मुंबई (गणतंत्र भारत के लिए सुहासिनी) : विश्व महिला दिवस पर आज गणतंत्र भारत, उस गेम चेंजर की कहानी को अपने पाठकों के साथ साझा करने जा रहा है जिसने भारत के रूढ़िवादी समाज को चुनौती देते हुए उस विधा में हाथ आजमाने की सोची जहां आमतौर पर पुरुषों का वर्चस्व रहा करता है। हम बात करने जा रहे हैंएयरलिफ्ट और शेफ जैसी फिल्मों में अपने हुनर का जलवा बिखेरने वाली सिनेमेटोग्राफर प्रिया सेठ की।
प्रिया सेठ करीब ढाई दशकों से फिल्म उद्योग में हैं लेकिन दरअसल फिल्मों मे उनकी सफलता की कहानी 2016 में तब शुरू हुई जब उन्हें अक्षय कुमार की फिल्म एयरलिफ्ट में निर्देशक राज कृष्ण मेनन के साथ काम करने का मौका मिला। बड़े बजट की इस बॉलीवुड एक्शन फिल्म ने सेठ को अप्रत्याशित रूप से अचानक चर्चा में ला दिया। इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त सफलता मिली। उन्हें ये काम आसानी से नहीं मिला बल्कि इसके लिए उन्हें कड़ा प्रतिरोध झेलना पड़ा।
सिनेमेटोग्राफर का काम बहुत चुनौतीपूर्ण
सिनेमेटोग्राफर को डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी भी कहा जाता है और आमतौर पर उसकी भूमिका डायरेक्टर के बाद सेट पर नंबर दो की रहती है। इस दायित्व के लिए व्यक्ति में कलात्मक प्रतिभा के साथ-साथ हर सीन के लिए लाइटिंग, शॉट्स और क्रू के सदस्यों के उचित प्रबंधन का तकनीकी ज्ञान भी होना चाहिए। इसके अलावा उसे कैमरे के इस्तेमाल की समझ भी होनी चाहिए।
दरअसल, इस काम में काफी ज्यादा शारीरिक श्रम की जरूरत होती है इसलिए इस बारे में शंकाएं उठा करती थीं कि महिलाएं ये काम बखूबी कर पाएंगी या नहीं। लेकिन प्रिया सेठ कहां चुनौतियों से डरने वाली थीं। उनका कहना है कि, मैं अपने काम को उसी तरह से निभाती हूं जैसे कि कोई दूसरा। महिला होना इसमें कोई बाधा नहीं डालता। प्रिया ऐसा कहके पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्र में अपनी हैसियत का एहसास कराना चाहती हैं।
प्रिया मानती हैं कि एयरलिफ्ट के लिए चुना जाना ही उनके जीवन का टर्निंग प्लाइंट था। वे कहती हैं कि, मुझे इस काम के लिए चुना गया और यही मेरे लिए मील का पत्थर साबित हुआ। मैंने काफी अच्छा काम किया। अचानक काफी लोगों का ध्यान मेरी तरफ गया। जहां तक मैं जानती हूं शायद मैं पहली महिला हूं जिसने कोई महत्वपूर्ण बॉलीवुड फिल्म को शूट किया है। दरअसल, इन सब बातों के बीच मेरा काम ही था जिसे मान्यता मिली।
प्रिया के अनुसार, उनकी ये फिल्म ही थी जिसने उन्हें इतना हौसला दिया कि उन्होंने अपनी क्षमताओं पर संदेह करना बंद कर दिया। वे कहती हैं कि, मैं अब कह सकती थी कि सवाल प्रतिभा का नहीं मौकों की कमी का है। इसके बाद तो सब कुछ बदल सा गया। प्रिया ने एयरलिफ्ट के बाद सैफ अली खान अभिनीत फिल्म शेफ में भी सिनेमेटोग्राफर का दायित्व निभाया।
जो सोचा वो किया
प्रिया सेठ का जन्म अमृतसर में हुआ और बचपन में ही अपने परिवार के साथ वे मुंबई आ गई थीं। उन्होंने न्यूयॉर्क युनिवर्सिटी से फिल्ममेंकिंग में की पढ़ाई करने से पहले मुंबई के एक कॉलेज में अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। न्यूयॉर्क युनिवर्सिटी से वापस भारत आने पर प्रिया इस मायने में नसीब वाली रहीं कि उन्हें तुरंत काम मिल गया और वो भी इसलिए कि कोई महिला असिस्टेंट को ही काम पर रखना चाहता था। वे देश में कुछ चुनिंदा महिला असिस्टेंट में से एक थीं और वो भी इसलिए कि किसी ने उन्हें मौका दिया था। प्रिया मानती हैं कि, अगर आपके पास आधी आबादी ऐसी है जिसकी आवाज ही नहीं सुनी जाती तो जाहिर है आपके पास असंतुलित खबरें ही आएंगी। और दिन खत्म होने पर सहानुभूति की कहानी भर बाकी रह जाती है। अगर कोई महिला किसी युद्ध को शूट कर रही है तो क्या वो उसको किसी और नजर से देख सकती है? हिंसा को लेकर किसी महिला का नजरिया क्या हो सकता है? दोनों ही तरह के नजरियों की पड़ताल की जरूरत है।
प्रिया को उम्मीद है कि जब महिलाओं से संबंधित कहानियां ज्यादा बताई जाएंगी तो महिलाएं कहीं ज्यादा उन्हें देख पाएंगी, पढ़ पाएंगी और उन पर ज्यादा सोच पाएंगी। वे कहती हैं कि, महिलाओं को लेकर हालात में अचानक से कोई बदलाव नहीं होने वाला। इसके लिए सभी जगह मानसिक बदलाव जरूरी है। सिर्फ फिल्मों में नहीं बल्कि इसकी जरूरत पूरे देश में है लेकिन सबसे ज्यादा बदलाव की जरूरत तो महिलाओं को खुद में ही है। खुद में भरोसा करेंगी तभी तो दुनिया में उनकी जगह भी बदलेगी।
फोटो सौजन्य- सोशल मीडिया