लखनऊ (गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र ) : 1984 बैच के आईएएस अफसर दुर्गा शंकर मिश्र को उत्तर प्रदेश का मुख्य सचिव बनाया गया है। वे आर के तिवारी की जगह लेंगे। दुर्गा शंकर मिश्र की नियुक्ति उनके रिटायरमेंट से तीन दिनों पहले एक साल के सेवा विस्तार के साथ की गई। मिश्र इस नई नियुक्ति से पहले केंद्र सरकार में शहरी विकास मंत्रालय में सचिव के पद पर नियुक्त थे।
दुर्गा शंकर मिश्र की नियुक्ति जिस तरह से अचानक रातों -रात की गई उससे कई तरह के सवाल चर्चा में आ गए। मसलन, अचानक सेवानिवृत्ति से 3 दिन पहले मुख्य सचिव की कुर्सा पर उन्हें क्यों बैठाया गया। दूसरा, मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के चहेते अफसर अवनीश अवस्थी को ये जिम्मेदारी क्यों नहीं दी गई। तीसरा, दुर्गाशंकर मिश्र अगर उत्तर प्रदेश के लिए इतने ही जरूरी थे तो पहले उन्हें क्यों नहीं उत्तर प्रदेश भेजा गया। सवाल ये भी है कि कहीं इस नियुक्ति का कोई राजनीतिक मकसद तो नहीं।
दुर्गाशंकर मिश्र उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित मऊ जिले के मूल निवासी हैं। 1984 में वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बने। काम में तेज तर्रार हैं और दिल्ली में शहरी विकास मंत्रालय में सचिव का काम करते हुए वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर में आए। सेंट्रल विस्टा जैसे प्रोजेक्ट भी उन्हीं की निगरानी में चल रहे थे। उत्तर प्रदेश के निवर्तमान चीफ सेक्रेटरी आर. के. तिवारी योगी आदित्य नाथ के भरोसे के अफसर तो थे लेकिन आमतौर पर वे प्रो एक्टिव अधिकारी के रूप में नहीं जाने जाते थे।
दुर्गा शंकर मिश्र की नियुक्ति पर क्यों उठे सवाल
दुर्गा शंकर मिश्र तो उत्तर प्रदेश में मुख्य सचिव की कुर्सी पर तैनात होकर आए हैं। उनसे पहले अरविंद कुमार शर्मा जो गुजरात कैडर में आईएएस अधिकारी थे उन्हें भी उत्तर प्रदेश किसी खास मकसद से लाया गया था। बाकायदा, समय से पहले सेवा निवृति दिला कर लाए गए इस अधिकारी की यूपी में एंट्री को बहुत हई प्रोफाइल बताया गया। उप मुख्य़मंत्री तक बनाने की चर्चा हुई। लेकिन उनका हुआ क्या ये सभी को पता है।
दुर्गा शंकर मिश्र, मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की पसंद होते तो वे बहुत पहले ही यूपी के मुख्य सचिव बन जाते। मुख्यमंत्री के पसंदीदा अफसर तो अवनीश अवस्थी रहे हैं। मुख्यमंत्री तो आर.के. तिवारी की जगह अवनीश अवस्थी को ही रखना पसंद करते लेकिन ऐसा हुआ नहीं। अब सवाल ये है कि, दुर्गाशंकर मिश्र फिर किसकी पसंद हैं ? जाहिर है कि उनकी नियुक्ति के पीछे केंद्र सरकार यानी सीधे तौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय है। अब इस नियुक्ति के लिए किस हद तक मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को भरोसे में लिया गया ये एक दीगर प्रश्न है।
दूसरी दलील दी जा रही है कि, मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की सरकार से राज्य में ब्राह्मण खासे नाराज हैं। नाराजगी इस हद तक है कि राज्य की नौकरशाही में भी दबे-छिपे खासा असंतोष है। ब्राह्मण आईएएस अफसरों की लॉबी भी खामोश भले हो लेकिन असंतोष उनमें भी है। ऐसा माना जा रहा है कि, दुर्गा शंकर मिश्र की तैनाती से पूर्वांचल के ब्राह्मणों के अलावा, आईएएस लॉबी में व्याप्त नाराजगी को भी काफी हद तक दूर करने में सफलता मिल सकती है।
तीसरा सवाल जो चर्चा में है वो ये है कि दुर्गाशंकर मिश्र को लाने के पीछे केंद्र की मंशा राज्य की प्रशासनिक मशीनरी को इस तरह से गेयर अप करने की है जिससे कि उसे चुनावों से पहले ही राज्य में एक प्रोएक्टिव नौकरशाही दिखाई दे और अगर कहीं चुनाव टालने की नौबत आई तो राष्ट्रपति शासन में तेजतर्रार प्रशासनिक मशीनरी हरकत में दिखे।
क्या नियुक्ति में हुई नियमों की अनदेखी
नियमों की बात करें तो शीर्ष पदों पर नियुक्ति के बारे में सुप्रीम कोर्ट की भी एक गाइडलाइन है जिसके अनुसार तमाम शीर्ष पदों पर उन्हीं अफसरों की नियुक्ति होनी चाहिए जिनकी कम से कम 6 महीने की सेवा बाकी हो लेकिन केंद्र सरकार ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना की नियुक्ति ही इन नियमों को दरकिनार करके की। उन्हें सेवा विस्तार के साथ दिल्ली का पुलिस कमिश्नर बना दिया गया। इसी तरह से दुर्गा शंकर मिश्र को भी एक साल का सेवा विस्तार देते हुए उत्तर प्रदेश का मुख्य सचिव बना दिया गया। राकेश अस्थाना का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।
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