नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए शोध डेस्क) : भारत से निवेश तेजी के साथ विदेश की तरफ रुख कर चुका है अभी तक यही खबर थी लेकिन अब भारत से अमीर और सुविधा संपन्न वर्ग के लोग भी विदेश में जा बसने की तेजी से कोशिश कर रहे हैं। हेनली ग्लोबल सिटिजंस रिपोर्ट से जो आंकड़े मिल रहे हैं उससे तो यही संकेत मिलता है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया के उन 10 शीर्ष देशों में शमिल है जहां 2022 में धनवान लोग सबसे ज्यादा विदेश में बसने की तैयारी कर रहे हैं।
रिपोर्ट में दिलचस्प तथ्य ये हैं कि जिन देशों के अमीर लोग सबसे ज्यादा बसने की चाह रखते हैं उसमें रूस, चीन, हांगकांग, भारत, येक्रेन, ब्राजील, ब्रिटेन, मेक्सिको, सऊदी अरब और इंडोनेशिया शामिल हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, जिन देशों में ये धनी लोग बसना चाहते हैं उनमें अब ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी जैसे देश शामिल ही नहीं है बल्कि इनमें यूएई, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, इस्राइल, स्विटज़रलैंड, अमेरिका पुर्तगाल, ग्रीस, कनाडा और न्यूजीलैंड जैसे देश शामिल हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, तीन देश ऐसे हैं जिनमें अमीरों ने विशेष दिलचस्पी दिखाई है। ये हैं माल्टा, मॉरिशस और मोनैको। रिपोर्ट बताती है कि अब अमीरों की पंसदीदा रिहाइश के मामले में अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश बहुत पीछे रह गए हैं। रिपोर्ट तो ये भी बताती है कि इन देशों का धनी वर्ग खुद दूसरे देशों में बसना चाहता है। रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में करीब 1500 ब्रिटिश अमीर दूसरे देशों में बसने जा रहे हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अमीरों का सर्वाधिक पलायन चीन से हो रहा है। इस साल चीन से 10000 से ज्यादा लोग दुनिया के दूसरे देशों में बसने की तैयारी में हैं। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि चीन के दुनिया के दूसरे देशों से खराब होते रिश्ते और देश में धनोपार्जन में आ रही दिक्कतों के कारण ज्यादातर लोग ऐसा कर रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत के जितने अमीर देश छोड़ेंगे उससे ज्यादा वहां अमीरों की सूची में लोग जुड़ जाएंगे। रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि भारत में 2031 तक अमीरी की वृद्धि दर 80 प्रतिशत के आसपास रहेगी।
रिपोर्ट ये जानकारी भी देती है कि, मॉरिशस, माल्टा और मोनैको जैसे देशों में अमीरों के बसने की चाह की खास वजह उन देशों में बेहद उदार कर प्रणाली का होना है। इन देशों में फ्री पोर्ट और हवाला कारोबार भी जम कर होता है। आपको बता दें कि भारत से सुविधा संपन्न और अमीर वर्ग का इतने बड़े पैमाने पर दूसरे देशों में बसना पहले कभी नहीं हुआ था।
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