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आयुष में भी हजारों FDC, सरकार के मुंह पर ताला क्यों ?

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : सरकार ने हाल में ही एलोपैथी की 156 फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन (FDC) दवाओं पर बैन लगाया है, लेकिन आयुष सिस्टम की FDC पर वह खामोश है। वह भी तब, जब हेल्थ एक्टिविस्ट्स इस मसले पर भी सरकार से ठोस ऐक्शन की मांग लंबे अर्से से कर रहे हैं। आयुष सिस्टम में भी एक से ज्यादा दवाओं को मिलाकर नई दवा बनाई जाती है, मगर इनके रेगुलेशन के लिए ठोस इंतजाम नहीं हैं। इसके साथ ही बड़ी तादाद में होम्योपैथी की करोड़ों रुपये मूल्य की FDC दवाओं का देश में आयात किया जाता है, मगर इनकी जांच या क्लिनिकल ट्रायल का भी कोई इंतजाम अपने देश में नहीं है।

दौड़ में तमाम कंपनियां

हाल के सालों में होम्योपैथी की एक से ज्यादा दवाओं को मिलाकर नई दवा बनाने का धंधा जोरों से चल पड़ा है। कई देसी-विदेशी कंपनियां इस दौड़ में उतर गई हैं। कई बार तो इन कॉम्बिनेशन में ऐसी दवाएं तक मिला दी जाती हैं, जो लक्षणों में एक दूसरे के विपरीत होती हैं और एक साथ नहीं दी जानी चाहिए। क्लासिक होम्योपैथी दवाओं को एक साथ मिलाने के खिलाफ है। इस तरह की दवाओं का कोई क्लिनिकल ट्रायल भी नहीं होता और देश में इनका जमकर आयात हो रहा है।

राज्यों की मनमानी

सूत्रों का कहना है कि इन कॉम्बिनेशंस पर इसलिए रोक नहीं लग पाती, क्योंकि आयुष की दवाओं को बनाने का लाइसेंस राज्य देते हैं और देश के तकरीबन हर राज्य में दवाओं के रेगुलेशन की हालत खस्ता है। क्लिनिकल ट्रायल तो खैर दूर की ही बात है। ज्यादातर राज्यों में आयुष सिस्टम की दवाओं की जांच के लिए न तो पुख्ता सिस्टम है और न ही पर्याप्त स्टाफ। कुल मिलाकर सब रामभरोसे चल रहा है और जनता की जेब कट रही है।

क्लिनिकल ट्रायल से पल्ला झाड़ा

जहां तक आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी दवाओं का सवाल है, यहां भी कई पदार्थों और दवाओं को मिलाकर औषधियां बनाई जाती हैं। सरकार ने सालों से बन रही आयुर्वेद की दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल से पल्ला झाड़ लिया है। उसका कहना है कि जो दवाएं सैकड़ों सालों से बन रही हैं और जिनके साइड इफेक्ट्स सामने नहीं आए हैं, उनके क्लिनिकल ट्रायल की जरूरत नहीं है। इस मसले पर भारत सरकार के आयुर्वेद के पूर्व सलाहकार डॉ. एस. के. शर्मा का कहना है कि जिन दवाओं में विषाक्त तत्वों का प्रयोग किया जाता है, उनका क्लिनिकल ट्रायल जरूरी होता है।

विदेशों में लगा था बैन

देश में यह काम भी कितनी कुशलता से हो रहा है, इसका सबूत कुछ साल पहले आयुर्वेद की दवाओं पर अमेरिका और यूरोप के देशों में बैन लगा है। इन देशों का आरोप था कि भारत से आने वाली कई नामी कंपनियों की दवाओं में हैवी मेटल्स और विषाक्त तत्व मिले हैं। इस बैन से भारत की काफी किरकिरी हुई थी और देसी दवाओं का निर्यात रुक गया था। सूत्रों का कहना है कि सरकार आयुष सिस्टम की दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल और इनकी क्वॉलिटी को बेहतर बनाने के काम को गंभीरता से नहीं ले रही है। इसके कारण इस सेक्टर में मनमानी जारी है और दवा कंपनियां हर साल करोड़ों रुपये कमा रही हैं।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया 

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