नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) ने हाल में ही सभी राज्यों को आगाह किया है कि देश के विभिन्न शहरों से फलों और सब्जियों में कीटनाशकों और खतरनाक केमिकल्स की मौजूदगी भी खबरें मिल रही हैं। उसका कहना है कि राज्यों को इस पर नजर रखने के साथ ही जरूरी कार्रवाई करनी चाहिए और किसानों को कीटनाशकों के संतुलित इस्तेमाल के बारे में जागरूक करना चाहिए। इस निर्देश के बाद पिछले दिनों नोएडा की फेज-2 मंडी में खाद्य सुरक्षा विभाग ने छापा मारा और वहां से रंग मिली एक सौ किलो मटर बरामद की। इसके साथ ही उसने गोभी, भिंडी समेत कई सब्जियों के सैंपल लिए और उन्हें जांच के लिए लैब में भेजा। एफएसएसएआई ने सभी राज्यों से इस मामले में सतर्कता बरतने को कहा है, लेकिन लापरवाही का आलम बरकरार है।
गौरतलब है कि सब्जियों और फलों से साथ ही तमाम तरह के खाद्य पदार्थों में मिलावट और कीटनाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल की खबरें साल भर आती रहती हैं, लेकिन इसे रोकने के लिए कोई भी राज्य सरकार ठोस कदम नहीं उठाती। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट, दिल्ली में यमुना के किनारे उगाई जाने वाली सब्जियों में लेड, पारा, आर्सेनिक जैसे खतरनाक तत्वों की मौजूदगी के बारे में कई बार आगाह कर चुका है, लेकिन यहां अब भी सब्जियां उगाई जा रही हैं और दिल्ली के लोग उन्हें खा भी रहे हैं।
जानकारी का अभाव
पूरी दुनिया में अनाज, फलों और सब्जियों को कीड़ों से सुरक्षित रखने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग होता है, लेकिन एक तय सीमा के अंदर। भारत में भी इसके मानक तय हैं, लेकिन किसी भी राज्य में शायद ही इनका पालन किया जाता होगा। यही वजह है कि कभी विदेश में भारत की बासमती तो कभी किसी और कृषि उत्पाद में कीटनाशकों की ज्यादा मात्रा पाई जाती है और उनके आयात पर रोक लग जाती है। इससे देश को आर्थिक नुकसान तो होता ही है, देश की साख भी खराब होती है। कीटनाशकों के ज्यादा इस्तेमाल का पता विदेशों में खाद्य सुरक्षा के कड़े मानकों और टेस्ट के कारण चलता है।
अपने देश में हालात इसके ठीक विपरीत हैं। देश के ज्यादातर राज्यों में किसानों को यह पता ही नहीं है कि उन्हें किस फसल में कितनी मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग करना है। सब्जियों और अनाज के साथ ही फलों में भी भारी मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है। ये कीटनाशक हमारी फूड चेन का हिस्सा बन रहे हैं। भारत में अब भी ऐसे कई कीटनाशकों का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है, जिन्हें छोटे से छोटे देश तक बैन कर चुके हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कई कीटनाशक देश में कैंसर के बढ़ते मामलों की वजह हैं। कैंसर के केस ऐसे लोगों में भी देखने में आ रहे हैं किसी तरह का नशा नहीं करते या ऐसे पदार्थों का सेवन नहीं करते जो कैंसर पैदा कर सकते हैं। कई विशेषज्ञ डायबिटीज और दिल के रोगों के बढ़ने का एक कारण शरीर में जा रहे कीटनाशकों को मानते हैं।
कागजी खाद्य सुरक्षा
जहां तक खाद्य सुरक्षा का सवाल है, भारत दुनिया के उन देशों में एक है, जहां इस मामले में भारी लापरवाही बरती जाती है और सारी फूड सेफ्टी महज कागजों में नजर आती है। देश की किसी भी सरकार को नागरिकों की हेल्थ से कोई लेना-देना नहीं है। ऐसा शायद ही दुनिया के किसी सभ्य देश में होता हो। देश में खाद्य पदार्थों में मिलावट या उनमें जहरीले तत्वों की मौजूदगी रोकने के लिए तमाम तरह के नियम हैं, लेकिन कड़े कानून नहीं हैं। यहां पैसे के लालच में लोग दवाओं तक में मिलावट कर देते हैं और पकड़े जाने पर आसानी से छूट जाते हैं। माशेलकर कमिटी ने कई साल पहले दवाओं में मिलावट करने या नकली दवाएं बेचने पर मृत्युदंड की सिफारिश की थी, उनकी सिफारिशें, तब से देश में कई सरकारें बदल जाने के बावजूद अब तक धूल खा रही हैं।
फलों, सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों में मिलावट या जहरीले तत्वों की मौजूदगी को रोकने के लिए देश में कोई भी सरकार संजीदा नहीं है। यूपी के वरिष्ठ खाद्य सुरक्षा अधिकारी बताते हैं कि राज्य में खाद्य पदार्थों के सैंपल लेने के लिए न तो पर्याप्त स्टाफ है और न सैंपल की जांच के लिए पर्याप्त लैब्स। जो स्टाफ होता भी है, उसे कभी वीआईपी ड्यूटी में लगा दिया जाता है तो कभी किसी और काम में। कई राज्यों में स्टाफ की इस काम में कोई रुचि ही नहीं होती। करप्शन इसकी सबसे बड़ी वजह है।
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