लखनऊ (गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र ) : उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के पहले चरण में एक महीने से भी कम वक्त रह गया है। योगी आदित्य नाथ मंत्रिमंडल से दो मंत्रियों स्वामी प्रसाद मौर्या और दारा सिंह चौहान के अलावा एक बीजेपी विधायक मुकेश वर्मा ने पार्टी छोड़ दी है। संकेतों के अनुसार ये सभी समाजवादी पार्टी में जा रहे हैं। बीजेपी उत्तर प्रदेश में बड़ी जीत का दावा कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अधिसूचना जारी होने से ठीक पहले ताबड़तोड़ सभाएं की और विकास योजनाओं की घोषणा की। सवाल ये है कि अगर बीजेपी में सब कुछ ठीक है तो क्यों उसके नेता और यहां तक कि मंत्रिमंडलीय सहयोगी भी पार्टी छोड़ रहे हैं ? सवाल ये भी है कि पार्टी छोड़ने वाले नेता बीजेपी से नाराज हैं या मुख्यमंत्री से ? सवाल ये भी है कि ऐसा क्या हुआ कि इन नेताओं को बीजेपी में अपनना राजनीतिक भविष्य असुरक्षित लगने लगा ?
पार्टी छोड़ने वाले नेताओ ने जिस तरह के बययान दिए हैं उनसे साफ जाहिर है कि उन्होंने आक्षेप उत्तर प्रदेश सरकार पर लगाया है। सवाल सरकार और मुख्यमंत्री की कार्यशौली पर उठाए हैं।
बीजेपी अंदरखाने हलचल तेज
बताया जा रहा है कि बाहर से जो भी दिख रहा हो लेकिन बीजेपी में अंदरखाने काफी कुछ चल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के बीच तनाव की खबरें तो पहले भी आती रहीं हैं। मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के बीच भी सत्ता संघर्ष चलता रहा। लेकिन, 2024 के चुनाव से पहले बीजेपी किसी भी सूरत में उत्तर प्रदेश की सत्ता नहीं गंवाना चाहेगी।
फिर बीजेपी में इस भगदड़ की क्या है वजह ?
इसमें कोई दोराय नहीं कि योगी आदित्य नाथ का उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचना अचानक और प्रायोगिक था। गोरखपुर और उसके आसपास के कुछ इलाकों को छोड़ दें तो राज्य की राजनीति में उनका कोई विशेष रसूख भी नहीं था। लेकिन जिस तरह से पार्टी नेतृत्व से लड़कर उन्होंने मुख्यमंत्री का पद हासिल किया उससे उनकी एक लड़ाकू छवि जरूर बनी। दरअसल दिक्कत भी यहीं से शुरू हुई। योगी आदित्य नाथ को किसी भी तरह का प्रशासनिक अनुभव नहीं था ऊपर से मंत्रिमंडलीय सहयोगियों का विश्वास भी वे जीत नहीं पाए। सत्ता के कई केंद्र विकसित हुए।
योगी की कार्यशैली
सब कुछ ठीक है ये संकेत देने के लिए योगी आदित्य नाथ ने मुख्यमंत्री के साथ साथ समानांतर अपनी खुद की छवि को चमकाने को ज्यादा तरजीह दी। योगी ने हर उस किसी के पर कतरने में देर नहीं लगाई जो नई दिल्ली के रास्ते लखनऊ आया। ए.के, शर्मा जिन्हें गुजरात से नौकरी छुड़ा कर लखनऊ भेजा गया इसके जीते जागते उदाहरण हैं।
उत्तर प्रदेश की राजनीति की नब्ज समझने वाले जानते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ जल्दी अपने विधायकों से भी नहीं मिलते हैं। क्षेत्र के काम कराने के लिए इन विधायकों को अफसरों के पीछे घूमना पड़ता था। इसके चलते विधायकों के मन में योगी आदित्य नाथ को लेकर काफी नाराजगी बताई जाती है।
नौकरशाही हावी
ये भी बताया जाता है कि मुख्यमंत्री सचिवालय के सभी फैसले नौकरशाहों के फैसले होते थे। मुख्यमंत्री खुद नौकरशाहों की एक चौकड़ी से घिरे रहते हैं और वे वही समझते हैं जो उनके अफसर उनको समझा देते हैं। लोकतंत्र में मुख्यमंत्री का अपने विधायकों और जनते से कटे रहना पार्टी के लिए घातक होता है।
योगी की निजी छवि
योगी आदित्य नाथ की छवि को एक बड़ा डेंट उनका खुद का व्यक्तित्व है। एक कट्टर हिंदूवादी चेहरे के कारण राज्य का एक बड़ा वर्ग जिसमें मुसलमानो के अलावा दलित और पिछड़े भी शामिल हैं खुद को उनके साथ जोड़ ही नहीं पाता। इसके अलावा, उनके राजनीतिक रूप से अपरिपक्व बयानों से भी खासा नुकसान हुआ है। ठोंक दो, शमशान-कब्रिस्तान, 80 बनाम 20 की लड़ाई ऐसे ही बयान है। इनसे योगी आदित्य नाथ को नुकसान हुआ हो या न हुआ हो लेकिन बीजेपी को एक पार्टी के रूप में जरूर नुकसान हुआ है।
ब्राह्मणों की नाराजगी
मुसलमानों, दलितों-पिछड़ों के अलावा बताया जाता है कि, उत्तर प्रदेश का ब्राह्मण समाज भी योगी आदित्य नाथ से खासा नाराज है। पिछले चुनावों में बीजेपी की जीत में इस वर्ग के व्यापक समर्थन का खासा योगदान था। पार्टी नेतृत्व ने इस बात को भांपते हुए इसे काउंटर करने के लिए कई प्रयोग किए। राज्य में पार्टी के ब्राह्मण चेहरो जैसे उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा और कानून मंत्री बृजेश पाठक को हालात संभालने के काम में लगाया गया। कांग्रेस से जितिन प्रसाद को बीजेपी में इसीलिए लाया गया कि पार्टी के ब्राह्मण आधार को मजबूत किया जा सके। लेकिन बात इससे बनी नहीं।
दांव पर है योगी की राजनीति
राजनीतिक विश्लेषक, मानते हैं कि, अगर योगी आदित्य नाथ इन चुनावों में बीजेपी की नैय्या को पारर लगा देते हैं तो निश्चित रूप से वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद पार्टी के सबसे बड़े कद के नेता बन जाएंगे। लेकिन अगर ऐसा न हुआ तो ये योगी आदित्य नाथ के राजनीतिक पराभव की पराकाष्ठा भी साबित होगा। क्योंकि उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य और बड़ी जनसंख्या वाले राज्य में राजनीति में कट्टर नेता की छवि फायदा नहीं नुकसान ज्यादा पहुंचाती हैं।
फोटो सौजन्य़- सोशल मीडिया