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खेल जब खेल नहीं रह जाता, तो कभी शमी, तो कभी अली गद्दार बन जाता है…

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए लेखराज) : खेल जब खेल नहीं रह जाता तो कभी अली तो कभी शमी गद्दार बन जाता है। पाकिस्तान टी-20 वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के हाथों हार गया। एक समय लग रहा था कि पाकिस्तान मैच जीत जाएगा। पाकिस्तानी खिलाड़ी हसन अली के हाथों एक कैच छूट गया। वो कैच छूटना पाकिस्तान को भारी पड़ा। पाकिस्तान मैच हार गया। सारा ठीकरा हसन अली पर फूट पड़ा। सोशल मीडिया में हसन अली गद्दार घोषित हो गए। किसी ने कहा शिया थे इसलिए जानबूझ कर कैच छोड़ा तो किसी ने कहा पैसे ले लिए थे। हसन अली के लिए ये सब कुछ और मुश्किल हो गया क्योंकि उनकी बीवी सामिया आरजू हिंदुस्तानी है।  

सोशल मीडिया पर हसन अली के साथ सामिया आरजू के बारे में बेहूदा, भद्दी और अश्लील टिप्पणियां भरी पड़ी हैं। इंस्‍टाग्राम पर कोई उनसे पूछ रहा है कि सेमीफाइनल में रन कुटवाने के लिए उन्‍होंने कितने पैसे लिए थे। कुछ लोगों ने इंस्‍टाग्राम पर ‘लटके-झटकों’ वाली पोस्‍ट्स तक को जिम्‍मेदार बता दिया। अली की ‘हिंदुस्‍तानी बीवी’ के लिए बेहद अभद्र भाषा का इस्‍तेमाल किया गया है। कुछ पाकिस्‍तानी हैंडल्‍स ने तो ट्वीट में कहा है कि हसन अली को आते ही गोली मार देनी चाहिए। दावा किया जा रहा है कि ज्यादातर ऐसी टिप्पणिय़ां पाकिसतानी यूजर्स की तरफ से की गई हैं।

तकलीफदेह बात ये रही कि हसन अली के पक्ष में पाकिस्तानी समाज और क्रिकेट टीम मजबूती के साथ नहीं खड़ी हुई। अगर कोई आवाज उठी भी तो वो भी सिर्फ औपचारिकता निभाने भर को।

कुछ समय पहले, भारत-पाकिस्तान के मैच में भी ऐसा ही वाकय़ा हुआ था। भारतीय तेज गेंदबाज मुहम्मद शमी की गेंदों की काफी धुनाई हुई। तब भारत में भी शमी के खिलाफ कुछ वैसी ही आवाजें उठीं थीं जैसी कि हसन अली के खिलाफ आज उठी हैं। लेकिन एक फर्क था। शमी की मुखालफत करमे वाली आवाजों के खिलाफ सबसे पहले खडे होने वालों में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली खुद थे। उन्होंने शमी की नीयत पर संदेह करने वालों को आड़े हाथों लिया और मजहब को खेल से दूर रखने की हिदायद दी।

शमी और अली पर निशाना साधने वाले एक हैं

ये बात गौर करने लायक है कि जब भारतीय क्रिकेटर मुहम्मद शमी के खिलाफ सोशल मीडिया पर बमबारी हुई थी तो अगले ही दिन झट से दावा कर दिया गया कि ये सब पाकिस्तानी हैंडलर्स की करामात ज्यादा थी। भारत में ऐसा कुछ ज्यादा गंभीर मामला नहीं था। लेकिन इन दावों में कितनी सत्यता थी क्या इसकी कोई पड़ताल हुई।

हसन अली के मामले में भी सोशल मीडिया ने जमकर उत्पात मचाया गया। शुक्र था कि मैच ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ था। कहीं भारत के खिलाफ होता तो शायद और बुरा होता। फिर भी उस मैच में एक भारतीय एंगल खोज ही लिया गया। हसन अली की बीवी सायिमा आरजू। सायिमा भारतीय हैं। हसन, शिया हैं यानी सुन्नी मुसलमान नहीं हैं, ये भी एक एंगल है। हसन गद्दार, फिक्सर और जाने क्या-क्या बन गए। पाकिस्तान पहुंचते ही उन्हें गोली मार देने की बात भी की गई।

दरअसल, हसन अली हों या मुहम्मद शमी दोनों को मजहबी चश्मे से देखते हुए राष्ट्रवाद का प्रमाणपत्र देने वाले एक ही तरह की सोच रखने वाले लोग हैं। मजहब भले अलग हों पर एक दूसरे को पालने-पोसने का काम ये बखूबी करते हैं। इनको पता होता है कि शमी को भारत में मुसलमान होने पा कठघरे में खड़ा करना आसान है तो पाकिस्तान में हसन अली को शिया होने या भारतीय बीवी का शौहर होने पर। इन्हें खेल के कोई मतलब नहीं है। उन्हें मजहब से भी कोई मतलब नहीं है। मजहब, उनके लिए अपने एजेंडे को साधने का एक जरिया भर है।

मीडिया ने इस जंग को हवा दी

भारत और पाकिस्तान की मीडिया ने क्रिकेट के मैदान को जंग के मैदान में तब्दील करने में अपना काम बखूबी किया है। शोएब अख्तर और हरभजन सिंह के बीच जिस तरह की अदावत सोशल मीडिया पर पिछले दिनों देखने को मिली वो किसी भी सूरत में बेहतर नहीं कही जा सकती। मैच से पहले हैशटैग के साथ बाकायदा कैंपेन चलाए जाते हैं और खेल प्रेमियों के जज्बात से खेला जाता है। पाकिस्तान में डॉन न्यूज़ के लाहैर ब्यूरो के प्रमुख अदनान शेख का कहना है कि, क्रिकेट में जंगी सोच का फायदा भले ही कुछ दूसरे लोगों को हो जाए, लेकिन इससे क्रिकेट का कुछ भला होने वाला नहीं है। खुदा के लिए…क्रिकेट को इससे दूर रखिए। क्रिकेट में हर खिलाड़ी का दिन होता है…कभी कोई बेहतरीन खिलाड़ी भी नहीं चला तो कभी पिछल्लू भी दौड़ पड़ता है।

फोटो सोजन्य- सोशल मीडिया

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