नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र) : कर्नाटक में हिजाब विवाद ने जिस तरह से तूल पकड़ा और देश भर में उसे लेकर जिस तरह की नाराजगी देखी गई उसके बाद भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व मामले से पल्ला झाड़ लेने के प्रयास में जुट गया है। कर्नाटक सरकार को भी समझा दिया गया है कि उसने इस मामले में कार्रवाई में विलंब करके हालात को और बिगड़ने दिया।
कर्नाटक सरकार ने मामले को ठंडा करने के लिए हाईकोर्ट में दाखिल अपने जवाब में कहा कि सरकार के आदेश को ठीक तरह से समझा नहीं गया और उसे और आधिक स्पष्ट किए जाने की जरूरत थी। सरकार ने अपने आदेश में ये कहीं भी नहीं कहा कि छात्र हिजाब नहीं पहन सकतीं और स्कूल हिजाब पहन कर आने वाली छात्राओं को स्कूलों मे न आने दें। सरकार के जवाब में ये भी स्वीकार किया गया कि संबंधित सरकारी आदेश को और बेहतर तरीके से लिखा जाना चाहिए था।
उडुप्पी के एक सरकारी विद्यालय से शुरू हुए इस विवाद में भगवाधारी छात्रों का एक समूह भी बढ़चढ़ कर इसके विरोध में नजर आया। मीडिया से लेकर राजनीतिक दलों में इस मामले को लेकर खूब चर्चा और बहस भी हुई। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनावों में इसके असर की पड़ताल भी की गई। हिजाब के बहाने भारत बनाम पाकिस्तान बहस शुरू हो गई। पाकिस्तानी मीडिया ने भी आग में घी डालने का काम किया। वहां के न्यूज़ चैनलों में इसे भारत में गृहयुद्ध् शुरू होने का संकेत तक बता दिया गया।
फिर क्या हुआ कि भारतीय जनता पार्टी ने अचानक ही इस विवाद को विराम देने में ही भलाई समझी। भारतीय जनता पार्टी से जुड़े सूत्रों की मानें तो हिजाब विवाद को लेकर पार्टी नेताओं के बीच गहरा मंथन हुआ और नतीजा ये पाया गया कि विवाद से पार्टी को लाभ कम नुकसान ज्यादा हो रहा है। सूत्रों के अनुसार, सोशल मीडिया पर विवाद से संबंधित रोज ब रोज आने वाले वीडियो और समाज में उन्हें देखकर बनती राय ने पार्टी को पसोपेश में डाल दिया।
सूत्रों के अनुसार, एक कैबिनेट मंत्री ने तो खुलेआम कह दिया कि देश में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान चलाने वाली पार्टी के लिए ऐसी घटनाओं पर जवाब देना भारी पड़ जाएगा। कर्नाटक के फायरब्रांड बीजेपी नेता तेजस्वी सूर्या ने भी इस मामले में चुम्पी साध ली। मध्यप्रदेश के शिक्षा मंत्री इंदर सिंह ने यूनीफ़ॉर्म ड्रेस कोड को लेकर बयान जारी किया उधर, मुख्यमंत्री ने कैबिनेट की बैठक में उनकी क्लास ले ली। अपने अनाप-शनाप बयानों के लिए जाने वाले राज्य के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा भी खामोश ही रहे।
सवाल ये कि डैमेज कंट्रोल कैसे हो
सूत्रों के अनुसार भारतीय जनता पार्टी ने इस पूरे मामले को ठंडा करने के लिए दो तरफा रणनीति अपनाई। पहली, पार्टी ने खुद को इस विवाद से अलग करने की कोशिश की। पार्टी के शीर्ष नेताओं से लेकर चर्चित नेताओं तक को संदेश दिया गया कि मामले को अदालती बताकर उस पर टिप्पणी से बचा जाए और इस मामले में किसी भी विवादित बयान से परहेज किया जाए। पार्टी मान रही थी कि इस विवाद से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी देश की छवि खराब हो रही है और विशेषकर पाकिस्तान इस मामले को लेकर भारत की खूब छीछलेदारी करने में जुटा है। ऐसे में इस मामले को ठंडा करने में ही भलाई समझी गई।
इस फजीहत के बाद पार्टी ने कर्नाटक सरकार को इसके लिए जिम्मेदारी का ठीकरा फोड़ डाला। ये पार्टी की रणनीति दूसरा कदम हिस्सा था। सूत्रों के अनुसार, पार्टी के कई नेता कर्नाटक सरकार और विशेषकर मुख्यमंत्री बोम्मई के ढीलेढाले रुख से खासे नाराज थे और इस पूरे विवाद में मेस फैलाने के लिए उन्हें ही दोषी मानते थे। इसीलिए बैठक के तुरंत बाद मुख्यमंत्री बोम्मई से कहा गया कि वे अदालत में सरकार का जवाब रखते समय मामले को ठंडा करने की कोशिश करें।
अदालत में कर्नाटक सरकार का गोलमोल जवाब
कर्नाटक हाईकोर्ट में तीन सदस्यीय फुल बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। इस बेंच के सामने कर्नाटक सरकार की तरफ से जो जवाब सौंपा गया उसमें साफ कहा गया कि राज्य सरकार की नीयत कभी भी हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की नहीं रही और न कभी इस दिशा में सोचा गया। जवाब में कहा गया कि सरकारी आदेश को और ज्यादा स्पष्ट होना चाहिए था और उसे और बेहतर तरीके से लिखे जाने की जरूरत है।
हिजाब का राजनीतिक कनेक्शन
राजनीति विज्ञानी राधारमण का कहना है कि, देश में इस समय कई राज्यों मे विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इस विवाद को तूल देकर चुनावों मे पोलराइजेशन कराने की मंशा जरूर थी लेकिन नतीजे कट्टरपंथियो की सोच के उलट निकले। मामला ठंडा करने में ही भलाई लगी। वे कहते हैं कि, कर्नाटक में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। ध्रवीकरण की राजनीति का पहला अध्याय लिख दिया गया है। जवाब जनता को देना है। देश की जनता ने तो जवाब दे दिया। कर्नाटक की जनता को भी ऐसी उलटी चालों से सावधान रहना होगा।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया