नई दिल्ली, 15 सितंबर (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : आजादी के 75 साल बाद भी टीबी का मर्ज भारत के लिए एक बड़ी समस्या बना हुआ है। फिलहाल टीबी के इलाज के लिए कई दवाएं मौजूद हैं, लेकिन इसकी रोकथाम के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला बीसीजी टीका बच्चों में तो असरदार है, मगर किशोरों और वयस्कों को सुरक्षा प्रदान करने में यह उतना असरदार नहीं पाया गया है। इस चुनौती को ध्यान में रखते हुए भारतीय वैज्ञानिक एक ऐसी वैक्सीन विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं, जो वयस्कों को भी टीबी से सुरक्षा दे सके।
इस सिलसिले में बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक सोने के सूक्ष्म कणों की मदद से नई वैक्सीन बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने सोने के सूक्ष्म कणों में टीबी के बैक्टीरिया को लपेटकर शरीर की प्रतिरक्षा कोशिकाओं तक पहुंचाने की रणनीति बनाई है। उनका मानना है कि ये तरीका प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करके बीमारी से सुरक्षा प्रदान करने में प्रभावी भूमिका निभा सकता है।
संस्थान के सेंटर फॉर बायोसिस्टम्स साइंस एंड इंजीनियरिंग में असिस्टेंट प्रोफेसर रचित अग्रवाल और उनकी टीम द्वारा विकसित सब-यूनिट वैक्सीन कैंडिडेट में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करने के लिए टीबी के बैक्टीरिया के केवल कुछ हिस्सों का प्रयोग किया गया है। साथ ही शरीर की बाहरी मेम्ब्रेन वेसिकल्स का उपयोग किया है। उनका कहना है कि बाहरी मेम्ब्रेन वेसिकल्स कुछ बैक्टीरिया प्रजातियों द्वारा पैदा किए गए गोलाकार झिल्ली से बंधे कण होते हैं और उनमें प्रोटीन और लिपिड का वर्गीकरण होता है। ये रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रेरित कर सकता है। वैज्ञानिकों ने इससे पहले रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया से सीमित प्रोटीन्स के आधार पर सब-यूनिट टीके विकसित किए हैं, लेकिन वे प्रभावी नहीं रहे हैं। प्रो. अग्रवाल के मुताबिक, आउटर मेम्ब्रेन वेसिकल्स किसी जीवित बैक्टीरिया की तुलना में अधिक सुरक्षित होते हैं और उनमें सभी प्रकार के एंटीजन होते हैं।
माना जा रहा है कि इस तकनीक से अगर टीके का विकास हो गया तो वो टीबी से बचाव में खासा कारगर साबित हो सकता है। भारत में इस समय टीबी के सबसे ज्यादा केस हैं। पहले इस स्थान पर चीन था। देश में हर साल टीबी के कारण करीब पांच लाख लोगों की मौत हो जाती है। सरकार ने 2025 तक देश में टीबी के खात्मे का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए कई स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं।
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