लखनऊ ( गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र): उत्तर प्रदेश के राजनीति दलों में अचानक ही ब्राह्मण प्रेम उमड़ पड़ा है। राज्य के सभी राजनीतिक दल किसी ना किसी तरीके से राजनीति में रसूखदार ब्राहम्ण चेहरे को अपने दल में शामिल करने की रणनीति में जुटे हुए हैं। बीजेपी के अलावा समाजवादी पार्टी भी रसूखदार ब्राह्मण चेहरों की तलाश में जुट गई है। मायावती की बहुजन समाज पार्टी तो पहले ही अपनी सोशल इंजीनियरिंग में दलितों और पिछड़ों के साथ ब्राह्रमणों को जोड़ कर चलती रही है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति के इस ब्राह्मण प्रेम की तह में जाने के पहले राज्य में पिछले दो-तीन दिनों में हुए राजनीतिक घ़टनाक्रम को समझना होगा।
बीजेपा में लक्ष्मीकांत वाजपेयी की अहमियत फिर बढ़ी
राज्य के राजनीतिक हालात का जायजा लेने आए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं और सरकार के बीच लखनऊ में बैठक हुई। बैठक में बी. एल संतोष और संगठन के दूसरे नेताओं के साथ प्रदेश के पूर्व बीजेपी अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी को भी शामिल किया गया। इस बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ भी शामिल हुए।
वाजपेयी को पिछली मार्च में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ प्रदेश बीजेपी की कार्यसमिति में स्थान दिया गया था। उनके अलावा इस समिति में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, डॉ.मुरली मनोहर जोशी और केशरी नाथ त्रिपाठी भी शामिल हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त वाजपेयी उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष थे। 2017 के विधानसभा चुनाव को केशव प्रसाद मौर्या के अध्यक्षता में लड़ा गया। राज्य में बीजेपी की सरकार बन गई। लक्ष्मीकांत वाजपेयी, बीजेपी की प्रचंड लहर के बाद भी खुद की सीट हार गए। बताया जाता है कि उसके बाद से राज्य की राजनीति में लक्ष्मीकांत वाजपेयी हाशिए पर फेंक दिए गए। वैसे, निजी तौर पर वाजपेयी की छवि एक बेहद ईमानदार और कर्मठ राजनेता की रही है। वे मेरठ से आते हैं। किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी के लिए कठिन चुनौती मुंह बाए खड़ी है और बीजेपी को वाजपेयी में ब्राह्मण चेहरे के अलावा किसानों की नाराजगी दूर करने वाला एक नेता भी दिख रहा है।
अब जबकि राज्य के विधानसभा चुनाव कुछ महीनों के फासले पर हैं तो ऐसे में अचानक पार्टी में उनकी अहमियत का बढ़ जाना इस बात का संकेत देता है कि पार्टी को इस वक्त उनकी जरूरत है। कुछ दिनों पहले ही बीजेपी ने कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद को पार्टी में शामिल करके भी ब्राह्मण वोट बैंक को साधने की कोशिश की थी। वैसे राज्य में पहले से ही बीजेपी के पास कई ब्राह्मण नेता हैं लेकिन उनका रसूख पार्टी को अपेक्षित लाभ कितना दिला पाएगा इसे लेकर पार्टी खुद सशंकित है। उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा और विधि मंत्री ब्रजेश पाठक जैसे नेता योगी सरकार में ब्राह्मण चेहरों के रूप में मौजूद हैं।
अखिलेश की नई सोशल इंजीनियरिंग
