प्रयागराज, 20 सितंबर (गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र) : प्रतापगढ़ के रहने वाले रामाज्ञा दुबे को इलाहाबाद युनिवर्सिटी में यूनियन भवन के सामने धरने पर बैठे कई दिन हो गए हैं। वे दिन के समय यहां धरने पर बैठते हैं। शाम को उन्हें खुद का खर्च निकालने के लिए ट्यूशन पढ़ाना होता है, लिहाजा वे वहां से चले जाते हैं। पिता खेतिहर किसान हैं। एकेडमिक करियर बहुत अच्छा रहा तो रामाज्ञा आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद युनिवर्सिटी में आए। मकसद था पढ़ाई के साथ कंपटीशन की तैयारी भी करना। लेकिन अब उन्हें अपने सपनों पर ग्रहण लगता दिख रहा है। वे कहते हैं कि, मेरे जैसे सैकडों छात्र इस विश्वविद्यालय में है। हॉस्टल में जगह नहीं मिली युनिवर्सिटी के पीछे न्यू कटरा में किराए पर रहते हैं। महंगाई ने पहले ही हाल बुरा कर रखा था अब फीस भी चार गुना भरो। कैसे होगा ? नहीं होगा तो वापस घर लौट जाऊंगा।
रामाज्ञा उन सैकडों छात्रों में शामिल हैं, फीस वृद्धि के खिलाफ जिनके तेवर लगातार तीखे होते जा रहे हैं। पिछले काफी समय से छात्र फीस वृद्धि की वापसी की मांग को लेकर युनिवर्सिटी यूनियन भवन के सामने धरना- प्रदर्शन कर रहे हैं। इस विरोध प्रदर्शन में कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई, समाजवादी पार्टी से जुड़ा छात्र संगठन समाजवादी युवजन सभा, बीजेपी से जुड़ा छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और वामदलों के सभी छात्र संगठन जिसमें एसएफआई लेकर आइसा तक शामिल हैं, सभी सक्रिय रूप से भागीदारी कर रहे हैं।
आश्चर्य की बात है कि अभी तक विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से छात्रों की मांगो को लेकर बातचीत की कोई पहल नहीं की गई। प्रशासन हालात पर नजर बनाए हुए है और उसकी कोशिश किसी भी अप्रिय घटना को होने से रोकने की है।
आपको बता दैं कि, इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इस वर्ष 400 प्रतिशत यानी फीस में चार गुणा वृद्धि कर दी गई। फीस वृद्धि के पीछे दलील दी गई कि विश्वविद्यालय के विकास और आधुनिकीकरण के लिए फीस वृद्धि जैसे उपाय जरूरी हैं। विश्वविद्यालय का तर्क है कि इतनी फीस बढ़ाने के बाद भी उसकी फीस प्राइवेट संस्थानों से काफी कम है।
लेकिन क्या विश्वविद्यालय के हालात में वाकई कोई सुधार हुआ ? इस सवाल का जवाब बहुत उलझा हुआ है। छात्र बताते हैं कि, युनिवर्सिटी में वर्षों से हालात जस के तस हैं। लाइब्रेरी में किताबें मिलती नहीं। कैटेलॉग सिस्टम बहुत पुराना और घिसापिटा है। क्लासरूम में वही बरसों पुरानी लकड़ी के बेंच और डेस्क। यही हाल हॉस्टलों का भी हैं। आधे से ज्यादा छात्रों को तो हॉस्टल में जगह ही नहीं मिलती, वे डेलीगेसी में रहते हैं। खर्च और रिहाइश बहुत महंगी पड़ती है। छात्र पूछते हैं कि, विश्वविवद्यालय ऐसा क्या करने जा रहा है या उसने क्या किया है कि फीस में अचानक चार गुणा बढ़ोतरी की नौबत आ गई।
इलाहाबाद में, वरिष्ठ पत्रकार सुनील शुक्ल के अनुसार, छात्रों के तेवर से युनिवर्सिटी प्रशासन की नींद तो उड़ी हुई है लेकिन फिर भी बातचीत की पहल से उसे घबराहट है। विश्वविद्यालय की वाइस चांसलर दिल्ली तक ऊंची पहुंच वाली हैं तो उन्हें भी छात्रो की मांगों की ज्यादा फिक्र नहीं। उनका कहना है कि, छात्रों का ये आंदोलन खुद से स्फूर्त है। सभी छात्रों के संगठन इसमें सक्रिय हैं। एबीवीपी जैसे संगठनों के छात्र भी दिख रहे हैं। यहां तक कि अधिकतर शिक्षक भी छात्रों की मांगों के समर्थन में हैं।
शुक्ल बताते हैं कि, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने भी छात्रों की मांगों पर उनका समर्थन किया है। कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी जो खुद इस विश्वविद्यालय में छात्र नेता रह चुके हैं उन्होंने छात्रों को आश्वासन दिया है कि वे मामले को संसद में उठाएंगे।
छात्रों को स्थानीय जनसमर्थन भी हासिल
छात्रों का धरना-प्रदर्शन यूनियन भवन के सामने वैसे तो 24 घंटे चलता है लेकिन रात के समय भीड़ कुछ कम हो जाती है। दिन में छात्रों की तादाद काफी ज्यादा होती है। स्थानीय लोग भी धरने-प्रदर्शन में छात्रों के साथ दिखाई देते है। विभिन्न छात्र संगठन अपना दबदबा जाहिर करने के लिए अलग-अलग गुटों और बैनर के साथ सक्रिय दिखाई देते हैं।
युनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन कर रहे सुल्तानपुर के छात्र ऋतुराज सिंह के अनुसार, युनिवर्सिटी का ये फैसला मनमाना है। इस फीस वृद्धि का कोई तुक नहीं है। युनिवर्सिटी में ऐसा क्या हुआ है कि उनको इतनी ज्यादा फीस दी जाए। भीषण महंगाई ने वैसे ही हमारा खर्चा बढ़ा रखा है। घर वालों के लिए भी हमें यहां पढ़ाना भारी प़ड़ रहा है, ऊपर से ये अचानक मार। ऋतुराज कहते हैं कि, छात्र सरकारी विश्वविद्यालय में क्यों पढ़ता है, इसीलिए न कि कम खर्च में पढ़ाई हो जाए। सरकार भी युनिवर्सिटी पर खर्च करती है, शिक्षा पर खर्च करती है। लेकिन यहां को उलटी गंगा बह रही है। सरकारी युनिवर्सिटी ही छात्रों को लूटने में लग गई है।
छात्र ने आत्मदाह की कोशिश की
सुनील शुक्ल बताते हैं कि, कल एक छात्र ने खुद को जलाने की कोशिश की। सोशल मीडिया पर भी इस घटना को लेकर कई तरह की बातें चलती रहीं। पुलिस और दूसरे छात्रों ने उसे बचा लिया। वजह थी कि उस छात्र के परिजनों को प्रशासन परेशान कर रहा था और उन पर दबाव डाल रहा था कि अपने बच्चे को आंदोलन से दूर रखो। शुक्ल का कहना है कि, विश्वविद्यालय प्रशासन को तुरंत छात्रों से बात करनी चाहिए और उनकी मांगो पर कोई न कोई रास्ता निकालना चाहिए। प्रशासन के अड़ियल रुख से छात्र और ज्यादा उग्र होंगे और आने वाले समय में कानून- व्यवस्था की दूसरी दिक्कतें उठ खड़ी होंगी।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया