ों में थकान और भूलने की बीमारी अक्सर लोगों को होती है जिसके चलते सोलो का इस्तेमाल मददगार साबित होता है। सोलो में कैंसर से लड़ने की क्षमता भी मौजूद होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह एक चमत्कारी जड़ी-बूटी है जो इम्यूनिटी सिस्टम को ठीक रखती है। ज्यादा ऊंचाई वाले इलाके में ये जड़ी-बूटी शरीर को वातावरण के हिसाब से ढालने में मदद करती है। इसका सबसे फायदेमंद गुण ये है कि ये रेडियो-एक्टिविटी से शरीर को बचाता है साथ ही इस पौधे में अवसाद-रोधी और भूख बढ़ाने वाले गुण भी मौजूद हैं। लेह स्थित डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एल्टीट्यूड रिसर्च के वैज्ञानिकों का दावा है कि यह औषधि सियाचिन जैसी प्रतिकूल जगहों पर रह रहे भारतीय सेना के जवानों के लिए चमत्कारिक साबित हो सकती है।
सोलो बूटी के गुणों पर वैज्ञानिक रिसर्च
लद्दाख के लोग इसे ‘सोलो’ के नाम से ही जानते हैं। हिमालय की ऊंची चोटियों पर जिंदगी किसी चुनौती से कम नहीं है। स्थानीय लोगों को इन इलाकों में जीवन के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। स्थानीय लोग इस पौधे के पत्तेदार हिस्सों का इस्तेमाल सब्जी के रूप में सालों से करते आ रहे हैं। इसके बाद इसे दही में मिलाकर एक स्पेशल डिश तैयार की जाती थी जिसे कंतूर कहते हैं। डिहार के औषधीय संयंत्र में इस पौधे के गुणों की जांच चल रही है। वहां के कृषि बैज्ञानिको का कहना है कि इस पौधे का सफलतापूर्वक प्लांटेशन कर लिया है। अब जरूरत है कि इस पौधे की खेती बढ़ाने की दिशा में कार्य किया जाए जिससे कि स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ सकें। इस पौधे का विदेशों में प्रचार-प्रसार भी किया जाना चाहिए। जिससे कि लद्दाख सहित देश के किसानों को इसकी खेती का लाभ मिल सके।