नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए आशीष मिश्र): उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने के बाद न्यायपालिका और राज्य सरकार के बीच लगातार टकराव की स्थिति देखने में आ रही है। राज्य में सर्वोच्च न्यायिक संस्था इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोरोना संक्रमण के हालात और उससे निपटने की सरकार की रणनीति पर कई बार सवाल उठाए, सलाह भी दी और सरकार को हालात सुधारने की हिदायत भी दी। लेकिन हर बार उत्तर प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और वहां से या तो फैसले पर रोक लगवा ली या फिर उसकी व्याख्या कुछ अलग तरह से करके लीपापोती करने की कोशिश की। इस पूरे प्रकरण में एक बात तो एकदम साफ रही कि उत्तर प्रदेश सरकार का हाईकोर्ट के हर फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना कहीं ना कहीं इस बात को प्रकट करता है कि राज्य में कार्यपालिका मतलब सरकार और न्यायपालिका के बीच राज्य के हालात को लेकर नजरिए में बहुत बड़ा फर्क है।
कोरोना संक्रमण के मामले, गंगा में बहती लाशे पंचायत चुनावों में कोरोना से हुई मौतें, मृतकों को मुआवजा ऐसे तमाम मसले रहे हैं जिन्हें लेकर हाईकोर्ट, सरकार के तौर तरीकों से बेहद नाराज है। अदालत में सरकार को कई बार बुरी तरह से फटकार भी पड़ी है। लेकिन हर बार वही हालात पैदा होते हैं। हाईकोर्ट नाराज होता है, कोई फैसला सुनाता है और राज्य सरकार उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से राहत ले आती है। ऐसा क्यों है ?
हाई कोर्ट के फैसले और राज्य सरकार की प्रतिक्रिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले दिनों कोरोना संक्रमण पर राज्य के हालात को लेकर सख्त और तीखी टिप्पणी की।
राज्य में चिकित्सा सुविधाओं की कमी और राज्य सरकार की तैयारियों पर सबसे पहले नाराजगी जताते हुए हाईकोर्ट ने व्यवस्था सुधारने के साथ सरकार को लॉकडाउन लगाने पर विचार करने को कहा था। सरकार की तरफ से जो दलील दी गई वो य़े थी कि हमसे जो बन पड़ रहा है हम कर रहे हैं और अदालत को ऐसे हालात में सरकार पर भरोसा करना चाहिए। ये सरकार का काम है कि वो हालात को देखते हुए कदम उठाए।
हालात और बिगड़े तो हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया और राज्य के कई जिलों में लॉकडाउन लगाने का निर्देश दे दिया। राज्य सरकार तुरंत सुप्रीम कोर्ट पहुंची। हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगी। सरकार ने कहा हमारे सामने लोगों का जीवन और जीविका दोनों चुनौतियां हैं। हम लॉकडाउन नहीं लगा सकते। लेकिन हुआ क्या उसी के कुछ दिनों बाद सरकार ने कोरोना कर्फ्यू के नाम से लॉकडाउन लगाया जो अभी भी जारी है। सुप्रीम कोर्ट में जब ये मामला सुना जा रहा था तो सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में यही कहा था कि हाईकोर्ट के ऑबजरवेशन पर राज्य सरकार ध्यान दे और ऐसे हालात से बचे कि हाईकोर्ट को ऐसे कदम उठाने पड़ें। ये बहुत बड़ी बात थी जिसकी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने इशारा किय़ा था लेकिन राज्य सरकार को राहत मिली और फिर वही पुराना ढर्रा।
ताजा मामला
अब देखिए नया मामला। हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के कस्बों और गांवों में कोरोना संक्रमण के हालात को लेकर टिप्पणी कर दी कि यहां चिकित्सा का ढांचा राम भरोसे है। राज्य सरकार हाईकोर्ट के इस आदेश पर रोक लगवाने सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विनीत सरन और बीआर गवई की अवकाश पीठ ने इस आदेश पर रोक लगा दी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा ?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार को दिए गए निर्देश को दिशा-निर्देश के तौर पर नही बल्कि सलाह के तौर पर लेना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हाईकोर्ट को भी ऐसे आदेश जारी करने से बचना चाहिए जिसे लागू करना मुश्किल हो।
एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने बीते 17 मई को दिए अपने आदेश में कहा था कि 20 से अधिक बिस्तर वाले प्रत्येक नर्सिंग होम और अस्पताल के पास कम से कम 40 प्रतिशत बेड आईसीयू के तौर पर होने चाहिए और 30 से अधिक बेड वाले नर्सिंग होम को ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्र लगाने की अनिवार्यता की जानी चाहिए।
इसके साथ ही न्यायालय ने ये भी कहा था कि राज्य के सभी बी और सी ग्रेड के टाउन को कम से कम 20 एंबुलेंस और गांवों को दो एंबुलेंस दिया जाना चाहिए। लाइव लॉ के अनुसार, यूपी सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हाईकोर्ट के इस आदेश को लागू करना काफी मुश्किल है क्योंकि उत्तर प्रदेश में करीब 97,000 गांव हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कई बार ऐसा होता है कि आम लोगों की तकलीफों को देखते हुए उन्हें तत्काल राहत देने के चक्कर में अदालतें ऐसे आदेश पारित करती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार इसे सलाह के रूप में ले और इसे लागू करने के लिए हरसंभव कदम उठाएं।
स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी
कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि कई बार हालात को देखते हुए संबंधित हाईकोर्ट कई तरह के ऑबजरवेशन देते हैं और आमतौर पर राज्य सरकारें उनको महत्व भी देती है और उस दिशा में काम भी करती है। लेकिन, उत्तर प्रदेश में जिस तरह से हाईकोर्ट के हर आदेश के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंचती है उससे राज्य में इस सर्वोच्च न्यायिक इकाई की सलाह को खारिज करने की कोशिश ज्यादा नजर आती है। कानूनविद मानते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट में जो हिदायत और नसीहत मिलती है उससे कहीं भी ये जाहिर नहीं होता कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को दरकिनार कर दिया। बार- बार सुप्रीम कोर्ट ये कहता रहा है कि हाई कोर्ट के ऑबजरवेशन पर ध्यान दीजिए और उस दिशा में काम कीजिए। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार को ये बात क्यों समझ में नहीं आती या वो जानबूझ कर उसे समझना नहीं चाहती, ये बात समझ से परे हैं।
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