नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क ) : क्या भारतीय़ अर्थव्यवस्था एक स्लोडाउन की तरफ बढ़ रही है ? भारत सरकार के सांख्यिकी और योजना क्रियान्वन मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़े कुछ ऐसा ही इशारा करते हैं। पिछले साल अक्टूबर-दिसंबर की 5.3 फीसदी की विकास दर, जनवरी-मार्च 2022 में 4.1 फीसदी आंकी गई है। विकास दर में इस सुस्ती के लिए पेट्रोलियम उत्पादों की बढ़ी हुई दर और उपभोक्ता स्तर पर लगातार चार महीनों से छह प्रतिशत से ज़्यादा की मुद्रास्फ़ीति को ज़िम्मेदार माना जा रहा है।
माना जा रहा है कि, यूक्रेन और रुस के बीच युद्ध की वजह से सप्लाई चेन पर असर पड़ा है और इससे खाद्यान् और अन्य ज़रूरत के सामान की क़ीमत बढ़ी है। इससे लोगों के ख़र्च करने की क्षमता प्रभावित हुई है। ये भी बताया जा रहा है कि, ओमिक्रॉन कोरोना संक्रमण की पाबंदियां और बढ़ती महंगाई की वजह से भी जनवरी से मार्च, 2022 के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी रही।
जीडीपी विकास दर का अनुमान भी सरकार की उम्मीदों से कम आंका जा रहा है। सरकार ने पहले 8.9 फीसदी विकास दर का अनुमान लगाया था लेकिन अब इसे साल 2022 के वित्तीय वर्ष के लिए 8.7 पर सीमित किया जा रहा है। ये सरकार के पहले के अनुमान 8.9 फीसदी के अनुमान से कम है।
रिजर्व बैंक सतर्क
भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अर्थव्यवस्था के हाल को लेकर गंभीर प्रयास शुरू कर दिए हैं। महीनों तक विकास केंद्रित मौद्रिक नीति पर ध्यान केंद्रित करने के बाद, रिजर्व बैंक ने मौजूदा नीतियों से हटते हुए ब्याज़ दरों को बढ़ाने का फ़ैसला लिया है ताकि बढ़ती महंगाई पर अंकुश लगाया जा सके। आने वाली तिमाहियों में ब्याज दरों में ऐसी और बढ़ोतरी की उम्मीद है।
अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. अनादि नारायण के अनुसार, भारत की विकास दर को गति देना है तो यहां निवेश को बढ़ाना होगा। उन्होंने कहा भारत के लिए 8 प्रतिशत की विकास दर हासिल करना कोई मुळ्किल काम नहीं है। जहां तक निवेश को बढ़ाने का सवाल है देश में बहुत सारी योजनाएं हैं। देखा गया है कि सरकार ने इंन्फ्रास्ट्रक्चर और रेलवे जैसे जिन क्षेत्रों में पैसा लगाया है वहां से उसे अपेक्षित नतीजे नहीं मिले हैं। इसके कारणों की पड़ताल करनी जरूरी है और नए निवेश में उन कारणों का ध्यान रखना भी जरूरी है।
उन्होंने कहा कि, रूस-यूक्रेन युद्ध के हालात को देखते हुए अनुमान लगाया जा सकता है कि इसके कारण अगले साल भी देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है। प्रोफेसर नारायण ने कहा कि, भारतीय अर्थव्यवस्था उपभोक्ता आधारित है। बढ़ती महंगाई ने उपभोक्ता की कमर तोड़ रखी है। उपभोक्ता की जेब में कैसे पैसा आएं और वो पैसा कैसे सर्कुलेशन में आए तभी बात बनेगी। उन्होंने कहा कि, पिछले सालों से महामारी ने उपभोक्ता के विश्वास को हिला कर कर रखा हुआ है, उसे अभी भी हालात को लेकर बहुत भरोसा नहीं है। इसीलिए बाजार को लेकर उससका सेंटीमेंट बहुत सकारात्मक नहीं है।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, मॉर्गन स्टेनली ने भी विश्व स्तर पर मंदी, कमॉडिटी की ऊंची क़ीमतें और पूंजी बाज़ार में जोख़िम से बचने जैसे नकारात्मक जोख़िमों का हवाला देते हुए अपने विकास पूर्वानुमान को 7.9 फीसदी से घटाकर 7.6 फीसदी कर दिया है। जबकि, केयर रेटिंग्स के अनुमान के अनुसार, वैश्विक तौर पर प्रतिकूल और अनिश्चितता की स्थिति भारत में निजी निवेश चक्र को भी प्रभावित करेंगी और भारतीय निर्यात क्षेत्र को आशंकित वैश्विक मंदी की गर्मी महसूस होगी। देखने का बात ये है कि भारत इन हालात को देखते हुए अपनी अर्थव्यवस्था को कितना तैयार कर पाता है।
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