नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए बद्री पाल, सिटीजन जर्नलिस्ट ) : दिल्ली युनिवर्सिटी से लगे मुखर्जी नगर में छात्रों के साथ धऱने पर बैठी लतिका को अपने सपनों के साथ अपने पूरे पूरे परिवार की उम्मीदों के खत्म होने का डर है। उनके साथ उनके सहपाठी रामेंद्र भी है जो पिछले चार साल से सिविल सेवा की तैयारी में जुटे हैं। लतिका बिहार के सासाराम की हैं जबकि रामेंद्र झारखंड के हजारी बाग के हैं। लतिका और रामेंद्र जैसे हजारों छात्र हैं।
धरने में सभी प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे, यूपीएससी, एसएससी, बैंकिंग, रेलवे, सेना, नौसेना की तैयारी कर रहे छात्र शामिल हैं। ये छात्र ‘कॉम्पेनसेंट्री अटैम्प्ट फॉर ऑल’ की मांग कर रहे हैं यानी सभी भर्ती परीक्षाओं में इन्हें दो मौके और दिए जाएं और इसके साथ ही दो साल उम्र सीमा में छूट भी दी जाए। परीक्षाओं में पारदर्शिता भी एक बड़ा मुद्दा है।
छात्रों का ये प्रदर्शन वैसे तो पिछले डेढ़ साल से जारी है लेकिन लगभग एक महीने से छात्र लगातार दिल्ली के मुखर्जी नगर में 24 घंटे प्रदर्शन और रोटेशन पर भूख हड़ताल कर रहे हैं।
लतिका का कहना है कि, कोरोना महामारी के दौरान जो भी सरकारी प्रतियोगी परीक्षाएं हुई हैं, उनमें या तो छात्र परीक्षा नहीं दे पाए या जिन छात्रों ने परीक्षाएं दीं, उनकी कोई खास तैयारी नहीं थी। इसकी वजह साफ थी कि छात्र कोरोना से जूझ रहे थे। कई क्वारंटीन थे और उनके परिवार कोरोना से जूझ रहे थे। कुछ छात्र तो ऐसे भी थे जो फ्रंटलाइन वर्कर के तौर पर काम कर रहे थे और उन्हें परीक्षा के लिए समय ही नहीं मिल पाया।
रामेंद्र ने गणतंत्र भारत से बातचीत में बताया कि, मुखर्जी नगर में यूपी, बिहार, झारखंड और हरियाणा से आकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों की संख्या सबसे अधिक है। कोरोना के दौरान छात्रों को भी अपने घर लौटने को मजबूर होना पड़ा। आर्थिक तंगी से जूझ रहे अधिकतर गरीब छात्रों के पास तैयारी करने के लिए कोई संसाधन नहीं था तो ऐसे में परीक्षाओं के लिए हमारी तैयारी आधी-अधूरी या न के बराबर रही। छात्र चाहते हैं कि सरकार उनकी बातों को गंभीरता से ले और छात्रों की मांगों को मानते हुए उन्हें अतिरिक्त मौके दे।
इसी तरह से रामेंद्र पारदर्शिता की कमी के सवाल को स्पष्ट करते हैं। उनका कहना है कि, यूपीएससी की बात ही करें तो प्रीलिम्स एग्जाम की आंसर की समय पर जारी नहीं की जाती। पूरी परीक्षा प्रक्रिया समाप्त होने के बाद आंसर की जारी की जाती है जिससे छात्रों को दिक्कतें होती हैं। वे कहते हैं कि, हम चाहते हैं कि परीक्षा से ऑप्शनल (वैकल्पिक) विषयों को हटाया जाए, क्योंकि इंजीनियरिंग और मेडिकल पृष्ठभूमि के छात्र इनमें अच्छे नंबर ले आते हैं, जबकि आर्ट स्ट्रीम या हिंदी मीडियम के छात्र पीछे रह जाते हैं। इसमें समानता का अवसर तो कहीं है ही नहीं।
सरकार का क्या कहना है
छात्रों के इस आंदोलन के बीच, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करके कहा है कि संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल सेवा परीक्षा में छात्रों को अतिरिक्त मौका देना संभव नहीं है। वर्ष 2021 की सिविल सेवा मुख्य परीक्षा को लेकर कई छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका करते हुए उन्हें एक और मौका देने की गुहार लगाई थी। छात्रों का कहना था कि, कोरोना की वजह से वे इन परीक्षाओं में शामिल नहीं हो पाए थे, इसलिए उन्हें एक और मौका दिया जाना चाहिए। इसके जवाब में सरकार ने ये हलफनामा दाखिल किया था।
केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने जस्टिस एमए खानविलकर और जस्टिस एएस ओका की पीठ से कहा कि, हमने एक हलफनामा दायर किया है। अतिरिक्त मौका संभव नहीं हैं। हमने इस पर विचार किया है। केंद्र ने कहा कि कोविड महामारी के कारण आयु-सीमा में किसी भी तरह की छूट और मंजूर मौकों की संख्या के कारण अन्य श्रेणियों के उम्मीदवारों द्वारा भी इसी तरह की मांग की जा सकती है।
हलफनामे में कहा गया कि, ये अन्य उम्मीदवारों की संभावनाओं को भी प्रभावित करेगा जो मौजूदा प्रावधानों के अनुसार पात्र हैं क्योंकि इससे ऐसे उम्मीदवारों के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाले उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि होगी। ये पूरे देश में आयोजित अन्य परीक्षाओं के उम्मीदवारों द्वारा भी इसी तरह की मांगों को जन्म देगा।
केंद्र के जवाब से छात्रों में रोष
केंद्र के जवाब से छात्रों में रोष है। उनका कहना है कि 1992 और 2014 में सरकारों ने नियमों में संशोधन करते हुए छात्रों को राहत दी है तो अब इस वैश्विक महामारी के दौर में क्यों नहीं ऐसा किया जा सकता। रामेंद्र कहते हैं कि 1992 में छात्रों के इसी तरह के आंदोलन और 2014 में सीसैट आंदोलन के दौरान सरकार ने नियमों में बदलाव कर छात्रों को अतिरिक्त मौके दिए थे। वे ये भी बताते हैं कि, गुजरात, उत्तराखंड और त्रिपुरा जैसे बीजेपी शासित राज्यों में ही राज्य सरकारें राज्य सिविल सेवा छात्रों को अतिरिक्त मौके दे रही हैं। वे कहते हैं कि सिविल सेवा में लेटरल इंट्री का प्रावधान भी तो नहीं था लेकिन आखिर सरकार वो नियम भी तो लेकर आई।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया