लखनऊ ( गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र ) : उत्तर प्रदेश के लघु, कुटीर और मध्यम उद्योग (एमएसएमई) विभाग के कैबिनेट मंत्री राकेश सचान पर फ़तेहपुर ज़िले के औद्योगिक क्षेत्र में उनके नाम 72 भूखंड होने का आरोप सामने आया है। जानकारी के अनुसार ये भूखंड उन्हें 10 साल पहले आवंटित किए गए थे। वे उस समय फतेहपुर निर्वाचन क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के सांसद थे। ऐसी भी जानकारी है कि इन प्लॉटों के एवज में एक रुपए का भुगतान भी नहीं किया गया है। ये सभी प्लॉट अनुपयोगी पड़े रहे और उनकी कोई लीज डीड नहीं है।
आरोप के सार्वजनिक होने के बाद मंत्री राकेश सचान ने एक बयान में सफाई दी है और कहा है कि, “वहां कोई (प्लॉट) लेना नहीं चाहता है, सब ज़बरदस्ती दे दिए हम लोगों को। तो हम तो वापस ही कर रहे हैं।”
दिलचस्प बात ये हैं कि, प्लॉटों के आवंटन की जानकारी आरएसएस से जुड़ी संस्था लघु उद्योग भारती ने दी है जो कि एक अलाभकारी संगठन है। संघ की वेबसाइट पर बताया गया है कि संस्था का गठन 1994 में किया गया है। फतेहपुर में इस संस्था के अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह हैं। उनका दावा है कि, ये एक ऐसी संस्था है जो उद्यमियों से जुड़े मुद्दों को समय-समय पर उठाती रहती है और उनका शासन से समन्वय बनाने का काम करती है। उन्होंने बताया कि अभी राज्य में निवेश और उद्योगों की स्थापना के लिए खाली पड़े औद्योगिक प्लॉटों की पहचान करने के दौरान ये जानकारी सामने आई।
सत्येंद्र सिंह के अनुसार, फतेहपुर में उत्तर प्रदेश सरकार के उद्योग को बढ़ावा देने वाली नीतियों का प्रचार करते वक्त उन्होंने स्थानीय लोगों से बात की। बातचीत के दौरान ये बात समाने आई कि, वे उद्योग लगाने के लिए तैयार हैं लेकिन औद्योगिक संस्थानों में ज़मीन तो आवंटित कर दी गई हैं लेकिन उन पर एक भी इकाई नहीं चल रही है और एमएसएमई विभाग के मंत्री राकेश सचान के नाम पर ही 72 प्लॉट निकले हैं।
उन्होंने इस मामले को उठाते हुए उद्योग निदेशालय की कानपुर इकाई के आयुक्त एवं निदेशक को संस्था की लघु उद्योग भारती की तरफ से एक पत्र लिखा। पत्र में जानकारी दी गई कि, “फ़तेहपुर के मिनी औद्योगिक केंद्र चकहता में 36 भूखंड हैं जिनमें से 32 आवंटित हैं और चार रिक्त हैं। 32 भूखंड में एक भी इकाई स्थापित नहीं है। 32 प्लॉट एक ही व्यक्ति (राकेश सचान) के नाम से आवंटित हैं जिनका पता अज्ञात है।” पत्र में ये जानकारी भी दी गई कि, “मिनी औद्योगिक स्थान सुधवापुर में कुल 45 भूखंडों में से 40 आवंटित तथा 5 रिक्त हैं।….40 भूखंड एक ही व्यक्ति राकेश सचान के नाम है जिनका पता अज्ञात है। ” सत्येंद्र सिंह का दावा है कि कुल मिलाकर 7000 से 7500 वर्ग मीटर के 72 प्लॉट मंत्री राकेश सचान के नाम पर आवंटित हैं।
राकेश सचान का बयान और पैदा हुए सवाल
