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सरकार ने क्यों टेके घुटने ? क्या है पेट बॉटल्स में पैकिंग का खेल?

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नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए सुरेश उपाध्याय) :  सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ मुहिम छेड़ने वाली सरकार हेल्थ वर्कर्स और स्वयंसेवी संस्थाओं की मांग के बावजूद पेट (पॉलीएथिलीन टेरेथैलेट) या प्लास्टिक बॉटल्स में दवाओं की पैकिंग पर रोक नहीं लगा पा रही है। इसकी वजह दवा कंपनियों का दबाव है और सरकार इसके सामने हथियार डाले नजर आ रही है। वह भी तब, जब सरकार की दवा मामलों की शीर्ष सलाहकार संस्था इन पर बैन लगाने की सिफारिश कर चुकी है।

सेहत और पर्यावरण के लिए खतरा

दवाओं को पेट और प्लास्टिक बॉटल में बेचे जाने का लंबे अरसे से विरोध हो रहा है। हेल्थ वर्कर्स का कहना है कि दवाओं (Drugs) को इस तरह की बॉटल्स में रखे जाने से प्लास्टिक में मौजूद जहरीले तत्व दवा में घुल जाते हैं, जो कि सेहत के लिए खासे हानिकारक हैं। गौरतलब है कि हाल के सालों में कफ सीरप, आईवी फ्लूड, कई तरह के सस्पेंशन, एसिडिटी रोकने वाले सीरप, टॉनिक्स और अन्य दवाओं को प्लास्टिक या पेट बॉट्ल्स में बेचने के काम में तेजी आई है। इन्हें प्लास्टिक की बोतलों में बेचना जहां सस्ता पड़ता है, वहीं इनके टूटने का खतरा भी नहीं रहता और इसी कारण दवा कंपनियां इन पर रोक नहीं लगने देना चाहतीं।

कमिटी ने की थी बैन की सिफारिश

सरकार ने कुछ अर्सा पहले इस मसले पर ड्रग टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड से इस मामले की पड़ताल करने और यह पता लगाने को कहा था कि क्या पेट और प्लास्टिक बोतलों में दवाओं की पैकिंग वाकई खतरनाक है कि नहीं। बोर्ड ने इस मामले में एक पैनल का गठन किया था। इसने अपनी रिपोर्ट में पेट और प्लास्टिक बोतलों में दवाओं की पैकिंग को सेहत के लिए खतरनाक करार दिया था और सरकार से इस पर बैन लगाने को कहा था। इस सिफारिश का दवा कंपनियों की ओर से खासा विरोध किया गया। इसके बाद से पेट और प्लास्टिक बॉटल्स में दवाओं की पैकिंग का मुद्दा ठंडा पड़ा हुआ है और बाजार में दवाओं को इस तरह की पैकिंग्स को धड़ल्ले से बेचा जा रहा है। हेल्थ वर्कर्स का कहना है कि जब सरकार सिंगल यूज प्लास्टिक को पर्यावरण के लिए खतरनाक मानती है तो वह दवाओं को प्लास्टिक पैकिंग में कैसे बेचने दे सकती है। ये बॉटल्स तो पर्यावरण के साथ सेहत के लिए भी खतरनाक हैं। लोग इनका सुरक्षित निपटारा करने के बजाय इन्हें कूड़े के साथ यूं ही फेंक देते हैं। इस तरह ये सेहत के साथ ही पानी और जमीन के लिए भी खतरनाक हैं।

देसी दवाएं भी प्लास्टिक बॉटल्स में

दिल्ली की ऑल इंडिया यूनानी तिब्बी कांग्रेस (एआईयूटीसी) ने भी सरकार से मांग की है कि प्लास्टिक बॉटल्स में दवाओं की पैकिंग पर हर हाल में रोक लगनी चाहिए। उसका कहना है कि इन बॉटल्स में एलोपैथिक ही नहीं, देसी दवाओं की पैकिंग भी खतरनाक है। एआईयूटीसी के सेक्रेटरी जनरल डॉ. सैयद अहमद खां का कहना है कि एलोपैथिक दवाओं के साथ ही भारतीय पद्धतियों की दवाओं को भी प्लास्टिक और पेट बॉटल्स में रखा जाता है।

 एनजीओ से उठाया था मामला

इस मामले को सबसे पहले देहरादून के एक एनजीओ ने उठाया था। उसने सरकार से कहा था कि दवाओं को पेट या प्लास्टिक बॉटल्स में बेचने पर रोक लगाई जानी चाहिए। उसका दावा था कि इन बॉटल्स में पैकिंग से दवाओं की रासायनिक संरचना में बदलाव आ जाता है और वह सेहत के लिए खतरनाक बन जाती हैं। उसने कहा कि इसके साथ ही प्लास्टिक का दवाओं की पैकेजिंग में होने वाला बेतहाशा इस्तेमाल पर्यावरण के लिए भी खतरनाक है।

फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया

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