नई दिल्ली (गणतंत्र भारत के लिए लेखराज ) : भारतीय प्रशासनिक सेवा के नियमों में बदलाव के केंद्र सरकार के प्रस्ताव का कई राज्यों ने जबरदस्त विरोध किया है और इसे भारतीय संघवाद की अवधारणा के खिलाफ बताया है। ये संशोधन प्रस्ताव इस सेवा से जुड़े अधिकारियों की पोस्टिंग को लेकर केंद्र सरकार को व्यापक अधिकार देता है।
कई राज्यों ने केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव पर अपना विरोध प्रकट करते हुए केंद्र सरकार को पत्र लिखा है। इन राज्य़ों में पश्चिम बंगाल और ओडिशा के अलावा वे राज्य़ भी शामिल है जो एनडीए शासित हैं। इन राज्यों में मध्य प्रदेश, बिहार और मेघालय जैसे राज्य शामिल हैं। महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव को कैबिनेट बैठक में खारिज करते हुए इसका कड़ा विरोध करने का फैसला लिय़ा है। केंद्र सरकार ने विरोध को देखते हुए प्रस्तावित मसौदे पर राज्यों को अपनी राय देने के लिए समयसीमा को पांच जनवरी से बढ़ाकर 25 जनवरी कर दिया है।
ममता बनर्जी ने पत्र में क्या लिखा ?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस बारे में दो-दो बार पत्र लिखा है। 20 जनवरी को भेजे दूसरे पत्र में ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार की इस योजना को भारतीय संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ बताया है। ममता बनर्जी ने अपने पत्र में आगे लिखा कि, संशोधित मसौदे का मूल बिंदु ये है कि केंद्र सरकार किसी भी राज्य में तैनात अधिकारी को बिना उसकी सहमति और राज्य सरकार की रजामंदी के देश के किसी भी कोने में भेज सकती है और वो अधिकारी अपने कार्य दायित्व से तत्त्काल मुक्त किया जा सकता है। ममता बनर्जी ने अपने पत्र में लिखा कि, मुझे संशोधन प्रस्ताव पहले की तुलना में ज्यादा कठोर लगता है और वास्तव में ये हमारी महान संघीय राजनीति और बुनियादी ढांचे की नींव के खिलाफ है।
छह राज्यों में व्यापक विरोध
पश्चिम बंगाल के अलावा, ओडिशा, मध्य प्रदेश, बिहार, मेघायल और महाराष्ट्र ने इस संशोधन प्रस्ताव के खिलाफ रोष जाहिर किया है। महाराष्ट्र सरकार को छोड़ कर बाकी के पांच राज्यों ने केंद्र सरकार को अपना विरोध जाहिर करते हुए पत्र लिखा है। महाराष्ट्र सरकार भी इस सिलसिले में केंद्र सरकार को पत्र लिखने जा रही है। महाराष्ट्र सरकार ने कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव का विरोध करने का फैसला किया है।
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने इस सिससिले में एक रिपोर्ट छापी है जिसमें बताया गया है कि, महाराष्ट्र कैबिनेट में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और बिजली मंत्री नितिन राउत ने ये मुद्दा उठाया। उन्होंने बाद में इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बताया कि,, मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री दोनों ने मंत्रियों के साथ, केंद्र के इन संशोधनों का कड़ा विरोध करने का फैसला किया है। ये प्रस्ताव स्पष्ट रूप से राज्य सरकारों से परामर्श किए बिना आईएएस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति के बारे में केंद्र सरकार को सार्वभैमिक अधिकार देता हैं।
क्या है केंद्र का संशोधित प्रस्ताव ?
केंद्र सरकार ने भारतीय प्रशासनिक सेवा (कैडर) नियम, 1954 में संशोधन का प्रस्ताव किया है। इस संशोधन को मंजूरी की स्थिति में विभिन्न राज्यों में तैनात इस सेवा के अधिकारियों की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के नियमों को बदला जा सकेगा।
केंद्र सरकार ने इस संबंध में 20 दिसंबर को राज्यों को पहला पत्र भेजा था। पत्र के नियम 6 (1) में दो संशोधनों का प्रस्ताव किया गया था। इसमें एक नया पैराग्राफ प्रस्तावित किया गया था जो कहता है कि, प्रत्येक राज्य सरकार, केंद्र सरकार को प्रतिनियुक्ति के लिए केंद्रीय प्रतिनियुक्ति रिजर्व की सीमा तक विभिन्न स्तरों के पात्र अधिकारी उपलब्ध कराएगी। पत्र में आगे कहा गया कि, प्रतिनियुक्ति पर भेजे जाने वाले अधिकारियों की संख्या संबंधित राज्य सरकार से परामर्श के बाद केंद्र सरकार द्वारा तय की जाएगी।
पत्र में नियम 6 में एक और संशोधन का प्रस्ताव किया गया है। ये संशोधन अधिकारियों की तैनाती को लेकर असहमति से संबंधित है। संशोधित प्रस्ताव के अनुसार, राज्य सरकार, केंद्र के निर्णय को एक निर्धारित समयसीमा के भीतर लागू करेगी। जहां भी संबंधित राज्य सरकार, केंद्र सरकार के निर्णय को निर्धारित समय के भीतर लागू नहीं करती है, तो अधिकारियों को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित तिथि से कैडर से मुक्त कर दिया जाएगा।
इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से जानकारी दी है कि, केंद्र सरकार ने भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा के अधिकारियों के लिए भी इसी तरह सेवाशर्तों में संशोधन का प्रस्ताव किया है।
फोटो सौजन्य – सोशल मीडिय़ा