पीएम केयर्स पर विवाद, आखिर विवाद की वजहें हैं क्या ?
नई दिल्ली ( गणतंत्र भारत के लिए न्यूज़ डेस्क) : पीएम केयर्स फंड को लेकऱ विवाद अभी थमा नहीं है। सरकार लगातार ये बात दोहरा रही है कि ये एक निजी प्रकृति के निधि है लेकिन इस फंड में योगदान के तौरतरीकों और उसकी औपचारिकताओं को देखते हुए उस पर सवाल उठे हैं और उठाए जा रहे हैं। दिल्ली हाईकोर्ट में इस फंड को लेकर याचिका दायर है। सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर्ड जज न्य़ायमूर्ति मदन बी लोकुर ने भी एक मंच पर कहा है कि पीएम केयर्स फंड के पैसे कहां और कैसे इस्तेमाल हो रहे हैं इस जानकारी का सार्वजनिक पटल पर मौजूद न होना चिंताजनक है।
याचिकाकर्ता की क्या थी दलीलें
दिल्ली हाईकोर्ट में जब बहस हुई तो याचिकाकर्ता सम्यक गंगवाल की ओर से अधिवक्ता श्याम दीवान ने दलील देते हुए कहा कि, मुद्दे की बात ये है कि यदि कोई व्यक्ति उच्च सरकारी पदाधिकारी है, तो क्या वो ऐसा ढांचा बना सकता है जो संविधान के दायरे से बाहर का हो। इस ट्रस्ट में उच्च स्तर के पदाधिकारियों का शामिल होना, राजकीय चिन्ह का उपयोग, आधिकारिक डोमेन नेम जैसे gov.in का इस्तेमाल, इस बात की ओर इशारा करते हैं कि पीएम केयर्स फंड भारत सरकार की ही संस्था है।
कोरोना जैसी महामारी के दौरान सार्वजनिक उद्देश्य के लिए प्रधानमंत्री द्वारा घोषित ट्रस्ट के नाम में ‘प्रधानमंत्री’ शब्द के इस्तेमाल को रेखांकित करते हुए कहा गया कि कोई भी आम आदमी यही मानेगा कि इसे सरकार ने स्थापित किया है।
उन्होंने कहा कि पीएम केयर्स में न्यासियों (ट्रस्टी) के रूप में सरकारी पदाधिकारी हैं और प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष हैं और यहां तक कि इसका संचालन भी साउथ ब्लॉक स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय से हो रहा है। याचिकार्ता के वकील ने कहा कि, हम इसकी गतिविधियों पर सवाल नहीं उठा रहे हैं लेकिन इसे संविधान के दायरे में रखने में क्या परेशानी है ? पीएम केयर्स में निजी क्या है ? क्या कोई कह सकता है कि ये सरकारी नहीं है?
याचिका में कहा गया कि प्रधानमंत्री ने मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी को देखते हुए लोगों की मदद के लिए पीएम केयर्स फंड का गठन किया गया था। इसे खूब दान मिला। दिसंबर 2020 में पीएम केयर्स की वेबसाइट पर जारी ट्रस्ट डीड में कहा गया कि इस फंड को संविधान या संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के तहत नहीं बनाया गया है। याचिका में मांग की गई कि इस फंड या ट्रस्ट को भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत ‘सरकारी’ घोषित किया जाए।
सरकार की दलीलें क्या हैं
पीएम केयर्स फंड पर सरकार की अपनी दलीले है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस मामले में अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि पीएम केयर्स एक चैरिटेबल ट्रस्ट है और सरकार इसे फंड नहीं देती है और न ही इसे नियंत्रित करती है। इसका पैसा भारत सरकार के खजाने में नहीं जाता है और चूंकि ये ट्रस्ट सरकारी नहीं है, इसलिए ये सूचना का अधिकार (आरटीआई) एक्ट के दायरे से भी बाहर है।
वस्तुस्थिति क्या है
सरकार भले ये दावा करे कि पीएम केयर्स सरकारी फंड नहीं हैं लेकिन इसमें जिस तरह से काम हो रहा है उस पर विवाद उठना स्वाभाविक है।
सबसे पहला तो यही कि सरकार के शीर्ष पदों पर आसीन लोग जिनमें प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, वित्त मंत्री जैसे लोग शामिल हैं वे इस फंड के ट्रस्टी हैं। करदाताओं के पैसे अनुदान के रूप में इसमें लिए जा रहे हैं।
दूसरा, इसके प्रचार प्रसार में सरकारी मशीनरी और सरकारी कर्मचारियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। पीएम केयर्स फंड का प्रचार करने के लिए भारतीय उच्चायोगों को भी काम पर लगाय़ा गया।
तीसरा, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने विदेशी चंदा या अनुदानों को रेगुलेट करने के लिए बनाए गए कानून- विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 (एफसीआरए) के सभी प्रावधानों से इस फंड को छूट दी है। हालांकि, इस तरह की छूट प्राप्त करने के लिए सरकार द्वारा स्थापित संस्था के एकाउंट की कैग से ऑडिट कराने की शर्तों को ये फंड पूरा नहीं करता है।
चौथा, इस फंड का आधिकारिक कार्यालय भी पीएमओ में ही स्थित है। और इस फंड की ऑडिटिंग राष्ट्रीय ऑडिटर कैग से नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र ऑडिटर के जरिए कराई जाती है।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया