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बजट ने अब दिखाया, नए भारत का नया सपना….हाशिए पर बुनियादी सवाल……

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क) : साल 2022- 2023 का आम बजट पेश कर दिया गया है। प्रधानमंत्री ने बुधवार को देश को बजट की विशेषताओं बारे में समझाते हुए इसे दूरगामी और विकासोन्मुख बजट बताया। भारतीय जनता पार्टी के सांसदों को भी निर्देश दिया गया है कि वे 5 और 6 फऱवरी को अपने  संसदीय क्षेत्र में बजट के बारे में जनता को जागरूक करें और समझाएं। वित्तीय वर्ष 2022-2023 के लिए कुल व्यय 39.5 लाख करोड़ रुपयों का रखा गया है जबकि कुल प्राप्ति का आंकलन 22.9 लाख करोड़ का है। बजट घाटे को 6.9 प्रतिशत से घटा कर अगले वर्ष 6.4 प्रतिशत करने की योजना है।  

गणतंत्र भारत ने बजट का तुलनात्मक अध्ययन किया है। बजट में बहुत सी ऐसी घोषणाएं की गई हैं जो देश के सामने एक विजन को प्रस्तुत करती हैं जैसे साल 2047 तक नया भारत बानने का संकल्प। उस नए भारत में क्या-क्या होगा, इसके बारे में चर्चा आदि। बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कई ऐसी योजनाओं पर खामोशी बरती जो सरकार की कभी प्रमुख घोषणाओं में से एक हुआ करती थीं, जैसे, 100 स्मार्ट सिटी का क्या हुआ, नमामि गंगे पर कहां तक काम हुआ। ई-नाम से कितनी किसान मंडियों को जोड़ा गया और फसल बीमा का दायरा बढ़ा या घटा। 2022 तक किसानों की आय कहां तक पहुंची और सबके लिए आवास योजना का क्या हुआ? ऐसे तमाम सवाल हैं जो अनुत्तरित रहे। बजट की तुलनात्मक पड़ताल में एक बात जरूर समाने आई कि सरकार के दावों, अनुमानों और हकीकत में बहुत फर्क है। अब नए भारत का नया सपना है और हाशिए पर देश की बहुसंख्यक जनता है।  

बजट पड़ताल में कई बुनियादी मसलों का तुलनात्मक अध्ययन करने से पहले जानना जरूरी है कि इस बजट की खास बातें क्या हैं ?

बजट की कुछ खास बातें

भारत की विकास दर 9.27 फ़ीसदी रहने का अनुमान जताय़ा गया है। ये बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज़्यादा विकास दर है।

वर्चुअल और डिज़िटल संपत्ति की बिक्री और खऱीद से होने वाली आय पर 30 फ़ीसदी टैक्स लगाय़ा जाएगा।

केंद्र सरकार के कर्मचारियों को नेशनल पेंशन स्कीम में योगदान पर 14 प्रतिशत तक की टैक्स राहत मिलती है जबकि राज्य सरकार के कर्मचारियों को 10 प्रतिशत। अब राज्य सरकार को भी 14 प्रतिशत टैक्स राहत देने का फ़ैसला किया गया है।

पीएम गति शक्ति के 7 आधार स्तंभों में सड़क, रेल, एयरपोर्ट, बंदरगाह, ट्रांसपोर्ट, वाटरवेज और लॉजिस्टिक इन्फ़्रास्ट्रक्चर शामिल हैं और इसकी मदद से अर्थव्यवस्था को गति देने का प्रयास होगा।

2022-2023 में 25, 000 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग का विस्तार किया जाएगा। इस काम पर  20 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे।

देश में एक डिज़िटल युनिवर्सिटी बनाई जाएगी, जहां अलग-अलग भारतीय भाषाओं में पढ़ाई होगी।

