Homeपरिदृश्यटॉप स्टोरीभारत में 'डिजिटल तानाशाही', 'अनफ्रीडम मॉनीटर' की रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य....!

भारत में ‘डिजिटल तानाशाही’, ‘अनफ्रीडम मॉनीटर’ की रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य….!

spot_img

नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र) : क्या भारत डिजिटल तानाशाही के दौर की तरफ बढ़ रहा है ? क्या भारत में मॉडर्न सूचना तकनीक का इस्तेमाल उस टूल की तरह से किया जा रहा है जो विरोधियों की आवाजों को दबाने, उनके खिलाफ दुष्प्रचार करने और सरकार के खिलाफ आवाजों को देश के खिलाफ आवाज की शक्ल देने की कोशिश की तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है ? सवाल थोड़े टेढ़े जरूर हैं लेकिन हैं चिता के विषय। अनफ्रीडम मॉनीटर नाम की एक नई रिपोर्ट में भारत का नाम दुनिया के उन 20 देशों में शामिल है जो डिजिटल तानाशाही को बढ़ावा देने  के क्रम में शुमार किए जा रहे हैं।

क्या है डिजिटल तानाशाही ?

डिजिटल तानाशाही का मतलब दमनकारी राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने के लिए टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से है। जैसे कि  किसी सेवा का दुरपयोग करते हुए उसकी गोपनीयता को दरकिनार करना  या सार्वजनिक प्लेटफार्मों के सहारे उपलब्ध जानकारी को विकृत कर देना।

रिपोर्ट में इसके स्वरूप के बारे में चर्चा करते हुए कहा गया है कि तानाशाह सरकारें केवल इंटरनेट, मीडिया और अन्य संचार टेक्नोलॉजी तक पहुंच को प्रतिबंधित नहीं करना चाहती हैं। कई सरकारें ऐसी कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी में निवेश करती हैं जो स्वतंत्रता पर अंकुश लगाती है। डिजिटल तानाशाही को मापने के लिए ये भी समझने की कोशिश की जाती है कि इस तरह की घटनाओं के होने की स्थिति में सरकारों ने उसे कैसे नियंत्रित किया है। इसमें डेटा प्रबंधन, अभिव्यक्ति की आजादी, लोगों तक उसकी पहुंच और प्रसारिक सूचना कितनी स्वतंत्र है इन मापकों पर भी गौर किया जाता है।

क्या है अनफ्रीडम मॉनीटर ?

अनफ्रीडम मॉनीटर वैश्विक स्तर पर इस तरह की कोशिशों को दर्ज करने के साथ उनका विश्लेषण करता है। ये तानाशाही प्रथाओं को आगे बढ़ाने के लिए डिजिटल कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के बढ़ते इस्तेमाल का विश्लेषण, दस्तावेजीकरण और रिपोर्ट करने का एक प्रोजेक्ट है। कई देशों के रिसर्चरों के इस शोध को ‘ग्लोबल वॉयस एडवॉक्स’ ने सामने रखा है। इस प्रोजेक्ट की फंडिंग डॉयचे वेले अकादमी (डीडब्ल्यू) द्वारा की गई थी।

अनफ्रीडम मॉनिटर में जांच के लिए चुने गए पहले 20 देश वहां की ‘सरकार की प्रकृति, मानवाधिकारों के प्रति दृष्टिकोण समेत सूचकांकों में रैंकिंग, संचार और सर्विलांस टेक्नोलॉजी के प्रयोग के दृष्टिकोण जैसे कारकों  के आधार पर चयनित हैं। इसमें भारत के साथ ब्राजील, कैमरून, इक्वाडोर, मिस्र, अल साल्वाडोर, हांगकांग, हंगरी, कजाकिस्तान, केन्या, किर्गिस्तान, मोरक्को, म्यांमार, फिलीपींस, रूस, सूडान, तंजानिया, तुर्की, वेनेजुएला और जिंबाब्वे जैसे दूसरे देश शामिल हैं।

 रिपोर्ट के अहम बिंदु

अनफ्रीडम मॉनीटर रिपोर्ट में कहा गया है कि, डिजिटल तानाशाही स्थापित करने वाली सरकारें और सरकार से संबद्ध संगठन सूचना पारिस्थितिकी तंत्र बनाकर, उस पर प्रभाव बनाकर, बड़े पैमाने पर दुष्प्रचार अभियान चलाकर और अन्य गतिविधियों के जरिए उस जानकारी को नियंत्रित करना चाहते हैं जो लोगों को मिलने वाली सूचनाओं और उनकी समझ को प्रभावित करते है।

रिपोर्ट में ब्राज़ील के पूर्व राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो की सरकार द्वारा फंड किए गए ‘डिजिटल मिलिशिया’ का जिक्र किया गया है  जिसने कोविड​​-19 से जुड़ी झूठी खबरों को फैलाने का काम किया। रिपोर्ट में इसी क्रम में भारत के प्रधानमंत्री, उनकी पार्टी और समर्थकों का जिक्र भी किया गया है।  रिपोर्ट में पेज 14 पर लिखा गया है कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी और उनके फॉलोवर्स ने लंबे समय से अपने ब्रांड को बढ़ावा देने और धार्मिक और राजनीतिक अल्पसंख्यकों को ट्रोल करने के लिए अपनी सोशल मीडिया मौजूदगी का इस्तेमाल किया है।

रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि इंटरनेट और टेलीकम्युनिकेशन के अभाव का भी नागरिकों की निर्णय क्षमता परर गहरा असर पड़ता है और वे खुद से जुड़े मसलों और राजनीतिक परिचर्चा से ही दूरी बनाने लगते हैं। इसके ताजा उदाहरणों में म्यांमार में तख्तापलट, भारत में नगरिक विरोध प्रदर्शनों और तंजानिया में चुनावों का जिक्र किया गया है।

अनफ्रीडम मॉनीटर की रिपोर्ट में कई तथ्य चौंकाने वाले हैं जैसे कि तानाशाही की मंशा रखने वाली सरकारें नागरिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए कई कारण गिनाती हैं जैसे कि इसे नागरिकों के ही हित में बाताया जाता है। सरकारें ये दलील भी देती हैं राजनीतिक स्थिरता और सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मीडिया और सोशल मीडिया की निगरानी जरूरी है। रिपोर्ट में ये बताया गया है कि जिन देशों में इन दलीलों को प्रमुखता  देते हुए निगरानी की जा रही है उनमें भारत के अलावा रूस, ईरान, म्यांमार और वेनजुएला जैसे देश शामिल हैं।

रिपोर्ट में शोध प्रोजेक्टों के हवाले से बताया गया है कि तानाशाही समर्थक सरकारों का ध्यान हमेशा विरोधियों को बदनाम करने पर केंद्रित रहता है और वे अपनी दलीलों को जस्टीफाई करने के लिए तर्कों की तलाश तमाम ऐतिहासिक साक्ष्यों में खोजने की कोशिश करते हैं और ऐतिहासिक तथ्यों के साथ भी छेड़छाड़ करते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी सरकारें सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को देश का दुश्मन बताते  हुए उनके खिलाफ कार्रवाई करती रहती हैं। रिपोर्ट में भारत का नाम चीन और ईरान जैसे देशों के साथ रखा गया है जहां इन दलीलों के सहारे पत्रकारों की गिरफ्तारी, निगरानी और उन पर दबाव बनाने का काम किया जा रहा है।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

- Advertisment -spot_img

Recent Comments