नई दिल्ली 18 अक्टूबर (गणतंत्र भारत के लिए सुहासिनी ) : बिलकिस बानो प्रकरण में दोषिय़ों की रिहाई के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार ने जो हलफनामा पेश किया उसमें कहा गया है कि दोषियों की रिहाई कानूनी प्रक्रिया के तहत हुई है और इस पर केंद्रीय गृह मंत्रालय की सहमति ली गई है। लेकिन, क्या वास्तव में ऐसा है ? गौर करने वाले कुछ ऐसे तथ्य हैं जो इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि दोषिय़ों की रिहाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के हलफनामे के बाद 29 नवंबर को होने वाली अगली सुनवाई में याचिकाकर्ताओं को अपना पक्ष रखने को कहा है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का दिशानिर्देश और कहां हुआ उल्लंघन ?
उम्र कैद के सजायाफ्ता कैदियों के बारे में सुप्रीम कोर्ट का साफ कहना है कि उन्हें एक निर्धारित समयावधि के बाद निर्धारित कानूनी प्रक्रिया के बाद अच्छे आचरण की बिना पर रिहा किया जा सकता है बशर्ते वे बलात्कार और हत्या जैसे संगीन आरोप के मुजरिम न हो। निर्धारित कानूनी प्रक्रिया के तहत मामले पर विचार के लिए एक समिति गठित की जाती है जिसमें जिला प्रशासन के अलावा संबंधित पक्षों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाता है। उस समिति की सिफारिश के बाद उस पर राज्य़ सरकार की मंजूरी ली जाती है और वो उस पर केंद्र सरकार की सहमति लेती है।
समाजविज्ञानी और सीएसआर की निदेशक रंजना कुमारी ने एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में बार-बार दोहराया कि, बिलकिस बानो के दोषिय़ो की रिहाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्दशों की अनदेखी की गई। हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के दोषियों के लिए किसी मुरव्वत की जरूरत नहीं। बिलकिस के दोषियों की रिहाई के मामले में ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि, इससे बहुत गलत संदेश गया है। राजनीतिक कारणों पर न जाया जाए तो भी इस रिहाई और उसमें केंद्र सरकार की रजामंदी सर्वोच्च अदालत की भावनाओं का मखौल है।
क्या हुआ आज कोर्ट में ?
सुप्रीम कोर्ट में गुजरात सरकार ने सोमवार को कैदियों की रिहाई के समर्थन में हलफनामा दिया था। गुजरात सरकार ने हलफनामे में कहा कि कैदियों की रिहाई में पूरी तरह कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया है। याचिकाकर्ता सुभाषिनी अली और अन्य की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच से कहा कि, इस मामले में सभी 11 दोषियों को जेल में होना चाहिए।
गुजरात सरकार ने हलफ़नामे में सज़ायाफ़्ता मुजरिमों को रिहा करने के अपने फ़ैसले का बचाव किया। सरकार ने कहा कि सभी दोषियों ने 14 साल या इससे अधिक समय जेल में बिताया और उनके अच्छे व्यवहार को देखते हुए रिहाई दी गई है। साथ ही फैसला लेने से पहले केंद्र सरकार की मंजूरी ली गई। हलफनामे में गुजरात सरकार ने कहा कि इस मामले से तीसरे पक्ष का कोई लेना-देना नहीं और न ही उसके पास इस आदेश के खिलाफ अपील करने का कोई आधार है।
गुजरात सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि, राज्य सरकार का विश्वास है कि वर्तमान याचिका इस अदालत के जनहित याचिका (पीआईएल) के अधिकार के दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं है। इसलिए सरकार की अपील है कि बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं को खारिज किया जाए। सरकार ने कहा कि इस मामले में राज्य सरकार ने 1992 की नीति के तहत प्रस्ताव पर विचार किया है।
हलफनामे में ये भी बताया गया कि, पुलिस अधीक्षक, सीबीआई स्पेशल ब्रांच मुंबई और स्पेशल सिविल जज (सीबीआई), सिटी सिविल एंड सेशन कोर्ट, ग्रेटर बॉम्बे’ ने बीते साल मार्च में कैदियों की रिहाई का विरोध किया था। गोधरा जेल के सुपरिंटेंडेट को लिखे पत्र में सीबीआई ने कहा था कि जो अपराध इन लोगों ने किया है वो ‘जघन्य और गंभीर’ है।
आपको बता दें कि, गुजरात दंगों के समय अहमदाबाद के पास रनधिकपुर गांव में एक भीड़ ने पांच महीने की गर्भवती बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया था। बिलकिस की तीन साल की बेटी की भी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में 11 अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनकी सज़ा को बरकरार रखा था। 15 साल से अधिक की जेल की सज़ा काटने के बाद दोषियों में से एक राधेश्याम शाह ने सज़ा माफ़ी के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को सज़ा माफ़ी के मुद्दे पर गौर करने का निर्देश दिया था। इसके बाद रिहाई के मामले के लिए एक जांच समिति बनी जिसकी सिफारिश के बाद निर्धारित प्रक्रिया के अनुरूप दोषियों को 15 अगस्त 2022 को रिहा कर दिया गया।
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