नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) : एनडीए सरकार का दूसरा कार्यकाल भी पूरा होने के करीब है, लेकिन इन करीब 10 सालों में उसे आयुष क्षेत्र के लिए एक अदद ड्रग कंट्रोलर जनरल (डीसीजीआई) नियुक्त करने की फुर्सत नहीं मिली। वह भी तब, जब आयुष का ढोल पीटने में बीजेपी के नेता और मंत्री पीछे नहीं रहते।
एनडीए सरकार ने अपने पहले ही कार्यकाल में आयुष मंत्रालय की स्थापना कर दी थी और तभी इस सेक्टर के लिए अलग ड्रग कंट्रोलर जनरल नियुक्त करने की बात भी कही थी, लेकिन इस पर अमल नहीं किया।
इसकी वजह से आयुष सिस्टम की दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल्स और इन पर निगरानी रखने का काम ठोस तरीके से नहीं हो पा रहा है। इससे इन दवाओं की क्वॉलिटी पर भी लगातार सवाल उठ रहे हैं। सरकार ने आयुष के डीसीजीआई के पद के सृजन के लिए सिद्धांत रूप से मंजूरी दे दी थी और वित्त मंत्रालय ने भी इसे हरी झंडी दिखा दी थी। बावजूद इसके, लंबा अर्सा गुजरने के बाद भी इस पद पर कोई नियुक्ति नहीं हो पाई है।
इस मुद्दे पर सवाल उठने पर सरकार ने 2018 में भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल के कार्यालय में 12 अधिकारियों की नियुक्ति की, ताकि आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध और सोवा रिग्पा पद्धतियों की दवाओं को मंजूरी देने के साथ ही उनकी क्वॉलिटी पर नजर रखी जा सके। सूत्रों का कहना है कि पूरे देश में इस सेक्टर पर नजर रखने के लिए यह संख्या पर्याप्त नहीं है। इसके लिए आयुष सिस्टम का अलग डीसीजीआई और उसका स्टाफ होना चाहिए। जब आयुष के लिए अलग डीसीजीआई नियुक्त करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी, तब उसके स्टाफ के सदस्यों की संख्या 150 तय की गई थी।
अभी देश में बन, बिक और आयात हो रही आयुष की दवाओं पर नजर रखने और उन्हें मंजूरी देने के लिए केंद्रीय स्तर पर कोई खास इंतजाम नहीं हैं। राज्य अपने स्तर पर यह काम करते हैं और दवा बनाने के लिए लाइसेंस देते हैं। सूत्र बताते हैं कि कई राज्य इस काम को संजीदगी से नहीं कर रहे हैं। इसके कारण बाजार में घटिया क्वॉलिटी की आयुष की दवाएं आने के आरोप लगते रहे हैं। विदेश में कई भारतीय कंपनियों की आयुर्वेदिक दवाओं में हेवी मेटल्स और विषाक्त तत्व पाए जाने के कारण उन पर बैन लग चुका है। इसका असर भारत के आयुष सेक्टर की साख पर पड़ रहा है और उसकी दवाओं को दुनिया के दूसरे देशों में अब भी शक भी नजर से देखा जा रहा है।
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