एक राष्ट्र एक पंजीकरण, देश में कारोबार में सुविधा के लिए कहीं भी पंजीकरण कराय़ा जा सकेगा और वो पूरे देश में मान्य होगा।

हाशिए पर प्राथमिकताएं  

बजट के साथ सरकार की प्राथमिताएं भी सामने आती हैं। कहा कुछ भी जाए लेकिन बजट में पिछले साल किस मद में कितना पैसा आवंटित हुआ, कितना खर्च हुआ और मौजूदा बजट में उस मद में कितना पैसा दिया गया है ये सारी जानकारियां मायने रखती हैं। गणतंत्र भारत ने कुछ बिंदुओं को ध्यान में रखथे हुए बजट की पड़ताल की और समझने की कोशिश की कि सरकार की प्राथमिकताओं में जनता के बुनियादी सवाल कहां खड़े हैं ?

राजकोषीय घाटा  

2022-2023 वित्तीय वर्ष के लिए सरकार ने राजकोषीय घाटा जीडीपी का 6.4 प्रतिशत निर्धारित किया है। ये 2021-2022 के मुकाबले .4 प्रतिशत कम है। पिछले वर्ष ये 6.8 प्रतिशत था जबकि बजट प्रावधानों में इसे 6.9 प्रतिशत तय किया गया था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार, सरकार की कोशिश साल 2024 तक इसे घटाकर 5 प्रतिशत के आसपास लाने की है।

ग्रामीण भारत पर कितना फोकस  

देश में एक साल तक किसान आंदोलन चला। कृषि कानूनों की वापसी के अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों की बड़ी मांगें थीं। किसान कानून तो वापस हो गए लेकिन एमएसपी पर गारंटी जैसे सवाल अभी भी अटके पड़े हैं। सरकार ने इस बजट में ग्रामीण विकास के मद में पिछले वित्तीय वर्ष में 1,33,690 करोड़ रुपए का बजट जारी किया था, लेकिन वास्तविक खर्च 1,55,042.27 करोड़ रुपए हुआ। इसके बावजूद इस साल ग्रामीण विकास के लिए 1,38,203.63 करोड़ का प्रावधान किया गया  जो बीते वित्तीय वर्ष में खर्च राशि से कम है।

पीएम किसान सम्मान निधि के लिए आवंटन मोटे तौर पर बीते वर्ष के समान ही रहा हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि 2019-2020 वित्तीय वर्ष में शुरू हुई इस योजना का वास्तविक बजट तब की अपेक्षा पिछली दिसंबर की समाप्त तिमाही तक 15.5 प्रतिशत कम हो गया है।

इसी तरह से, किसान मंडियों को ई-नाम से जोड़ने की योजना पर बजट मौन रहा। देश में 7500 अनाज मंडिया हैं लेकिन अभी तक सिर्फ 1000 मंडियों को ही ई-नाम से जोड़ा गया है। कृषि मंत्रालय की वेबसाइट पर पिछले वर्ष भी 1000 मंडियों को ई-नाम से जोड़ने की उपलब्धि गिनाई गई थी। यानी पिछले एक वर्ष में एक भी अनाज मंडी ई-नाम से नहीं जोडी गई।

फसल बीमा योजना के दायरे को विस्तार देने या उसे आगे बढ़ाने के क्रम में बजट में कोई आवंटन नहीं किया गया है। प्राकृतिक खेती के नाम पर गंगा किनारे पांच किलोमीटर की पट्टी का जिक्र किया गया है जबकि पहले की ऐसी योजनाओं के लिए निर्धारित बजट भी नहीं खर्च हो पाया।     

