Homeपरिदृश्यटॉप स्टोरीजंगल और इंसान के बीच क्यों जरूरी है एक लक्ष्मण रेखा....?

जंगल और इंसान के बीच क्यों जरूरी है एक लक्ष्मण रेखा….?

spot_img

देहरादून (गणतंत्र भारत के लिए स्तुति) : पर्यावरण और इंसान के बीच संघर्ष, मौजूदा दौर की हकीकत है लेकिन समय के साथ-साथ जंगलों और इंसानों के बीच रिश्ते भी तल्ख होते जा रहे हैं। इसका एक उदाहरण कॉर्बेट नेश्नल पार्क के वन क्षेत्र और उसके आसपास बसे गांवों के लोगों के बीच संघर्ष के रूप में लिया जा सकता है। अभी बीती 7 जनवरी को शांति देवी नाम की एक महिला को बाघ ने हमला करके मार डाला। शांति लकड़ी लेने जंगल की तरफ गई थीं जब ये वाकया हुआ।

ये एक अकेली शांति की कहानी नहीं है। 2017 से लेकर 2024 तक बाघों ने 12 लोगौं को मार दिया। इसमें से 7 महिलाएं हैं। 2024 में बाघों के हमले में अकेले पांच लोग मारे गए।

क्य़ों बढ़ रही हैं ऐसी घटनाएं ?

कॉर्बेट वन क्षेत्र के जिला वन ऑफिसर दिगनाथ नायक के अनुसार, जैसे –जैसे वन क्षेत्र के बफर जोन में इंसानी आबादी बस रही है वैसे –वैसे ये समस्या बढ़ रही है। उनके अनुसार आज से 20 साल पहले इस इलाके में सिर्फ 80 बाघ हुआ करते थे, आज इनका तादाद बढ़कर 260 पार कर गई है। आसपास के 46 गांव ऐसे हैं जो वन क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। यहां करीब 3000 की आबादी भी है। ये लोग आपनी घरेलू जरूरतों और कुछ मामलों में आजीविका के लिए भी  जंगलों पर निर्भऱ हैं। पुरुष आमतौर पर रोजगार की तलाश में शहरों की तरफ चले जाते हैं जबकि महिलाएं लकड़ी और जानवरों के लिए चारे की तलाश में जंगलों की तरफ जाती हैं। यही वजह है कि महिलाएं बाघों के हमलों का ज्यादा शिकार होती हैं।

जानकारों के अनुसार, एक बाघ आमतौर पर औसतन 50 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में विचरण करता है और इस क्षेत्र में कोई भी दूसरा बाघ नहीं होता है। इस हिसाब से देखा जाए तो जिम कॉर्बेट पार्क में प्रति बाघ ये क्षेत्रफल बहुत ही कम निकलता है और बाघों को रिहाइशी इलाकों की तरफ आना पड़ता है। इसके अलावा, बूढ़ें होते बाघों के लिए जिनके लिए जंगलों में शिकार करना मुश्किल हो जाता है वे भी इंसानी बस्तियों में जानवरों के अलावा लोगों पर हमला करते हैं।

कॉर्बेट पार्क की भौगोलिक स्थिति

कॉर्बेट पार्क, भौगोलिक स्थिति के हिसाब से उत्तराखंड के तीन जिलों, पौड़ी. नैनीताल और अल्मोड़ा जनपदों में फैला है और लगभग 1300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तारित है। यहां इंसानी बस्ती और वन क्षेत्र के बीच बफर जोन भी है लेकिन फिर भी अक्सर जानवर, इंसानी बस्ती के आसपास देखे जाते हैं।

क्या कहते हैं गांव वाले ?

गोपाल सिंह इसी इलाके के रहने वाले हैं। उनके परिवार के एक सदस्य पर भी बाघ ने हमला किया था लेकिन वह बच गया। उनका कहना है कि, गांव वालों की मजबूरी है कि वे जंगलों में जाएं। कुछेक के खेत वहीं है तो अधिकतर लोग लकड़ी और चारे की तलाश में जगलों में जाते हैं। न चाहते हुए भी उन्हें जगलों की तरफ जाना पड़ता है।

जिला वन अधिकारी दिग्नाथ नायक, एक और तथ्य की तरफ ध्यान दिलाते हैं। उनका कहना है कि, बहुत से गांव वाले अवैध रूप से लकड़ी काटने और शहद निकालने के लिए जंगलों में जाते हैं और इसी दौरान उन पर जानवर हमला करते हैं। वे बताते हैं कि, इसे ध्यान में रखते हुए  हम कानूनी कार्रवाई करने की तैयारी कर रहे हैं।

हालात को बेहतर बनाने का रास्ता क्या है ?

हालात को देखते हुए कुछ समय पहले इस सिलसिले में क्षेत्र के आला वन अधिकारियों की बैठक हुई थी जिसमें इस तरह की चुनौती से निपटने के लिए उपायों पर चर्चा की गई। इसी बैठक में जंगलों की तरफ जाने वाले गांव वालों पर कानूनी कार्रवाई की सिफारिश की गई। इसके अलावा, वन क्षेत्र से जुड़े बफर जोन में आने वाले गावों के लोगों को विस्थापित कर कहीं और बसाने की बात भी कही गई। एक सुझाव बाघों को दूसरे वन क्षेत्रों में स्थानांतरित करने का भी दिया गया।

जंगल और इंसानों के रिश्तों पर नजर रखने वाले वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ  बिली अर्जन सिंह ने करीब 2 दशक पहले इन सवालों को उठाया था। वे खुद उत्तर प्रदेश के लखीनपुर और पीलीभीत जिलों में विस्तारित दुधवा नेशनल पार्के के पास वन क्षेत्र में रहते थे। उन्होंने कहा था कि, जंगल और इंसान के बीच रिश्ते हमेशा से लक्ष्मण रेखा के पालन करने जैसे रहे हैं। इनका उल्लंघन अक्सर जानवर नहीं, बल्कि इंसान ही करता है।

फोटो सौजन्य़- सोशल मीडिया   

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

- Advertisment -spot_img

Recent Comments