आवंटन के बारे में खबर सामने आने के बाद मंत्री ने शुक्रवार को फतेहपुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की और दावा किया कि ये आवंटन अभिनव सेवा संस्थान को किया गया था। ये कानपुर के घाटमपुर में स्थित एक संगठन है जो इस क्षेत्र में एक इंटर कॉलेज और अन्य शैक्षणिक संस्थानों का मालिक है। संगठन की स्थापना सचान ने की थी और अभी भी वे इसकी मैनेजिंग कमेटी का हिस्सा हैं। उन्होंने मीडिया से कहा कि, “आवंटन खुली प्रक्रिया है। डीएम की अध्यक्षता में चयन समिति है। आप आवेदन करेंगे, आपको मिलेगा। अभी एक में गौशाला बना रखा है। जहां अच्छा इंडस्ट्रियल एस्टेट है वहां कोई लेना नहीं चाहता है। सब ज़बरदस्ती दे दिए हम लोगों को। तो हम तो वापस ही कर रहे हैं। उनको कहां हम लोग ले रहे हैं।” जब कुछ पत्रकारों ने 72 प्लॉट आवंटन को लेकर सवाल किया कि और कितने लोगों को ऐसे प्लॉट मिले थे तो इसके जवाब में मंत्री ने कहा कि, “ये बेरोजगारों को फ्री में थोड़े ही ना आवंटित हो रहे थे।” बिना 10 प्रतिशत राशि के भुगतान के आवंटन को लेकर भी मंत्री का जवाब था कि “लोग अभी भी नहीं ले रहे हैं। इतने खाली पड़े हैं। हम तो कह रहे हैं कि आकर लीजिए।
राकेश सचना को इतने प्लॉटों का आवंटन चाहे जब हुआ हो लेकिन सवाल ये है कि क्या एक ही व्यक्ति को 72 प्लॉटों का आवंटन नियम सम्मत है ? दूसरा सवाल, अगर प्लॉट सालों-साल खाली पड़े रहे तो प्रशासन ने उसका संज्ञान क्यों नहीं लिया या जानबूझ कर ऐसा किया गया?
सरकारी नियमों के अनुसार आवंटन के एक माह के भीतर 10 प्रतिशत शुल्क जमा नहीं करने पर औद्योगिक भूखंड का आवंटन खुद ब खुद निरस्त हो जाता है। शुल्क का भुगतान करने के बाद भी, यदि आवंटन के छह महीने के भीतर कोई लीज डीड नहीं है, तो भी ये रद्द हो जाती है। इसके अलावा, यदि किसी औद्योगिक इकाई में दो साल के भीतर उत्पादन शुरू नहीं होता है तो ऐसी स्थिति में आवंटन रद्द हो जाता है।
मामला सामने आने के बाद प्रशासन नींद से जागा और चूंकि मामला मंत्री से जुड़ा था लिहाजा लखनऊ में उच्चाधिकारियों तक बात पहुंचाई गई। उसके बाद 15 फऱवरी को अभिनव सेवा संस्थान के नाम से एक नोटिस जारी करके लीज़ डीड और पंजीकरण के लिए 15 दिनों के भीतर 10 प्रतिशत फीस का भुगतान करने को कहा गया। मंत्री जी ने इस नोटिस का ठीकरा भी प्रशासन पर ही मढ़ दिय़ा। उन्होंने कहा कि, विभाग को पहले ही नोटिस देना चाहिए था ये तो उनकी भूल है।
राकेश सचान : विवादों से पुराना नाता ?
राकेश सचान ने अपनी राजनीतिक पारी 1993 में समाजवादी पार्टी से की शुरू की थी। 2009 में वे समाजवादी पार्टी के टिकट से लोकसभा पहुंचे। 2014 में वे सपा के टिकट पर चुनाव हार गए थे। 2019 में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ले ली और 2022 में चुनाव से ठीक पहले बीजेपी से जुड़ गए। बीजेपी के टिकट से विधायक निर्वाचित होने के बाद उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया।
विवादों से राकेश सचान का पहले भी नाता रहा है। 1991 में शस्त्र अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में पिछले साल अगस्त में उन्हें दोषी ठहराया गया। बाताय जाता है कि, उसके बाद वे अदालती आदेश की फाइल समेत गायब हो गए और दो दिनों के बाद उन्होंने एक अदालत में सरेंडर कर दिया जहां सजा सुनाए जाने के कुछ ही घंटों के भीतर उनकी जमानत हो गई।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया