देहरादून, 01 अगस्त (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : उत्तराखंड में 1980 के दशक में शुरू हुए ‘नशा नहीं, रोजगार दो’ आंदोलन में एक बार फिर से जान फूंकने की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है। इस आंदोलन से राज्य में शराब माफिया के खिलाफ बड़े पैमाने पर मुहिम शुरू हुई थी और युवाओं को शराब की जगह रोजगार दिलाने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन हुए थे। इस बार लोग शराब के साथ ही राज्य में तेजी से पैर फैला रहे ड्रग्स के काले कारोबार का खात्मा करने के लिए एक बड़ी मुहिम की जरूरत महसूस कर रहे हैं।
उनका कहना है कि स्मैक और अन्य ड्रग्स के जरिए बड़े सुनियोजित तरीके से राज्य की युवा पीढ़ी को बर्बाद किया जा रहा है और राज्य सरकार और इसके अफसर कार्रवाई के नाम पर महज रस्म अदायगी कर रहे हैं। कई लोग राज्य में ड्रग्स की सप्लाई को ड्रग जेहाद तक करार दे रहे हैं। उनका कहना है कि इसका मकसद राज्य की युवा पीढ़ी को बर्बाद करके यहां की जमीनों पर कब्जा करना और यहां के मूल निवासियों को अल्पसंख्यक बनाना है।
गौरतलब है कि अभी हाल के सालों तक राज्य में नशे के लिए शराब और भांग-गांजे आदि का सेवन किया जाता था और इनको ज्यादा खतरनाक नहीं माना जाता था। लेकिन अब पंजाब और देश के कुछ अन्य राज्यों की तरह ही उत्तराखंड में स्मैक और सिंथेटिक ड्रग्स का कारोबार करने वालों का जाल फैल गया है। इस जाल को खत्म करने और ड्रग सप्लाई की जड़ को खत्म करने में राज्य का सारा सिस्टम फेल हो रहा है। हालात को देखते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अभी एक उच्चस्तरीय बैठक करके 2025 तक राज्य से ड्रग्स के काले कारोबार को खत्म करने का निर्देश अपने अधिकारियों को दिया है।
सूत्रों का कहना है कि फिलहाल राज्य की पुलिस जिस तरह से काम कर रही है, उसे देखते हुए ये काम हो पाएगा, ऐसा लगता नहीं है। इसके साथ ही 2025 तक का समय बहुत ज्यादा है, तब तक न जाने कितने और युवा ड्रग्स की चपेट में आ जाएंगे। उनका ये भी कहना है कि अगर राज्य की पुलिस चाहे तो ड्रग सप्लाई के स्रोत को चंद दिनों में ही खत्म कर सकती है। उसके छिटपुट अभियानों से बात बनने वाली नहीं है। सूत्रों का कहना है कि राज्य के किसी भी जिले का शायद ही ऐसा कोई कोना बचा हो, जहां ड्रग्स न पहुंच रही हों।
कुमाऊं मंडल के पुलिस महानिरीक्षक रहे अजय रौतेला के मुताबिक, इस क्षेत्र में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, पंजाब होते हुए बरेली से ड्रग्स की सप्लाई हो रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कुमाऊं के मुनस्यारी, धारचूला, जौलजीवी, देघाट और सल्ट जैसे दुर्गम इलाकों तक में ड्रग्स बिना किसी दिक्कत के पहुंच रही हैं और युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही है। ड्रग्स के लिए पैसे जुटाने के लिए वे अपराध के रास्ते पर बढ़ रही है। इसी तरह गढ़वाल के भी तकरीबन हर हिस्से में ड्रग्स की सप्लाई हो रही है। गढ़वाल में पंजाब, पोंटा साहिब से होते हुए ड्रग्स देहरादून पहुंच रही हैं और वहां से पूरे मंडल में।
हल्द्वानी कुमाऊं मंडल का प्रवेश द्वार है। यहां की एक महिला बताती हैं कि उन्होंने अपने बेटे का दाखिला नैनीताल के एक नामी स्कूल में कराया था। एक दिन बेटे ने स्कूल से आकर बताया कि उसके स्कूल के कई बच्चे कागज में कुछ रखकर सिगरेट की तरह उसे पीते हैं, तो कई बच्चे कोई इंजेक्शन भी लगाते हैं। इस महिला ने कहा कि ये सुनते ही उसने अपने बच्चे को उस स्कूल से निकालकर उसका एडमिशन हल्द्वानी के एक स्कूल में करा दिया। लेकिन अब हल्द्वानी का भी हाल खराब है। एक स्थानीय शख्स ने बताया कि इस शहर की युवा पीढ़ी को स्मैक ने बर्बाद कर दिया है। यहां युवा लड़के ही नहीं, लड़कियां तक बड़ी तादाद में स्मैक की चपेट में आ गई हैं, लेकिन जिले की पुलिस ड्रग्स की तस्करी रोकने के नाम पर सिर्फ खानापूरी कर रही है। वो इसके स्रोत तक पहुंचने के लिए ठोस प्रयास नहीं कर रही है। ड्रग्स की सप्लाई पर रोक लगाने के लिए जिले की एसओजी को जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन वह कभी-कभार कुछ ड्रग्स पकड़ कर अपने और कामों में लग जाती है।
शहर के एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि राज्य से ड्रग तस्करों के सफाए के लिए हर जिले में एक खास एसटीएफ बनानी होगी, जो कि सिर्फ यही काम करे। ऐसा करके ही इस समस्या को जड़ से खत्म किया जा सकता है। वे यह भी बताते हैं कि हल्द्वानी में कुछ साल पहले तक महज एक नशा मुक्ति केंद्र था। अब यहां ऐसे सात केंद्र हो गए हैं। यही हाल देहरादून का है, जो कि राज्य की राजधानी है।
जानकारों का कहना है कि शराब और भांग के नशे से तो आसानी से मुक्ति मिल जाती है, लेकिन जो स्मैक का लती हो गया, उसे इसके जाल से निकालना बहुत मुश्किल हो जाता है।
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