समाजवादी पार्टी का कोर वोटबैंक एमवाई समीकरण यानी मुस्लिम-यादव वोटबैंक माना जाता रहा है। अखिलेश यादव भी मजे हुए राजनेता हैं। उन्हें ये बात बखूबी समझ में आ रही है कि सिर्फ इस ब्रांडिंग के साथ चुनाव में उनके लिए मुश्किल होने वाली है। उन्हें बीजेपी से रूठे इस ब्राह्मण वोट बैंक में संभावनाएं नजर आ रही हैं। खबर है कि राज्य में कांग्रेस के बड़े नेता प्रमोद तिवारी और अखिलेश यादव में नजदीकियां बढ़ रही हैं। प्रमोद तिवारी भी समाजवादी पार्टी में जाने के इच्छुक हैं लेकिन बात कुछ शर्तों पर अटक रही है। प्रमोद तिवारी खुद के लिए राज्यसभा की सीट और बेटी आराधना मिंश्रा को सरकार बनने की स्थिति में राज्य का उप मुख्यमंत्री बनवाना चाहते हैं। अखिलेश इस प्रस्ताव को लेकर थोड़ा पसोपेश में हैं। उन्हें चुनाव बाद के राजनीतिक समीकरणों को भी ध्यान में रखना है और वे किसी भी सूरत में कांग्रेस को नाराज नहीं करना चाहते। इसके अलावा अखिलेश और राहुल गांधी के बीच निजी तौर संबंध काफी अच्छे हैं और वे कोई भी ऐसा काम करने से परहेज करेंगे जिससे राहुल के साथ उनके संबंधों पर असर पड़े।
यही नहीं, बीएसपी की सोशल इंजीनियरिंग की धुरी रहे रामवीर उपाध्याय की भी अखिलेश यादव से मुलाकात हो चुकी है। माना जाता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रामवीर उपाध्याय का काफी दबदबा है और वे समाजवादी पार्टी के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं।
ऐसी भी खबरें हैं कि, अखिलेश यादव ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडे, तेज नारायण पांडे उर्फ पवन पांडे के अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश में नारद राय और मनोज पांडे जैसे नेताओं को ब्राह्मण नेताओ को पार्टी से जोड़ने के काम में लगाया है।
समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में धाकड़ और कद्दावर समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र और रमाशंकर कौशिक जैसे नेता शामिल रहे हैं।
आखिर ब्राहम्ण क्यों है हॉट केक ?
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डवलपिंग सोसायटीज़ ने विभिन्न अध्ययनों के हवाले से बताया है कि उत्तर प्रदेश में 10 प्रतिशत से कुछ अधिक वोट बैंक ब्राह्मणों का है। ये वर्ग राज्य में राजनीतिक और सामाजिक रूप से काफी प्रभावशाली माना जाता है। पारंपरिक रूप से ब्राह्मण वोट बैंक कांग्रेस के साथ जुड़ा रहा है। लेकिन पिछले कुछ चुनावों में ये वोटबैंक कांग्रेस से छिटक गया और विभिन्न राजनीतिक दलों में इसके वोट बंट गए।
पिछले चुनावों में ब्राह्मण वोट बीजेपी के खाते में गया और बीजेपी के हाथ राज्य में सत्ता की चाबी लग गई। बहुजन समाज पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग में ब्राह्मणों को काफी तरजीह दी गई थी और मायावती की सरकार बनवाने में ब्राह्मणों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
मौजूदा दौर में, उत्तर प्रदेश में सत्ता की दौड़ में बीजेपी और समाजवादी पार्टी सबसे आगे चल रहे हैं। पंचायत चुनावों में समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है और उसे अब विधानसभा चुनावों में अपने प्रदर्शन को और दमदार बनाने की फिक्र हो चली है। ऐसे में उसकी निगाह राज्य़ में बीजेपी से रूठे ब्राह्मण वोट बैंक पर सबसे ज्यादा है। इसके अलावा वो राज्य में कोरोना से उपजे हालात और बेरोजगारी से तबाह नौजवान को भी अपने पाले में करने के लिए जीतोड़ कोशिश कर रही है।
बीजेपी में ब्राह्मण वोटों की खातिर हो रहे रोजाना नए प्रयोगों को भी इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। अब देखना ये होगा कि उत्तर प्रदेश में हॉटकेक बना ब्राह्मण वोटबैंक किसके पाले में जाता है ?
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया