नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए एजेंसियां ) : 8 नवंबर 2016 को केंद्र सरकार ने नोटबंदी की घोषणा संबंधी जो हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दिया है क्या उसमें जानबूझ कर कई तथ्यों को छिपाया गया है और अदालत के सामने बहुत सी जानकारियों को पेश ही नहीं किया गया है ? सुप्रीम कोर्ट इस मामले में 2 जनवरी को अपना फैसला सुनाने वाला है।
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने इस सिलसिले में आज एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट के अनुसार,आरबीआई और केंद्र सरकार ने अपने हलफ़नामों में आरबीआई की ओर से की गई उन आलोचनाओं का ज़िक्र नहीं किया है जिनमें बैंक के सेंट्रल बोर्ड ने सरकार के उन तर्कों की आलोचना की थी जिनके आधार पर नोटबंदी को ज़रूरी फ़ैसला ठहराया गया था। इसके अलावा कोर्ट को ये भी नहीं बताया गया है कि केंद्रीय बैंक की ओर से सरकार को ये क़दम उठाने के लिए अनिवार्य अनुशंसा किए जाने से पहले ही इन आलोचनाओं को दर्ज कराया गया था।
नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से नोटबंदी का एलान करने से कुछ घंटे पहले ही आरबीआई ने अपने सेंट्रल बोर्ड की मीटिंग में उठाए गए सवालों को मिनट्स ऑफ़ मीटिंग के रूप में औपचारिक रूप से दर्ज किया था।
नोटबंदी के एलान से ठीक ढाई घंटे पहले शाम पांच बजकर तीस मिनट पर हुई इस मीटिंग में आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड ने कहा कि, अर्थव्यवस्था में वृद्धि की जो दर बताई गई है, वो ठीक है, उसके लिहाज से कैश इन सर्कुलेशन में वृद्धि नाममात्र है। इन्फ़्लेशन को ध्यान में रखा जाए तो अंतर इतना ज़्यादा नहीं नज़र आएगा। ऐसे में ये तर्क पूरी तरह से नोटबंदी के फ़ैसले का समर्थन नहीं करता।
क्या ये जनाकारियां छिपाई गईं ?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया कि, केंद्र सरकार के हलफ़नामे के मुताबिक़, चलन में मौजूद जाली नोट उन तीन बड़ी बुराइयों में शामिल हैं जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से नुक़सान पहुंचाया। हलफ़नामे में ये नहीं बताया गया है कि आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड ने इस तर्क पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि, हालांकि, जाली नोटों का होना एक चिंता का विषय है लेकिन चलन में जाली नोटों का मूल्य चार सौ करोड़ रुपए है जो कि 17 लाख करोड़ रुपए के असली नोटों की तुलना में बहुत ज़्यादा नहीं है।
केंद्र सरकार ने अपने हलफ़नामे में ये भी बताया है कि नोटबंदी का मक़सद बेनामी संपत्ति की समस्या दूर करना भी है जो ऊंचे मूल्य वाले नोटों के ज़रिए जमा की जाती है और जो अक्सर जाली नोट होते हैं। आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि, ज़्यादातर काला धन नक़दी के रूप में नहीं बल्कि सोने और ज़मीनों के रूप में जमा किया गया है और नोटबंदी से इन संपत्तियों पर बड़ा असर नहीं पड़ेगा।
केंद्र सरकार ने अपने हलफ़नामे में लिखा कि, नोटबंदी का उद्देश्य जाली मुद्रा के ज़रिए आतंकवाद और ऐसी ही दूसरी गतिविधियों को रोकना था। लेकिन कोर्ट को ये नहीं बताया गया है कि आरबीआई की बैठक में इस बारे में कोई चर्चा ही नहीं हुई।
केंद्र सरकार के हलफनामे में नोटबंदी को एक ज़रूरी क़दम साबित करने की दिशा में जीडीपी और कैश इन करेंसी यानी चलन में जो मुद्रा है, उसमें असंतुलित वृद्धि को एक मुख्य वजह बताया गया। लेकिन हलफ़नामे में ये नहीं बताया गया है कि कैश टू जीडीपी अनुपात नोटबंदी के बाद तीन साल के अंदर ही नोटबंदी से पहले वाले स्तर पर पहुंच गया।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार हलफनामें में 500 और 100 रुपए को नोटों के चलन में वृद्धि का हवाला दिया लेकिन सकल अर्थव्यवस्था के संदर्भ में उस पर उठाए गए सवालों को छिपा लिया गया। इसी तरह से, 2014-15 और 2015-16 के आर्थिक सर्वेक्षणों में अर्थव्यवस्था के कमतर वृद्धि संबंधी विश्लेषण पर भी आरबीआई ने जो सवाल उठाए उसे छिपा लिया गया।
आपको बता दें कि, भारतीय रिज़र्व बैंक और केंद्र सरकार ने नोटबंदी से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपने-अपने हलफ़नामे पेश किए हैं। केंद्र सरकार ने कोर्ट में पेश किए अपने हलफ़नामे में कहा है कि नोटबंदी एक सोचा-समझा फ़ैसला था जिस पर आरबीआई के साथ नोटबंदी से नौ महीने पहले फ़रवरी, 2016 में सलाह-मशविरे का दौर शुरू हुआ था। आरबीआई ने भी अपने हलफ़नामे में कोर्ट से कहा है कि नोटबंदी में तय प्रक्रिया का पालन हुआ था और ये क़दम उसकी ही अनुशंसा पर ही उठाया गया था।
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