शिक्षा बजट में मामूली बढ़ोतरी

कोरोना महामारी के चलते पिछले दो साल छात्रों के लिए बहुत मुश्किल भरे रहे हैं। विभिन्न सर्वेक्षणों में सामने आया है कि जिन छात्रों की नियमित ऑनलाइन कक्षाओं तक पहुंच नहीं थी  उनकी सीखने और पढ़ने की क्षमता में कमी आई है। पिछले वित्तीय वर्ष में सरकार ने शिक्षा के लिए 93,224 करोड़ रुपए का प्रावधान किया था जबकि वास्तविक खर्च निर्धारित राशि से भी कम यानी 88,002 करोड़ रुपए ही किए गए। इसकी वजह, कोविड की दूसरी लहर के चलते लगा लॉकडाउन हो सकता है लेकिन शिक्षा के मद में निर्धारित बजट का खर्च न हो पाना वास्तव में चिंता का विषय है। सरकार ने इस साल शिक्षा के बजट में मामली बढ़ोतरी करते हुए उस मद में 1,04,278 करोड़ रुपए खर्च का आवंटन किया है।

सेहत से जुड़े सवाल

भारत में कोरोना महामारी का तीसरा दौर जारी है। देश की स्वस्थ्य व्यवस्था पर इस महामारी ने व्यापक असर डाला है। 2021-20022 के बजट में स्वास्थ्य मंत्रालय ने आवंटित बजट से भी अधिक राशि खर्च की। पिछले साल बजट में इस मद में 73,932 करोड़ रुपए का प्रावधान था लेकिन संशोधित खर्च 86,000.65 करोड़ हुआ।  सरकार ने इस खर्च में मामूली बढ़ोतरी के साथ इस बार 86,200.65 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।

मनरेगा में बजट नहीं बढ़ा

सरकारी आंकड़ों के हिसाब से ही देश में बेरोजगारी की मार इस समय चरम पर है। करीब 4 करोड़ लोग इस समय बेरोजगार हैं। कोरोना महामारी के चलते देश के 84 प्रतिशत कार्य बल की आय पहले से घट गई है। ऐसे समय में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार सुरक्षा अधिनियम (मनरेगा) के तहत उपलब्ध रोजगार ने कामगारों को काफी राहत पहुंचाई है। सरकार ने पिछले बजट में इस मद में 73 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया था लेकिन उसे खर्च करने पड़े 98000 करोड़ रुपए। परिस्थियों को देखते हुए उम्मीद थी कि सरकार इस मद में पैसे बढ़ाएगी ताकि महामारी से उबरते कामगारों को इससे रोजगार मिल सके लेकिन ऐसा हुआ नहीं और सरकार ने खर्च को नजरंदाज करते हुए फिर से 73000 करोड़ रुपए ही मनरेगा के लिए आंवटित किए हैं। पहले ही, इस योजना में पर्याप्त फंड का न होना और देरी से भुगतान की शिकायतें मिलती रही हैं।

बाल स्वास्थ्य और खाद्य सब्सिडी

देश के भविष्य यानी बच्चों का स्वास्थ्य सरकार के लिए कितनी प्राथमिकता में आता है इसे प्रधानमंत्री पोषण और मिड डे मील के लिए आवंटित धन से समझा जा सकता है। पिछले बजट में इस मद में 11500 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया गया था लेकिन खर्च सिर्फ 10234 करोड़ रुपए ही हो पाए। इसकी वजह, महामारी के दौरान स्कूलों का बंद होना रहा लेकिन अब जबकि स्कूल खुलने शुरू हो गए हैं तो सरकार ने फिर से 10234 करोड़ रुपए ही इस मद में आवंटित किए हैं। यानी पिछले बजट में आवंटित राशि से भी कम पैसा इस मद में दिया गया है।

खाद्य सब्सिडी में तो गजब ही कर दिया गया है। पिछले साल सरकार ने खाद्य सब्सिडी पर 2,99,354.6 करोड़ रुपए खर्च किए थे। इस साल इस मद में 92 हजार करोड़ रुपयों से ज्य़ादा की कटौती करते हुए उसे दो लाख 92 हजार करोड़ रुपए से कुछ ज्यादा का आवंटन किया गया है।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया  

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