लखनऊ ( गणतंत्र भारत के लिए हरीश मिश्र ) : उत्तर प्रदेश में योगी आदित्य नाथ सरकार की दूसरी पारी में मंत्रियों के विभागों का बंटवारा कर दिया गया है। मंत्रियों के शपथ ग्रहण के बाद तीन दिनों तक माथापच्ची हुई और फिर विभागों का बंटवारा हो सका। पहले के कई कद्दावर मंत्रियों को या तो मंत्री ही नहीं बनाय़ा गया या फिर उन्हें ऐसा मंत्रालय दिया गया जो उनके कद के अनुरूप नहीं था। सवाल ये है कि योगी मंत्रिमंडल के गठन और मंत्रियों के विभागों के वितरण में कौन से ऐसे बिंदु रहे जिनको ध्यान में रखा गया। कहीं ये 2024 के आम चुनावों के लिए तैयार की गई फील्डिंग तो नहीं।
किसी का दम निकला, तो कोई बना दमदार
योगी आदित्य नाथ मंत्रिमंडल में सबकी निगाह केशव प्रसाद मौर्या के विभाग पर टिकी थी। पहले कार्यकाल में भी वे उपमुख्यमंत्री थे लेकिन उनके पास सार्वजनिक निर्माण जैसा मलाईदार विभाग था। उनके विभाग से संबंधघित फैसलों में भी मुख्यमंत्री की दखल न के बराबर थी। लेकिन इस बार वे सिराथू से अपना चुनाव हार गए। पार्टी ने उन्हें मंत्री तो बनाया लेकिन उनसे पीडब्लूडी जैसा विभाग छीन लिया गया। उन्हें अब ग्रामीण विकास मंत्रालय दिया गया है। पिछली सरकार में दूसरे उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा को तो मंत्री ही नहीं बनाया गया। इसी तरह स्वास्थ्य विभाग का काम देखने वाले सिद्धार्थ नाथ सिंह और ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा की भी छुट्टी कर दी गई। श्रीकांत शर्मा पर तो भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप भी लगे हैं।
दिलचस्प ये है कि, विधानसभा चुनावों के दौरान योगी आदित्यानाथ ने जिन मसलों को लेकर अपनी पीठ ठोंकी उन्हीं विभागों के मंत्रियों को ठिकाने लगा दिया। जैसे कोरोना के दौरान यूपी में बहुत अच्छा काम हुआ। स्वास्थ्य मंत्री थे सिद्धार्थ नाश सिंह उनकी छुट्टी हो गई। दावा किया गया कि बिजली यूपी में 24 घंटे आने लगी। मंत्री श्रीकांत शर्मा का विभाग था, उनकी छुट्टी हो गई। दावा किया गया यूपी में निवेश काफी आया। मंत्री सतीश महाना गए। यूपी की सड़कें यूरोप जैसी बन गईं, मंत्री केशव प्रसाद मौर्या से पीडब्लूडी छीन लिया गया।
संभव है उन्हें कोई और जिम्मेदारी दी जाए लेकिन संकेत तो कुछ और ही कहते हैं। सतीश महाना को विधानसभा अध्यक्ष बनाया जा रहा है। कयास हैं कि दिनेश शर्मा और श्रीकांत शर्मा को संगठन में भेजा जाएगा।
अनुमानों के अनुसार ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गृह, गोपन और राजस्व जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों के साथ कुल 34 विभाग अपने पास रखे हैं। नए मंत्रियों में सबसे ज्यादा अगर किसी को ताकतवर बनाया गया है तो वे हैं ए.के. शर्मा। उनके पास शहरी विकास और ऊर्जा जैसे विभाग हैं। वे लाख कोशिशों के बाद भी योगी आदित्यनाथ की पहली सरकार में मंत्री नहीं बन पाए थे। ब्रजेश पाठक को उपमुख्यमंत्री बना कर उन्हें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण जैसे मंत्रालय का जिम्मा देना उनके बढ़ते कद की निशानी है। कांग्रेस से आए जितिन प्रसाद को केशव प्रसाद मौर्या का विभाग पीडब्लूडी सौंप कर उनके कद को विस्तार दिया गया है। इसी तरह से कैबिनेट में दोबारा स्थान पाने वाले स्वतंत्र देव सिंह को जल शक्ति, सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण जैसे सात विभागों का पदभार मिला है। योगी सरकार की पिछली कैबिनेट में स्वतंत्र देव सिंह ने कुछ समय तक परिवहन मंत्री का कार्यभार संभाला था लेकिन बाद में उन्हें पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया था। परिवहन मंत्रालय का पदभार इस बार दयाशंकर सिंह को मिला है जो पहली बार कैबिनेट में जगह बनाने में सफल रहे हैं।
उत्तराखंड की पूर्व गवर्नर और आगरा ग्रामीण से विधायक बेबी रानी मौर्य को महिला कल्याण विभाग दिया गया है। पिछली कैबिनेट में रीता बहुगुणा जोशी के पास इस मंत्रालय का पदभार था। लक्ष्मी नारायण चौधरी इस बार गन्ना मंत्री होंगे। उत्तर प्रदेश सरकार में पिछली बार ये महत्वपूर्ण पद सुरेश राणा के पास था लेकिन वे इस बार बुरी तरह से चुनाव हार गए।
क्या हैं संकेत ?
माना जाता है जिसने यूपी जीत लिया उसने देश जीत लिया। यूपी की राजनीति इसीलिए राष्ट्रीय राजनीति में सबसे अहम किरदार निभाती है। 2024 में देश में लोकसभा चुनाव हैं। बीजेपी को अगर सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखनी है को उसके लिए यूपी को साधना सबसे महत्वपूर्ण है। उत्तर प्रदेश की सरकार के गठन में जिस तरह से संतुलन बैठाने की कोशिश की गई है उससे साफ जाहिर है कि सरकार भले ही यूपी की हो लेकिन निगाह 24 के चुनावों पर ही है। अरविंद शर्मा को नगर विकास और ऊर्जा जैसा महत्वपूर्ण विभाग सौंपना इस बात का संकेत है कि विभाग वितरण में दिल्ली की भावना का भी खयाल रखा गया है। भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता के आरोपों के चलते श्रीकांत शर्मा और सिद्धार्थ नाथ सिंह की छुट्टी के जरिए ये संदेश देने की कोशिश की गई है कि पार्टी ऐसे मसलों पर काफी संजीदा है। केशव प्रसाद मौर्या का कद घटाना लेकिन उन्हें एडजस्ट करना ये संकेत देता है कि भले ही वे चुनाव हार गए हों लेकिन पार्टी उनके योगदान को अहमियत देती है।
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